Saturday, 30 November 2013

नो कमेंट 21 वीं सदी है...

नो कमेंट 21 वीं सदी है...


अमीर बरबाद, ज्यादा खर्च करने में
गरीब बरबाद, दो जून कि रोटी के जुगत में,
घर का भोजन, बर्बाद पिज्जा-बर्गर में
और ये फास्ट फुड कर रहे बरबाद, मिलावट के चक्कर में
                                 नो कमेंट 21 वीं सदी है ...

देश की अर्थव्यवस्था बरबाद, कमजोर विदेश नीति में
जिसे हरित क्रांति का जनक (दोआबा पंजाब) कहा जाता, वो बरबाद NRI बनने में
NRI बरबाद, विदेशों में वेटर गिरी करने में,
और देश में आए विदेशी बरबाद, ठगी के चक्कर में
नो कमेंट 21 वीं सदी है…


धर्म हो रहा बरबाद, ज्यादा धार्मिक बनने के चक्कर में
स्वामी-सात्विक हो रहे बरबाद, खुद को भगवान साबित करने में
जनाब यहां भगवान को भी लोग कर रहे बरबाद , कंपटीशन के चक्कर में
और पैसा खर्च कर भक्त हो रहे बरबाद, प्रहलाद बनने की फितरत में                                                      
                                                     नो कमेंट 21 वीं सदी है...

लड़का बरबाद, लड़की और नशा में
लड़की बरबाद, फैशन और टशन में
स्कूल-कॉलेज हो रहे बरबाद, ज्यादा एलीट बनने में
और एलिट बरबाद खुद को साबित और मेंटेन करने में

                                नो कमेंट 21 वीं सदी है...

सब हैं परेशान, बस कुछ हैं आबाद और खुशहाल,
जो एक हाथ से लूटे सब और दूसरे से पूछे देश का हाल
उस पूछ में भी छुपे होते है कई राज,  सब पर भारी भाई-भतीजा और जातीवाद
भाई आज के समय में जो ज्यादा लूट सके, दुनिया उसी को करे सलाम

                                               नो कमेंट 21वीं सदी है...

Sunday, 24 November 2013

मेरे रियल हीरो, मेरे आदर्श





मेरे एक पोस्ट पर मेरे मोहल्ले के एक सज्जन ने कमेंट किया ‘’ apne pita ke raste par mat chalo bhi soch aapki akdam apne pita ki tarah hai’’  जब से ये कमेंट इन्होने किया है मन में अजीब सी खलबली है |

सामान्य कद, मजबूत काठी, मुंह में एक भी दांत नहीं (बचपन से पान खाने कि वजह से), बड़े जिगरे वाले, एकदम निडर बेबाक और बिलकुल साधारण जीवन जीने वाले मेरे पापा जी | नाम श्री जयनारायण (मिश्र इन्होंने 10 वीं क्लास में ही हटा दिया था) विचार से कम्यनिस्ट, दोस्तों के दोस्त, एक अतुलनीय पिता,पति ,भाई या यूं कह ले हर रिश्ते को 100% निभाने वाले व्यक्ति | शायद इसी वजह से उनके दोस्त उन्हें 24 कैरेट सोने जैसा हर रिश्ते को निभाने वाला मानते हैं | लेखनी ऐसी कि बस चर्चा का विषय ही बन जाती | चाहें वो क्राइम पर हो, स्पोर्ट्स पर हो या राजनीति पर एकदम दमदार | उनका लेख ‘नजरिया लाल सलाम, भारी जलपान पार्टी (भाजपा के लिए) या आश्वाशन गुरु का आश्वाशन तो मैंने संजो कर ही रख लिया है |  

