Wednesday, 13 January 2016

रोटी-पानी की कमी से किसानों की मौत, फेसबुक-ट्विटर से परे हकीकत भी देखिए

एक तरफ हम 4जी और बुलेट ट्रेन की बात करते हैं और दूसरी तरफ देश के कई हिस्से में लोगों के पास भोजन (खाना), पानी और मकान नहीं है। एक तरफ खबरें बनती हैं कि फला सिलेब्रिटी की पार्टी में इतने करोड़ रुपए खर्च हुए या फला नेता के कार्यक्रम में इतने करोड़ खर्च। दूसरी तरफ खबर बनती है कि पार्टी के बाद छोड़ा हुआ खाना खाने के लिए लगी लंबी लाइन। यह अंतर क्यों और कैसे, एक गंभीर विषय है। 

बात बुंदेलखंड की करते हैं। यह दो राज्यों की सीमाओं उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आता है। दोनों जगह दो सरकारें हैं। यूपी में जहां अखिलेश यादव सीएम हैं, वहीं एमपी में शिवराज सिंह चौहान। दोनों को प्रोग्रेसिव कहा जाता है। दोनों विकास की बात करते हुए समय-समय पर अपनी उपलब्धियां गिनाते रहते हैं। एक तरफ केंद्र सरकार भी है, जो देश की तस्वीर बदलने के वायदे के साथ आई है। लगभग दो साल हो गए, शायद बुंदेलखंड उसे अभी तक नहीं दिखा। संभवत: सरकारें भी अब फेसबुक-ट्विटर पर चलने लगी हैं। जमीनी हकीकत से इत्तेफाक रखना कोई नहीं चाहता। 

सरकारी आंकड़े की बात करें तो बुंदेलखंड में साल 1987 के बाद से अबतक 19 सूखे पड़ चुके हैं। जाहिर है, धीरे-धीरे लोगों को इसकी आदत भी पड़ गई होगी। लेकिन, इस बार स्थिति और बिगड़ गई है। लोगों के पास खाने के अनाज के साथ-साथ पीने के लिए पानी तक नहीं है। ग्राउंड वाटर बेहद नीचे जा रहा है। कई इलाकों में पानी खत्म हो चुका है। कुछ लोग गंदे नदी-नालों का पानी पीने को मजबूर हैं। पानी की तलाश में लोग जान तक गवां रहे हैं। जो सक्षम हैं, वह गांव छोड़कर शहर में पलायन कर रहे हैं। अक्षम संघर्ष कर रहे हैं और नहीं कर पा रहे तो सुसाइड कर रहे हैं। 

एक सर्वे के मुताबिक, बुंदेलखंड में पिछले एक महीने में एक औसत परिवार ने महीने में सिर्फ 13 दिन ही सब्जी खाई। सामान्य परिवार भी महीने में सिर्फ 4 दिन ही दाल खा रहे हैं। वहीं, बिल्कुल गरीब परिवार के लोगों ने पूरे महीने में एक बार भी दाल नहीं खाई। 79 फीसदी परिवार पिछले कुछ महीने में कभी न कभी रोटी या चावल को सिर्फ नमक-चटनी के साथ खाने को मजबूर हुए हैं। जबकि, एक तिहाई से अधिक परिवारों को खाना मांगना पड़ा। 

एक एनजीओ के सर्वे के अनुसार, यूपी के हिस्से वाले बुंदेलखंड में 375597 लोगों घर छोड़ पलायन कर चुके हैं। वहीं, एमपी के हिस्से वाले बुंदेलखंड से 2,183,877 लोगों ने घर छोड़ा है। 
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार बुंदेलखंड में 2009 में 568, 2010 में 583, 2011 में 519, 2012 में 745, 2013 में 750 और 2014 तक 58 किसानों ने सुसाइड की। मतलब पिछले 6 साल में 3223 से अधिक किसानों ने सुसाइड की। गौर करिएगा, ये आंकड़े 2009 से हैं, जबकि किसान की मौतें इससे पहले से होती आ रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ओलावृष्टि से भारी नुकसान से परेशान मार्च 2015 से जुलाई 2015 तक 350 से अधिक किसानों ने सुसाइड किया। अगस्त-सितंबर 2015 में बारिश नहीं होने पर अब तक 100 से अधिक किसान मौत को गले लगा चुके हैं।

तस्वीर साफ है। लोगों को रोटी, पानी नहीं मिल रहा है और परेशान लोग घर छोड़ पलायन कर रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो पलायन भी नहीं कर सकते वह मौत को गले लगा रहे हैं। सरकारी मदद कागज पर ही सिमट के रह जा रहे हैं। कमी कहां है, नहीं पता है। कौन जिम्मेदार है और कौन जवाबदेह है, नहीं पता। लेकिन, एक बात साफतौर पर कही जा सकती है कि अमीर-गरीब के बीच फासलें बढ़ रहे हैं। शायद इसीलिए गरीब मौत को गले लगा रहे हैं। 

