हिंदुस्तान में रहते हैं,
हिंदू मेरा धर्म, हिंदी मेरी भाषा चिल्लाते हैं
हिंदी के विषय पर व्याख्यान देने, हिंदुस्तान के विश्वविद्यालयों में जाते हैं
मगर हिंदी में प्रश्न पूछने पर अनुवादक ढूंढते नजर आते हैं
क्योंकि उन महोदय को हिंदी नही आती है|
हिंदी माध्यम का छात्र प्रतियोगिता में अव्वल आता है,
और सेमेस्टर परीक्षा में दक्खिन लग जाता है,
क्योंकी कॉपी चेक करने वाले को हिंदी नही आती है
यू नो, आई नो करने वाला मेधावी हो जाता है,
और महोदय, माननीय बोलने वाला वॉट अ फक हो जाता है|
किसान अपनी समस्या का कोर्ट में दलील दायर करता है,
परन्तु फैसला किसके पछ में है,उसे समझ में नही आता है,
क्योकि कोर्ट का आदेश हिंदी में नहीं होता है..
मुफ्लिश मरीज डॉक्टर से ईलाज को जाता है,
क्या रोग है क्या दवा लेना है, समझ में नही आता,
क्योंकि उस बीमारी का नाम और दवा हिंदी में नही होता है|
देश की ७५% आबादी जिसे समझ सकती है,
वह भाषा सरोकार से गम होती दिखती है,
वे समाज में जिल्लत खाते हैं, काऊ बेल्ट के कहलाते हैं,
]बाकी २५% सिरमौर हो जाते हैं,
समाज के तथाकथित विद्वान कहलाते हैं,
क्योकि वे चीखते चिल्लाते है कि,
उन्हें हिंदी नही आती है|
राघवेन्द्र मिश्र
मगर हिंदी में प्रश्न पूछने पर अनुवादक ढूंढते नजर आते हैं
क्योंकि उन महोदय को हिंदी नही आती है|
हिंदी माध्यम का छात्र प्रतियोगिता में अव्वल आता है,
और सेमेस्टर परीक्षा में दक्खिन लग जाता है,
क्योंकी कॉपी चेक करने वाले को हिंदी नही आती है
यू नो, आई नो करने वाला मेधावी हो जाता है,
और महोदय, माननीय बोलने वाला वॉट अ फक हो जाता है|
किसान अपनी समस्या का कोर्ट में दलील दायर करता है,
परन्तु फैसला किसके पछ में है,उसे समझ में नही आता है,
क्योकि कोर्ट का आदेश हिंदी में नहीं होता है..
मुफ्लिश मरीज डॉक्टर से ईलाज को जाता है,
क्या रोग है क्या दवा लेना है, समझ में नही आता,
क्योंकि उस बीमारी का नाम और दवा हिंदी में नही होता है|
देश की ७५% आबादी जिसे समझ सकती है,
वह भाषा सरोकार से गम होती दिखती है,
वे समाज में जिल्लत खाते हैं, काऊ बेल्ट के कहलाते हैं,
]बाकी २५% सिरमौर हो जाते हैं,
समाज के तथाकथित विद्वान कहलाते हैं,
क्योकि वे चीखते चिल्लाते है कि,
उन्हें हिंदी नही आती है|
राघवेन्द्र मिश्र
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