32 सालों तक एक ही अखबार में पत्रकार रहे अपने पापा को जब भी मैंने देखा उनमें मुझे रियल हीरो ही नजर आया | अपने ऑफिस और काम के प्रति ईमानदार, समाज में हो रही चीजों के प्रति संवेदनशील | किसी बुराई या अत्याचार को खत्म करने के लिए किसी के आगे हाथ जोड़ना हो या उसे बीच बाजार गाली देना हो या फिर थप्पड़ मारना हो, उन्हें ज़रा भी समय नहीं लगता | 55 से ज्यादा उम्र हो जानें के बाद और 4 लड़कियों का कन्यादान करने के बाद आज भी किसी चीज को लेकर उनका उत्साह किसी यूथ से कम नहीं दिखता |
चुनावों में अगर कम्यूनिस्ट पार्टी का कोई कैंडिडेट खड़ा है तो अकेले ही सही उसका प्रचार करते | मैंने तो यहां तक देखा है कि गाड़ी पर कम्यूनिस्ट पार्टी का झंडा लगा कर वो अकेले ही निकल जाया करते थे | जरूरत पड़ने पर माइक से खुद ही नारा लगाना शुरू कर देते थें | अपने सोच को जीने के लिए वो शर्म नहीं करते और उन्हें जो सही लगता उसे करने में वो तनिक भी शर्म नहीं करते | अन्ना हजारे के आंदोलन में अकेले भूख हड़ताल पर बैठ जाना ये बिलकुल अलग तरीके से दर्शाता है कि एक आदमी सिर्फ सही आदमी का कैसे साथ देता है | शायद कुछ लोगों को उनकी इन चीजों से भी आपत्ति होती |


जबसे होश सम्हाला उनकी आवाज पर ही नींद खुलती थी और उनके पास जाता तो सुबह के समय से ही कोई ना कोई बैठा रहता | उनसे बतियाते हुए वो मेरा हाल चाल पूछते और फिर जल्दी से नहा कर और दाल रोटी खाकर (उनका पसंदीदा भोजन) वो घर से निकल जाते | उसके बाद उनसे देर रात ही मुलाक़ात होती वो भी अगर मैं जगा रहा तो | पूछने पर बताते आज फला आदमी का एक काम था तो आज फला आदमीं के साथ वहां चले गए थें |

दर्जनों लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार का व्यवस्था करना हो या रास्ते में किसी गरीब को ठंड में सिकुड़ते देखकर अपनी शौल देना हो या अपना जूता, चौराहे पर किसी गरीब सब्जी वाले को पुलिस वाला मार रहा हो तो उसे ललकार कर उसका डंडा पकड़ लेना, मोहल्ले का हैंडपंप खराब हो या गंदा पानी आ रहा हो तो जल संस्थान के एमडी को बुलवा कर उनसे हैंडपम्प चलवाकर वही पानी पीने के लिए कहना, बिजली के लिए विधायक से लेकर अधिकारियों तक की खबर लेना उनके हमेशा के दिनचर्या में रहता | इन विषयों को अपनी लेखनी में उतार कर अधिकारियों के कान में मुद्दे डालना उनकी आदत रहती |


सच्चाई के लिए खुद के दोस्त या रिश्तेदार को भरे बाजार बेइज्जत कर देने कि वजह से कुछ लोग उन्हें पसंद भी नहीं करते | मगर स्वभाव से एकदम फक्कड़ उन्हें इन सब चीजों का कोई फर्क नहीं पड़ता | जो सही है तो बस सही है |

अपने दोस्तों के मुसीबत में सामने रखा खाना छोड़ कर बिना घड़ी में समय देखे खड़े रहने वाले मेरे पापा की सबसे खास बात है कि वो एक बार अगर किसी को अपना मान लिए तो फिर उसके लिए सब कुछ न्योछावर | और किसी चीज को करने कि जिद्द कर लें तो फिर कोई भी नहीं मना सकता | कुछ लोगों को इस से भी आपत्ति रहती है कि यार 21 वीं शदी चल रही है कुछ चीजों को इग्नोर मारना चाहिए लेकिन मेरे पापा नहीं | हर चीज के प्रति एकदम सम्वेदनशील |

मैंने उन्हें कुछ लोगों को पीटते हुए भी देखा है, कुछ लोगों का निवेदन करते हुए भी लेकिन हर जगह वो ईमानदारी दिखाते हैं | कोरे कागज की तरह जिंदगी बिता रहे हैं | किसी से कुछ नहीं छिपाना , कोई हाबा-डाबा नहीं बांधना |

