Friday, 18 October 2013

अस्सी चौराहा, पापा, चाय और मम्मी की सौत

अस्सी एक ऐसा मोहल्ला है जहां मैं अपने जन्म से हूं | जहां पैदा हुआ, जहां पूरा बचपन बीता उससे एक अलग जुड़ाव हो गया | पिछले तीन महीनें से अपने मोहल्ले से दूर हूं तो वो भी उतना ही याद आता है जीतना घर और बाकी चीजें | याद आना भी लाजमी है क्योंकि क्रिकेट खेलने से लेकर पतंग उड़ाने और गंगा जी में तैरने और दोस्तों के साथ मस्ती का पूरा समय ही वहीँ बीता है|

मेरे घर से कुछ दूरी पर ही चौराहा है जी हां वही 'अस्सी चौराहा' या यूं कह ले 'काशीनाथ सिंह' जी का चौराहा | बचपन से ही उस चौराहे से मेरा अलग जुड़ाव था क्योंकि वहां जाने पर बाबू आया है विक्की आया है कहकर कोई मुझे फल देता तो कोई मुझे ऑमलेट खिलाता तो कोई टॉफी-बिस्कुट | साथ ही मेरे कई काम भी निकल जाते थें जैसे मेरे स्कूल के प्रिंसिपल और सर लोग वहीँ होते तो पापा कुछ कह देते तो फिर स्कूल में मेरा थोड़ा मौहाल बन जाता था|

मेरे पापा ऑफिस के अलावा ज्यादातर समय चौराहे पर ही रहते हैं | पहले वह घर पर सिर्फ खाने और सोने के लिए ही आते थें | मम्मी कभी-कभी गुस्से में अस्सी चौराहे को अपना 'सौत' भी बोलती थीं क्योंकि घर में क्या हो रहा क्या नहीं पापा इन सब चीजों से बेखबर अस्सी पर ही रहते थें | पापा से मिलने आने वाले भी उन्हें अस्सी पर ही खोजते थें अगर वो नहीं मिले तो सिर्फ ये तसल्ली लेने घर आते थें कि 'गुरु' गांव तो नहीं गए हैं | उस समय मुझे इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं थी कि पापा चौराहे पर क्यों रहते हैं, मुझे तो बस पापा के आने का इंतजार होता था कि आज वो बादाम, रसगुल्ला या पारले जी बिस्कुट में से क्या लाएंगे |

दो साल पहले बीएचयू मॉसकॉम में एडमिशन हुआ उसके बाद कुछ किताबे, नॉवेल और लेखकों के लेख पढ़ने लगा | उसमें कई लोगों ने 'अस्सी चौराहे' का जिक्र किया | काफी लोगों को पढ़ने के बाद (जिसमें एक 'काशी का अस्सी' भी है जो पापा जी ने 'डॉक्टर गया सिंह चाचा जी' के यहां से ला कर मुझे दी प्रमुख है) अस्सी को देखना का मेरा भी नजरिया बदला |

एक ऐसी जगह जहां लोग आपस में लड़ रहे होते हैं| एक दूकान पर कोई अमेरिका कि बात कर रहा होता तो कोई किसी गांव का | दूसरी दूकान पर सरकार बनाने से गिराने तक और एक दूसरे की पार्टी को सुद्ध बनारसी अंदाज में गरियाने का कार्यक्रम चल रहा होता है | वहीँ किसी दूकान पर अर्थव्यवस्था, चिकित्सा, शिक्षा और विश्वविद्यालय जैसे गंभीर मुद्दों पर बहस चल रही होती है| वो मुझे अच्छी लगने लगी | हालांकि अस्सी चौराहे पर मैं जल्दी नहीं जाता क्योंकि वहां पापा अपने दोस्तों के साथ बैठे रहते हैं, मगर उधर से गुजरते हुए धीरे जरूर हो जाता हैं और सारी चीजों का आनंद लेते हुए चौराहे को पार करता हूं| अस्सी घाट मुड़ने वाले रास्ते मतलब शास्त्री जी की पान की दूकान से पप्पू चाचा के चाय की दूकान तक एक अलग ही दृश्य नजर आता है जहां की बात हमेशा 'जरा हटके' ही रहती है |


अस्सी मतलब जहां चाय कि चुस्कियों के साथ आप को मिलता बनारसी अल्हड़पन | साथ ही शिक्षा, राजनीति, पत्रकारिता जैसी चीजों पर सटीक विश्लेषण | वहां पर आप देश के बड़े साहित्यकार, पत्रकार, प्रोफेसर, चिकित्सक, इंजीनियर जैसे लोगों के साथ छोटे मोटे काम कर जीवन जीने वाले लोगों को एक ही बेंच पर चाय का आनंद लेते देख सकते हैं |  

लिखने को तो बहुत कुछ है वहां के बारे में क्योंकि मैंने भी काफी करीब से देखा है चौराहे को | फिर लिखूंगा जिस दिन मन करेगा |

Monday, 14 October 2013

शुरुआत

 आज मैंने भी ब्लॉग लिखने की शुरुआत की। ईश्वर पर बहुत ज्यादा विश्वास होने की वजह से मैं हर चीज में अच्छा-बुरा दिन देखता हूं। शायद यही कारण है कि पिछले कई दिन से सोचने के बावजूद मैंने ब्लॉग बनाने या लिखने की जहमत नहीं उठाई। चूंकि आज के तारीख में मैं पैदा हुआ था इसलिए मैं आज के दिन को अपने लिए सबसे ज्यादा शुभ मानता हूं। इसके भी कई कारण हैं जिसका निचोड़ यह है कि मुझे जब जिस चीज की हसरत होती है वो मिल जाती है।

चलिए फिर शुरुआत करते हैं आज से  ।  देखते हैं ये सफर कितना दूर जाता है।