Friday, 11 September 2015

मीट पर बैन का प्याज कनेक्शन... थोड़ी पॉलिटिक्स, थोड़ी इकोनॉमिक्स

कुछ सरकारें मीट पर बैन लगा रही हैं। कहा जा रहा है कि जैन धर्म के पवित्र पर्यूषण (उपवास का त्योहार) पर्व को देखते हुए यह बैन है। इसके तहत मुंबई की दो नगर पालिका, गुजरात के अहमदाबाद, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में मीट पर बैन है। सुना है कि मीट बनाने में प्याज की ज्यादा खपत होती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि प्याज की बिक्री कम करने और प्याज को लेकर मचे हंगामे को देखकर ऐसा निर्णय लिया जा रहा है। प्याज पर बैन में थोड़ी इकोनॉमिक्स हो सकती है तो थोड़ी पॉलिटिक्स। 

प्याज की बढ़ती कीमतों से सरकारें हमेशा से डरी रहती हैं। प्याज की बढ़ती कीमतों के कारण ही कई नेताओं की गद्दी छीनी है। कई बार इसने सियासत का रूख बदला है। ऐसे में मीट बंद होने का कारण प्याज भी हो सकता है। वैसे जिन-जिन जगहों पर प्याज पर बैन लग रहा है वहां सरकार में बीजेपी ही है। प्याज की बढ़ती कीमतों को लेकर लोग केंद्र की एनडीए सरकार पर निशाना साधने लगे हैं, ऐसे में बीजेपी शासित राज्य कहीं इसी तरह से केंद्र की मदद तो नहीं कर रहे हैं। 

दूसरी तरफ यह भी हो सकता है बीजेपी जैन धर्म के वोटर्स को अपने पक्ष में करने के लिए ऐसा कर रही हो। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि जैन धर्म के पर्व के दौरान मुंबई में मीट पर बैन का प्रस्ताव साल 1994 में कांग्रेस सरकार लाई थी। 10 साल बाद दो दिनों के बैन को बढ़ा कर चार दिन कर दिया गया। हालांकि, इसे कभी पूरी तरह से लागू नहीं किया गया।

इकोनॉमिक्स कहती है कि किसी चीज को ज्यादा बेचना हो तो उसके दाम में थोड़ी सी गिरावट ला दें। या फिर किसी चीज का दाम ज्यादा होने से बाजार में हाहाकार मचा हो तो उसकी खपत कम कर दें। तो ऐसा भी हो सकता है कि यहां इकोनॉमिक्स लग रही हो। कुछ दिन ही सही प्याज की बिक्री बंद हो जाए तो प्याज के दाम पर असर भी पड़ जाए। 

वैसे मुंबई के दो नगर पालिका (17 और 20 सितंबर को), गुजरात के अहमदाबाद (11 सितंबर से 18 सितंबर तक), राजस्थान (17,18 और 27 सितंबर को), छत्तीसगढ़ (10 से 18 सितंबर तक) और पंजाब (17 सितंबर को) मीट पर बैन लगाने से कितना फर्क पड़ सकता है, यह तो कोई बड़ा अर्थशास्त्री ही बता सकता है।

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Wednesday, 2 September 2015

नए जमाने का श्लोगन है, Life is short. Have an affair

दो दिन की जिंदगी है, जी लो यार। आज कर लो मजा, कल किसने देखा है। जिंदगी जीने के लिए होती है, जी भर के इंजॉय करो। अब ऐसे श्लोगन के दिन लद गए। अब के श्लोगन हैं, "Life is short. Have an affair" (जिंदगी छोटी है, बनाएं रिश्ते")। कुछ यूथ कहते हैं कि इंटलेक्चुअल दिखने के लिए एक कुर्ता, एक बैग, एक हाथ की उंगलियों में सिगरेट तो दूसरे हाथ में बियर की बॉटल होना जरूरी है। कुछ कहते हैं कि प्यार कहीं भी कहीं भी हो सकता है और सेक्स तक पहुंच कर ही मामला स्थिर होता है। कुछ कहते हैं सेल्फ कॉन्फिडेंस को बढ़ाने के लिए सिगरेट-बियर पीते हैं। कुछ कहते हैं ज्यादा गर्लफ्रैंड/ब्वॉयफ्रेंड मतलब ज्यादा एक्सपीरियंस, बाकी तो लोग जिंदगी काटते हैं। 

