परिस्थिति जब खराब होती है,
परछाई भी ना साथ होती है,
अपना भी पराया कैसे होता है,
की वक्त ए-मुश्किलात में ,
परछाई भी ना साथ होती है,
अपना भी पराया कैसे होता है,
की वक्त ए-मुश्किलात में ,
ये व्यक्ति जान उठता है|
सूखे में जो खेती कर जाये,
दम है उस मेहनत की भुजाओं में,
तपीष में जब बच जाये हरी पत्ती,
सदैव पूजा जाता है वह वृक्षों में,
चुनौती के आखिरी दम पर,
कौन अपना-पराया है,
ये व्यक्ति जान उठता है|
खड़ी है भीड़ जिसके साथ कंधे मिलाकर,
खाषम -खाष हो जाता है,दुश्मन भी इशारों पर,
सच्चा है जो अपने उसूलों की राहों पर,
ईश्वर भी सोचता होगा की,
जीवित है मानवता अब भी इस धरातल पर|
||राघवेन्द्र मिश्र||
सूखे में जो खेती कर जाये,
दम है उस मेहनत की भुजाओं में,
तपीष में जब बच जाये हरी पत्ती,
सदैव पूजा जाता है वह वृक्षों में,
चुनौती के आखिरी दम पर,
कौन अपना-पराया है,
ये व्यक्ति जान उठता है|
खड़ी है भीड़ जिसके साथ कंधे मिलाकर,
खाषम -खाष हो जाता है,दुश्मन भी इशारों पर,
सच्चा है जो अपने उसूलों की राहों पर,
ईश्वर भी सोचता होगा की,
जीवित है मानवता अब भी इस धरातल पर|
||राघवेन्द्र मिश्र||