हमलोगों को खुद का निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता देना चाहें वो दीदी लोगों का कोई कोर्से करना हो पीएचडी, ब्यूटिशियन, ड्राइंग या कोई और या फिर मेरा क्रिकेट खेलना या छात्र संगठन से जुड़ कर राजनीति करना | जिसका जिधर भी इंट्रेस्ट रहा वो हमेशा हम लोगों का मार्गदर्शन किये | मेरी छात्र राजनीति में रुचि देखकर अच्छे छात्रनेताओं का उदाहरण दे कर मुझे हमेशा मोटिवेट किया | खुद के कम्यूनिस्ट विचार को न लादते हुए मुझे समाजवादी चंचल जी के प्रभावशाली भाषण, मोहन प्रकाश जी के साधारण व्यक्तित्व, कम्यूनिस्ट आनंद प्रधान जी के प्रेस विज्ञप्ति (जिसमें बिंदु और क्वामा तक कि गलती नही होती थी), कांग्रेसी अनिल श्रीवास्तव के डाउन टू अर्थ व्यक्तित्व या रत्नाकर त्रिपाठी के खुद्दारी और विषय पर पकड़ के बारे में बताते ताकि मैं उसमें भी आगे जाऊं तो संतुलित रहूं | मुझे कभी कुछ करने से नहीं रोके और जीवन जीकर उससे सीख लेने के लिए कहा |

दूसरे कि समस्याओं के लिए खुद चिंतित रहना या उसके लिए दिन-रात एक कर मदद करना उनकी आदतों में शुमार है | कुंड की सफाई की जिद्द में पैर तक सड़ा लेना (जिसे ठीक होने में 2-3 साल लग गए) ये भी उनका किसी काम कप करने की जिद्द ही है |

दोस्तों के लिए किसी भी गुंडा-बदमाश से भीड़ जाने में उन्हें तनिक भी डर नही लगता | अपने बचपन के दोस्त सुशील त्रिपाठी के मृत्यू पर बच्चों की तरह रोना, खाना ना खाना ये उनका अलग रूप भी मैंने देखा है | बेईमानी कोई भी करे खुद का करीबी या कोई और उसे मना करना , गाली देना ये उनकी अलग छवि दिखाता है | ऐसे शख्स जो ज्योति बसु के विचारों से भी सहमत हो और अन्ना हजारे के भी | उनकी बेबाकी से बहुत लोग डरते हैं | शायद इसीलिए कुछ लोग मुझे उन जैसा नहीं बनने कि सलाह देते हैं |


पहले मुझे भी ऐसा लगता कि पापा जी को स्टैंडर्ड मेंटेन कर के चलना चाहिए मगर आज समझ में आता है वही आदमी खुशी है जो अपने मन का हर काम कर लेता है | और मुझे उनके व्यक्तित्व या ये कह लें कि उनके हर काम पर फक्र महसूस होता है |



ये तो कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें लिख कर शायद मेरी बैचेनी कम हो जाए | और मैं चैन से सो सकूं | और श्री मान को समझा सकूं कि होश में रह भाई.... ऐसे सुझाव मुझे मत दे.... क्योंकि मैं उनसे बढ़कर भगवान को भी नहीं मानता हूं और एकदम नहीं मानता हूं.....|      

Saturday, 16 November 2013

सचिन, बचपन और सपने

सचिन, बचपन और सपने

बचपन के वो दिन जब हम सभी दोस्तो में सिर्फ एक आदमी को कॉपी करने का धुन रहता। वह कैसे बैट पकड़ता है, वह कैसे खेलता है, उसकी स्टाइल कैसी है? बस हम इसी को कॉपी करते रहते। रोज शाम मैदान पर क्रिकेट खेलने पहुंचते और कम से कम अपने मोहल्ले या अपनी टीम का सचिन बनने का लगभग हम सभी दोस्तों कि कोशिश रहती।

ये तो हुई दिन कि बात। स्थिति तब हास्यास्पद हो जाती जब रात दो-तीन बजे पापा या मम्मी जगाते कि बाबू क्या हुआ और फिर जब मैं नॉर्मल हो जाता तो दोबारा सो जाता। फिर दिन में दीदी और पापा-मम्मी मेरे ऊपर हंसते कि रात में सोये हुए बड़बड़ा रहे थे कि भाग सचिन एक रन, सचिन चौका।

अब मैं उन लोगों को क्या बताऊं कि सपने में मैं इंडिया के लिए मैच खेल रहा था और सचिन के साथ ओपनिंग उतरा हुआ था। और सचिन से तेज मैं रन बना रहा था। सचिन मुझे सिंगल दे कर बार-बार स्ट्राइक दे रहा था और मैं चौके-छक्के मारे जा रहा था। 

