Monday, 16 September 2013

पापा, सुबह और मैं.....

पापा, सुबह और मैं.....



मगर एहसास, आज तक ताजा ही रहता.....

वह बचपन जब नींद एक आवाज से खुलती
कुछ अलग ही वो मुझमें एहसास जगाती..
मेरे नाको को दबाते,गोद में उठाते
मेरे हाथ पैर को कसरत कराते
''उठ जाओ 'मैन' सुबह हो गई''
कहते वो मुझे जगाते.....

कुछ बड़ा हुआ तो ''लड़के'' की आवाज से नींद खुलती
देर से उठने के कारण, मेरे छूटे हुए मैच का
अफ़सोस उनके चेहरे पर होता..
'बहुत थका हुआ हूं' की मेरी जब वो लाइन सुनते
''रात भर खेत जोतत रहला''
का रोज का डॉयलाग सुनाते
मेरे हाथ-पैर दबाते, कसरत कराते वो मुझे जगाते.....

कॉलेज के समय उठिए नेता जी कहकर मुझे जगाते
मगर मेरे शब्द बदले होते, अभी तो सोये हैं पापा जी
इतना सुबह-सुबह ही आप क्यों जगाते..
वो हंसते हुए 'ऐसे ही देश चलईबा नेता जी'
कहते और अखबार थमा मुझे जगाते.....

आज मैं नौकरी करता हूं
हमेशा की तरह सुबह भी होती है,
मगर इसमें कुछ उदासी सी होती है
सामने पापा के चेहरे की जगह काम की टेंशन होती है..
तभी फोन की घंटी बजती है,कैसे हैं नेता जी कि आवाज आती है
ना उनके इस प्रश्न को करने में ना मेरे जवाब में ख़ुशी होती है..
बस रोज उनके एक लाइन से फ़ोन कटती है
आ जाइये इधर ही, नौकरी तो बनारस में भी हो सकती है.....

Saturday, 14 September 2013

हिंदी नहीं आती है.....

हिंदी नहीं आती है.....




हिंदुस्तान में रहते हैं,
हिंदू मेरा धर्म, हिंदी मेरी भाषा चिल्लाते हैं
हिंदी के विषय पर व्याख्यान देने, हिंदुस्तान के विश्वविद्यालयों में जाते हैं  
मगर हिंदी में प्रश्न पूछने पर अनुवादक ढूंढते नजर आते हैं
क्योंकि उन महोदय को हिंदी नही आती है|


हिंदी माध्यम का छात्र प्रतियोगिता में अव्वल आता है,
और सेमेस्टर परीक्षा में दक्खिन लग जाता है,
क्योंकि कॉपी चेक करने वाले को हिंदी नही आती है
यू नो, आई नो करने वाला मेधावी हो जाता है,
और महोदय, माननीय बोलने वाला वॉट अ फक हो जाता है|


किसान अपनी समस्या का कोर्ट में दलील दायर करता है,
परन्तु फैसला किसके पछ में है,उसे समझ में नही आता है,
क्योकि कोर्ट का आदेश हिंदी में नहीं होता है..

मुफलिस मरीज डॉक्टर से इलाज को जाता है,
क्या रोग है क्या दवा लेना है, समझ में नही आता,
क्योंकि उस बीमारी का नाम और दवा हिंदी में नही होता है|

देश की ७५% आबादी जिसे समझ सकती है,
वह भाषा सरोकार से गम होती दिखती है,
वे समाज में जिल्लत खाते हैं, काऊ बेल्ट के कहलाते हैं,

बाकी २५% सिरमौर हो जाते हैं,
समाज के तथाकथित विद्वान कहलाते हैं,
क्योंकि वे चीखते चिल्लाते है कि,
उन्हें हिंदी नही आती है|

हिंदी नहीं आती है.....


हिंदुस्तान में रहते हैं,
हिंदू मेरा धर्म, हिंदी मेरी भाषा चिल्लाते हैं
हिंदी के विषय पर व्याख्यान देने, हिंदुस्तान के विश्वविद्यालयों में जाते हैं  
मगर हिंदी में प्रश्न पूछने पर अनुवादक ढूंढते नजर आते हैं
क्योंकि उन महोदय को हिंदी नही आती है|


हिंदी माध्यम का छात्र प्रतियोगिता में अव्वल आता है,
और सेमेस्टर परीक्षा में दक्खिन लग जाता है,
क्योंकि कॉपी चेक करने वाले को हिंदी नही आती है
यू नो, आई नो करने वाला मेधावी हो जाता है,
और महोदय, माननीय बोलने वाला वॉट अ फक हो जाता है|


किसान अपनी समस्या का कोर्ट में दलील दायर करता है,
परन्तु फैसला किसके पछ में है,उसे समझ में नही आता है,
क्योकि कोर्ट का आदेश हिंदी में नहीं होता है..

