Saturday, 16 November 2013

सचिन, बचपन और सपने

सचिन, बचपन और सपने

बचपन के वो दिन जब हम सभी दोस्तो में सिर्फ एक आदमी को कॉपी करने का धुन रहता। वह कैसे बैट पकड़ता है, वह कैसे खेलता है, उसकी स्टाइल कैसी है? बस हम इसी को कॉपी करते रहते। रोज शाम मैदान पर क्रिकेट खेलने पहुंचते और कम से कम अपने मोहल्ले या अपनी टीम का सचिन बनने का लगभग हम सभी दोस्तों कि कोशिश रहती।

ये तो हुई दिन कि बात। स्थिति तब हास्यास्पद हो जाती जब रात दो-तीन बजे पापा या मम्मी जगाते कि बाबू क्या हुआ और फिर जब मैं नॉर्मल हो जाता तो दोबारा सो जाता। फिर दिन में दीदी और पापा-मम्मी मेरे ऊपर हंसते कि रात में सोये हुए बड़बड़ा रहे थे कि भाग सचिन एक रन, सचिन चौका।

अब मैं उन लोगों को क्या बताऊं कि सपने में मैं इंडिया के लिए मैच खेल रहा था और सचिन के साथ ओपनिंग उतरा हुआ था। और सचिन से तेज मैं रन बना रहा था। सचिन मुझे सिंगल दे कर बार-बार स्ट्राइक दे रहा था और मैं चौके-छक्के मारे जा रहा था। 

मैं अब सोचता हूं कि ऐसा सिर्फ मेरे साथ नहीं होगा देश के सैकडों-हजारों बच्चों के साथ भी ऐसा होता होगा। जब मैं क्रिकेट खेलने के लिए सेंचुरी स्पोर्ट्स क्लब ज्वाइन किया और रोज डीएलडब्लू स्टेडियम जाने लगा तो वहां आने वाले खिलाड़ियों में भी सचिन बनने का धुन सवार रहता। वे भी सचिन को ही ही कॉपी करने में लगे रहते।

सचिन हमारे दिलों कि धड़कन थे। बचपन के दिनों में जिस दिन भी इंडिया का मैच रहता सुबह मेरा पेट दर्द, सर दर्द या तबियत खराब जरूर रहता और स्कूल टाइम बीतते ही सब ठीक हो जाता और मैं टीवी के पास बैठ जाता। घर वाले भी बिलकुल समझ जाते कि मेरा तबियत क्यों खराब था और डॉक्टर के पास जानें या दवाई खाने के लिए भी नहीं पूछते।

मेरे लिए क्रिकेट का मतलब ही सचिन था। मेरे पापा कहते भी दे कि अभी इतना माहोल बनइले हुआ तुरन्ते 'नटवा' (ये मेरे पापा सचिन को बोलते थे) आउट हो जाई और तू चादर ओढ़ के सूत जइबा। 

सचिन के लिए दीवानगी का आलम ये था कि एक बार मेरे घर पर तीन दिन से लाईट नहीं थी। इंडिया का श्रीलंका से मैच था। पांच मैचों में दोनों टीमें दो-दो मैच जीतकर सीरीज में बराबरी पर थीं और आखिरी वन डे एकदम फाइनल की तरह था। मैं परेशान था कि ट्रांसफार्मर कब लगेगा। लोगों से पूछने पर पता चला कि गोदाम में ट्रांसफार्मर नहीं है, लाइट आने में एक दिन और लग जाएगा।

तब तक मेरे जीजा जी घर पर आ गए। वह किसी काम से अपने गांव जा रहे थे। उस समय मेरी और उनकी बातचीत ज्यादातर क्रिकेट पर ही हुआ करती थी। आते ही पूछे यार कल का मैच तो मजेदार है। हम तुरंत बोले अरे क्या मजेदार जीजा जी यहां पर तो लाइट ही नही है और कल भी नही रहेगा। जीजा जी कहें कि चलो मेरे साथ गांव, वहां पर हम कैसे भी व्यवस्था करा के तुम्हें मैच दिखा देंगे। हम तुरंत तैयारी कर लिए। मां-पापा भी कुछ नहीं बोले और हम चले गए, उनके गांव मिर्जापुर। वहां पहुंचने पर पता चला कि लाइट नहीं है... फिर जीजा जी ने ट्रैक्टर की बैटरी निकलवाई और उससे टीवी कनेक्ट कर के हम लोग मैच देखे।

मतलब सचिन को अगर लोग भगवान कहते हैं तो एक पक्ष में यह सही भी है। क्योंकि किताबों में हम लोगों ने जितना भी मीरा का कृष्ण के प्रति प्यार और उन्हें पाने की ललक को पढ़ा है, उतना ही ललक युवा खिलाड़ियों या खेल प्रेमियों में सचिन के प्रति रहता है। हालांकि, मैं पिछले कई सालों से उतना क्रिकेट नहीं देख पाता या यूं कह ले कि अब उतना मैच के प्रति इंट्रेस्ट नही रह गया। फिर भी सचिन के प्रति कभी ये इंट्रेस्ट काम नहीं हुआ। सचिन अपना आखिरी टेस्ट मैच खेल रहे हैं और लग रहा है कि यार कोई बिछड़ सा रहा है।

हर आदमी को उम्र के परिवर्तन से एक दिन गुजरना पड़ता है और सचिन भी उसी से गुजर रहें हैं। सचिन हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे। वह सच में क्रिकेट के भगवान हैं। चलिए अब इंतजार रहेगा कि कभी इस भगवान से सीधे-सीधे मुलाकात हो जाए।  

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