मैं अब सोचता हूं कि ऐसा सिर्फ मेरे साथ नहीं होगा देश के सैकडों-हजारों बच्चों के साथ भी ऐसा होता होगा। जब मैं क्रिकेट खेलने के लिए सेंचुरी स्पोर्ट्स क्लब ज्वाइन किया और रोज डीएलडब्लू स्टेडियम जाने लगा तो वहां आने वाले खिलाड़ियों में भी सचिन बनने का धुन सवार रहता। वे भी सचिन को ही ही कॉपी करने में लगे रहते।

सचिन हमारे दिलों कि धड़कन थे। बचपन के दिनों में जिस दिन भी इंडिया का मैच रहता सुबह मेरा पेट दर्द, सर दर्द या तबियत खराब जरूर रहता और स्कूल टाइम बीतते ही सब ठीक हो जाता और मैं टीवी के पास बैठ जाता। घर वाले भी बिलकुल समझ जाते कि मेरा तबियत क्यों खराब था और डॉक्टर के पास जानें या दवाई खाने के लिए भी नहीं पूछते।

मेरे लिए क्रिकेट का मतलब ही सचिन था। मेरे पापा कहते भी दे कि अभी इतना माहोल बनइले हुआ तुरन्ते 'नटवा' (ये मेरे पापा सचिन को बोलते थे) आउट हो जाई और तू चादर ओढ़ के सूत जइबा। 

सचिन के लिए दीवानगी का आलम ये था कि एक बार मेरे घर पर तीन दिन से लाईट नहीं थी। इंडिया का श्रीलंका से मैच था। पांच मैचों में दोनों टीमें दो-दो मैच जीतकर सीरीज में बराबरी पर थीं और आखिरी वन डे एकदम फाइनल की तरह था। मैं परेशान था कि ट्रांसफार्मर कब लगेगा। लोगों से पूछने पर पता चला कि गोदाम में ट्रांसफार्मर नहीं है, लाइट आने में एक दिन और लग जाएगा।

तब तक मेरे जीजा जी घर पर आ गए। वह किसी काम से अपने गांव जा रहे थे। उस समय मेरी और उनकी बातचीत ज्यादातर क्रिकेट पर ही हुआ करती थी। आते ही पूछे यार कल का मैच तो मजेदार है। हम तुरंत बोले अरे क्या मजेदार जीजा जी यहां पर तो लाइट ही नही है और कल भी नही रहेगा। जीजा जी कहें कि चलो मेरे साथ गांव, वहां पर हम कैसे भी व्यवस्था करा के तुम्हें मैच दिखा देंगे। हम तुरंत तैयारी कर लिए। मां-पापा भी कुछ नहीं बोले और हम चले गए, उनके गांव मिर्जापुर। वहां पहुंचने पर पता चला कि लाइट नहीं है... फिर जीजा जी ने ट्रैक्टर की बैटरी निकलवाई और उससे टीवी कनेक्ट कर के हम लोग मैच देखे।

मतलब सचिन को अगर लोग भगवान कहते हैं तो एक पक्ष में यह सही भी है। क्योंकि किताबों में हम लोगों ने जितना भी मीरा का कृष्ण के प्रति प्यार और उन्हें पाने की ललक को पढ़ा है, उतना ही ललक युवा खिलाड़ियों या खेल प्रेमियों में सचिन के प्रति रहता है। हालांकि, मैं पिछले कई सालों से उतना क्रिकेट नहीं देख पाता या यूं कह ले कि अब उतना मैच के प्रति इंट्रेस्ट नही रह गया। फिर भी सचिन के प्रति कभी ये इंट्रेस्ट काम नहीं हुआ। सचिन अपना आखिरी टेस्ट मैच खेल रहे हैं और लग रहा है कि यार कोई बिछड़ सा रहा है।

हर आदमी को उम्र के परिवर्तन से एक दिन गुजरना पड़ता है और सचिन भी उसी से गुजर रहें हैं। सचिन हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे। वह सच में क्रिकेट के भगवान हैं। चलिए अब इंतजार रहेगा कि कभी इस भगवान से सीधे-सीधे मुलाकात हो जाए।