मुफलिस मरीज डॉक्टर से इलाज को जाता है,
क्या रोग है क्या दवा लेना है, समझ में नही आता,
क्योंकि उस बीमारी का नाम और दवा हिंदी में नही होता है|

देश की ७५% आबादी जिसे समझ सकती है,
वह भाषा सरोकार से गम होती दिखती है,
वे समाज में जिल्लत खाते हैं, काऊ बेल्ट के कहलाते हैं,

बाकी २५% सिरमौर हो जाते हैं,
समाज के तथाकथित विद्वान कहलाते हैं,
क्योंकि वे चीखते चिल्लाते है कि,
उन्हें हिंदी नही आती है|

हिंदी नहीं आती है.....


हिंदुस्तान में रहते हैं,
हिंदू मेरा धर्म, हिंदी मेरी भाषा चिल्लाते हैं
हिंदी के विषय पर व्याख्यान देने, हिंदुस्तान के विश्वविद्यालयों में जाते हैं  
मगर हिंदी में प्रश्न पूछने पर अनुवादक ढूंढते नजर आते हैं
क्योंकि उन महोदय को हिंदी नही आती है|


हिंदी माध्यम का छात्र प्रतियोगिता में अव्वल आता है,
और सेमेस्टर परीक्षा में दक्खिन लग जाता है,
क्योंकि कॉपी चेक करने वाले को हिंदी नही आती है
यू नो, आई नो करने वाला मेधावी हो जाता है,
और महोदय, माननीय बोलने वाला वॉट अ फक हो जाता है|


किसान अपनी समस्या का कोर्ट में दलील दायर करता है,
परन्तु फैसला किसके पछ में है,उसे समझ में नही आता है,
क्योकि कोर्ट का आदेश हिंदी में नहीं होता है..

मुफलिस मरीज डॉक्टर से इलाज को जाता है,
क्या रोग है क्या दवा लेना है, समझ में नही आता,
क्योंकि उस बीमारी का नाम और दवा हिंदी में नही होता है|

देश की ७५% आबादी जिसे समझ सकती है,
वह भाषा सरोकार से गम होती दिखती है,
वे समाज में जिल्लत खाते हैं, काऊ बेल्ट के कहलाते हैं,

बाकी २५% सिरमौर हो जाते हैं,
समाज के तथाकथित विद्वान कहलाते हैं,
क्योंकि वे चीखते चिल्लाते है कि,
उन्हें हिंदी नही आती है|

हिंदी नहीं आती है.....


हिंदुस्तान में रहते हैं,
हिंदू मेरा धर्म, हिंदी मेरी भाषा चिल्लाते हैं
हिंदी के विषय पर व्याख्यान देने, हिंदुस्तान के विश्वविद्यालयों में जाते हैं  
मगर हिंदी में प्रश्न पूछने पर अनुवादक ढूंढते नजर आते हैं
क्योंकि उन महोदय को हिंदी नही आती है|


हिंदी माध्यम का छात्र प्रतियोगिता में अव्वल आता है,
और सेमेस्टर परीक्षा में दक्खिन लग जाता है,
क्योंकी कॉपी चेक करने वाले को हिंदी नही आती है
यू नो, आई नो करने वाला मेधावी हो जाता है,
और महोदय, माननीय बोलने वाला वॉट अ फक हो जाता है|


किसान अपनी समस्या का कोर्ट में दलील दायर करता है,
परन्तु फैसला किसके पछ में है,उसे समझ में नही आता है,
क्योकि कोर्ट का आदेश हिंदी में नहीं होता है..

मुफ्लिश मरीज डॉक्टर से ईलाज को जाता है,
क्या रोग है क्या दवा लेना है, समझ में नही आता,
क्योंकि उस बीमारी का नाम और दवा हिंदी में नही होता है|

देश की ७५% आबादी जिसे समझ सकती है,
वह भाषा सरोकार से गम होती दिखती है,
वे समाज में जिल्लत खाते हैं, काऊ बेल्ट के कहलाते हैं,

]बाकी २५% सिरमौर हो जाते हैं,
समाज के तथाकथित विद्वान कहलाते हैं,
क्योकि वे चीखते चिल्लाते है कि,
उन्हें हिंदी नही आती है|

राघवेन्द्र मिश्र