इंटरनेट का जमाना है और इसने जिंदगी को बहुत आसान बना दिया है। आजकल देखें तो साल 2001 में लॉन्च कनाडा की एक साइट वर्ल्ड वाइड की चर्चा में टॉप पर है। उसका नाम एश्लेमैडिसन है। यह डेटिंग साइट उन लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गई है जो या तो शादीशुदा हैं या किसी रिलेशनशिप में कमिटेड हैं। इसके चर्चा में आने का कारण इसके मेंबर्स के डेटा की चोरी है। वैसे तो हर चोरी के बाद चोर के नाम का खुलासा होता है, लेकिन इस चोरी के बाद चोर के नाम से ज्यादा चोरी की गई लिस्ट में शामिल मेंबर्स की ज्यादा चर्चा हुई। होगी भी क्यों न, वे नए तरीके से जिंदगी को जीने जो निकले थे।

साइट के यूजर्स में सबसे ज्यादा तादात भारतीयों और अमेरिकियों की है। ऐसी खबरें है कि इस साइट पर 100 से ज्यादा यूएस के सरकारी कर्मचारी ने भी रजिस्ट्रेशन कराया है। इनमें व्हाइट हाउस, कांग्रेस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के कर्मचारी के अकाउंट भी हैं। भारतीयों से जुड़े कई चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए हैं। इसके मुताबिक, इस वेबसाइट को करीब 2.75 लाख भारतीय इस्तेमाल करते थे। साल 2008 से 2015 के बीच कुल 5,236 भारतीयों ने इस साइट पर 2.4 करोड़ रुपए खर्च किए। शायद यही बदलता भारत है।

15 जुलाई 2015 को कुछ हैकर्स ने इसका सारा कस्टमर डेटा (ईमेल्स, घर के पते, यूजर्स की सेक्सुअल फैंटेसी, क्रेडिट कार्ड इन्फॉर्मेशन) चुरा ली और उसे इस वेबसाइट को बंद न किए जाने पर उसे पोस्ट करने की धमकी दी। हैकर्स ने इसका कुछ डेटा 18 अगस्त को पोस्ट कर दिया। वहीं, एश्ले मैडिसन की पैरेंट कंपनी ‘Avid Life Media’ का कहना है कि, हैकिंग के बाद भी इस पर हजारों लोगों ने पिछले सप्ताह साइन अप किया है।

मामला सिर्फ इतना है कि लोग बदल रहे हैं। शौक बदल रहा है। लोग बंधन से बाहर आ रहे हैं। हर चीजों की तरह सेक्स को भी लेकर प्रयोग होने लगे हैं। कुछ जानकारों का मानना है कि आर्थिक तौर पर स्वतंत्र होने के बाद से ही लोग ऐसी स्वतंत्रता के बारे में सोचते हैं। बस एक सवाल है कि क्या यह सांस्कृतिक मूल्यों में आ रहे बदलाव की ओर एक इशारा है या कुछ और? या फिर बदलते भारत की एक तस्वीर?


नीचे बस कुछ डेटा हैं...
शहर                              एश्लेमैडिसन यूजर्स
दिल्ली                          38562
मुंबई                            33036
चेन्नई                          16434
हैदराबाद                      12825
कोलकाता                    11807
बेंगलुरु                        11561
अहमदाबाद                  7009
चंडीगढ़                        2918
जयपुर                          5045
लखनऊ                      3885
पटना                         2524

किस शहर ने कितना खर्च किया
शहर                              एश्लेमैडिसन पर खर्च रकम (लाख रुपए में)
मुंबई                             45
बेंगलुरु                          35
नई दिल्ली                     34
पुणे                               16
चेन्नई                          13
गुड़गांव                        12
हैदराबाद                      10
कोलकाता                     6
अहमदाबाद                  5
नोएडा                          4