Friday, 25 December 2015

बढ़ते प्रदूषण से विश्व चिंतित, दिल्ली में ऑड-ईवन फॉर्मूला तो चीन में दूसरी बार रेड अलर्ट

पर्यावरण से की गई मनमानी छेड़ -छाड़ के गंभीर नतीजे सामने आने लगे हैं। दुनिया को अपनी जकड़ में घेरते  प्रदूषण को लेकर पूरे विश्व में हाहाकार मचा हुआ है। चीन की राजधानी बीजिंग में जहां दूसरी बार रेड अलर्ट जारी किया गया है, वहीं हाईकोर्ट की फटकार के बाद दिल्ली में अब ऑड-ईवन नंबर फार्मूला लागू कर प्रदूषण को कम करने की कोशिश की गई है। इसके मुताबिक, दिल्ली में अब ऑड-ईवन कैटेगरी की गाड़ियां अल्टरनेट डेज में चलाई जाएगी।  इसे 1 जनवरी, 2016 से लागू किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली-एनसीआर में 2000 सीसी से ज्यादा की नई डीजल कारों के रजिस्ट्रेशन पर 31 मार्च तक रोक लगा दी है। बताते चलें कि इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी, 'दिल्ली में रहना अब गैस चैंबर में रहने जैसा हो गया है। वहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी बढ़ते प्रदूषण को लेकर दि‍ल्ली सरकार पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया था।

पर्यावरण हमारे शरीर को सबसे अधिक प्रभावित करता है और प्रदूषित पर्यावरण धीमे जहर की तरह काम करता है। भारत में हालात काफी चिंताजनक हैं और एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 20 सबसे ज्यादा एयर पॉल्यूशन वाले शहरों में 13 भारत के हैं, जिनमें  राजधानी दिल्ली टॉप पर है। हालात की गंभीरता बस इस उदाहरण से समझी जा सकती है कि विश्व के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश चीन ने, अपनी जनता को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को समझाने के लिए मुंबई और इलाहाबाद जैसे भारतीय शहरों के पर्यावरण के मुद्दे को उठाया है। वांगफुजिंग सिटी में तो प्रदूषण के दुष्परिणाम के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए इन भारतीय शहरों के चित्रों को प्रदर्शित करते विज्ञापन लगाए गए हैं।

हाल ही में पेरिस में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में उद्योगों, वाहनों और विलासी उपभोग की वस्तुओं के चलते खतरनाक तरीके से बढ़ रहे कार्बन के स्तर पर सभी देशों ने चिंता जताई। इस सम्मेलन का लक्ष्य जलवायु पर एक कानूनी बाध्यकारी, सार्वभौम समझौते के साथ-साथ, ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना था। समिट में  विकसित देशों की विलासितापूर्ण जीवनशैली से हो रही बिजली की खपत के चलते बढ़ रहे कार्बन उत्सर्जन का सवाल उठाते हुए यह तय किया गया कि सभी देश सस्टेनबल लाइफ स्टाइल (कम से कम विलासितापूर्ण जीवन) की कोशिश करेंगे और विकसित देश इसके लिए सबसे पहले कदम उठाएंगे। इस पहल के तहत उपभोग की चीजों की खपत और उनका उत्पादन कम किया जाएगा।

30  नवंबर से 11 दिसंबर तक चले इस सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पश्चिमी देशों को उनके रहन-सहन को लेकर सलाह दी। समिट के पहले दिन दिए गए अपने भाषण में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि विकसित देशों की विलासितापूर्ण जीवनशैली से पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है। भारत ने इस बात पर भी जोर दिया कि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को औद्योगिकरण युग से पहले के तापमान स्तर के 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर लाने के लक्ष्य के लिए जरूरी है कि विकसित देश ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 'व्यापक रूप से' घटाएं और विकासशील देशों में वित्तीय मदद बढ़ाएं। इस सम्मेलन में सभी राष्ट्र जहरीली होती जलवायु को लेकर काफी चिंतित और मुखर दिखे। विनाशकारी जीवन-शैली को लेकर जिस साफगोई से पेरिस सम्मेलन में बातें कही गईं, वैसी पिछली बार लीमा में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में नहीं की गई थी। 

इसी हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे अमेरिकी राजदूत रिचर्ड राहुल वर्मा भी गंगा का हाल देखकर व्यथित दिखे। उन्होंने कहा कि भारत में पर्यावरण को शुद्ध और स्वच्छ रखने के लिए गंगा का निर्मलीकरण बेहद जरूरी है और अगर गंगा नदी को स्वच्छ कर लिया गया, तो यहां के पर्यावरण में शुद्धता का प्रतिशत कई गुना बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को शुद्ध करना और इसे शुद्ध रखना बहुत बड़ी चुनौती है और इसकी जिम्मेदारी इस धरती पर रह रहे सभी नागरिकों की है। 

चीन में लगातार आ रही जहरीली धुंध से समझा जा सकता है कि प्रदूषण किस तरह से  हमारी वायु, जल और खाद्य पदार्थों को प्रभावित करता है। विश्व में बढ़ रहा जहरीला प्रदूषण मानव निर्मित है और इसे सब एकजुट होकर ही बचा सकते हैं। भारत में भी पर्यावरण की स्थिति सुधारने की दिशा में पहल करते हुए, शहरी आबादी पर जरूरी उपायों को अमल कराने के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं, जिसका ताजा उदाहरण दिल्ली में देखने को मिल रहा है। हमें यह पृथ्वी अपने पूर्वजों से प्रदूषण रहित मिली थी और हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को इसे प्रदूषण रहित ही सौंपना होगा।

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