Friday, 25 December 2015

बढ़ते प्रदूषण से विश्व चिंतित, दिल्ली में ऑड-ईवन फॉर्मूला तो चीन में दूसरी बार रेड अलर्ट

पर्यावरण से की गई मनमानी छेड़ -छाड़ के गंभीर नतीजे सामने आने लगे हैं। दुनिया को अपनी जकड़ में घेरते  प्रदूषण को लेकर पूरे विश्व में हाहाकार मचा हुआ है। चीन की राजधानी बीजिंग में जहां दूसरी बार रेड अलर्ट जारी किया गया है, वहीं हाईकोर्ट की फटकार के बाद दिल्ली में अब ऑड-ईवन नंबर फार्मूला लागू कर प्रदूषण को कम करने की कोशिश की गई है। इसके मुताबिक, दिल्ली में अब ऑड-ईवन कैटेगरी की गाड़ियां अल्टरनेट डेज में चलाई जाएगी।  इसे 1 जनवरी, 2016 से लागू किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली-एनसीआर में 2000 सीसी से ज्यादा की नई डीजल कारों के रजिस्ट्रेशन पर 31 मार्च तक रोक लगा दी है। बताते चलें कि इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी, 'दिल्ली में रहना अब गैस चैंबर में रहने जैसा हो गया है। वहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी बढ़ते प्रदूषण को लेकर दि‍ल्ली सरकार पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया था।

पर्यावरण हमारे शरीर को सबसे अधिक प्रभावित करता है और प्रदूषित पर्यावरण धीमे जहर की तरह काम करता है। भारत में हालात काफी चिंताजनक हैं और एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 20 सबसे ज्यादा एयर पॉल्यूशन वाले शहरों में 13 भारत के हैं, जिनमें  राजधानी दिल्ली टॉप पर है। हालात की गंभीरता बस इस उदाहरण से समझी जा सकती है कि विश्व के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश चीन ने, अपनी जनता को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को समझाने के लिए मुंबई और इलाहाबाद जैसे भारतीय शहरों के पर्यावरण के मुद्दे को उठाया है। वांगफुजिंग सिटी में तो प्रदूषण के दुष्परिणाम के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए इन भारतीय शहरों के चित्रों को प्रदर्शित करते विज्ञापन लगाए गए हैं।

हाल ही में पेरिस में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में उद्योगों, वाहनों और विलासी उपभोग की वस्तुओं के चलते खतरनाक तरीके से बढ़ रहे कार्बन के स्तर पर सभी देशों ने चिंता जताई। इस सम्मेलन का लक्ष्य जलवायु पर एक कानूनी बाध्यकारी, सार्वभौम समझौते के साथ-साथ, ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना था। समिट में  विकसित देशों की विलासितापूर्ण जीवनशैली से हो रही बिजली की खपत के चलते बढ़ रहे कार्बन उत्सर्जन का सवाल उठाते हुए यह तय किया गया कि सभी देश सस्टेनबल लाइफ स्टाइल (कम से कम विलासितापूर्ण जीवन) की कोशिश करेंगे और विकसित देश इसके लिए सबसे पहले कदम उठाएंगे। इस पहल के तहत उपभोग की चीजों की खपत और उनका उत्पादन कम किया जाएगा।

30  नवंबर से 11 दिसंबर तक चले इस सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पश्चिमी देशों को उनके रहन-सहन को लेकर सलाह दी। समिट के पहले दिन दिए गए अपने भाषण में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि विकसित देशों की विलासितापूर्ण जीवनशैली से पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है। भारत ने इस बात पर भी जोर दिया कि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को औद्योगिकरण युग से पहले के तापमान स्तर के 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर लाने के लक्ष्य के लिए जरूरी है कि विकसित देश ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 'व्यापक रूप से' घटाएं और विकासशील देशों में वित्तीय मदद बढ़ाएं। इस सम्मेलन में सभी राष्ट्र जहरीली होती जलवायु को लेकर काफी चिंतित और मुखर दिखे। विनाशकारी जीवन-शैली को लेकर जिस साफगोई से पेरिस सम्मेलन में बातें कही गईं, वैसी पिछली बार लीमा में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में नहीं की गई थी। 

इसी हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे अमेरिकी राजदूत रिचर्ड राहुल वर्मा भी गंगा का हाल देखकर व्यथित दिखे। उन्होंने कहा कि भारत में पर्यावरण को शुद्ध और स्वच्छ रखने के लिए गंगा का निर्मलीकरण बेहद जरूरी है और अगर गंगा नदी को स्वच्छ कर लिया गया, तो यहां के पर्यावरण में शुद्धता का प्रतिशत कई गुना बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को शुद्ध करना और इसे शुद्ध रखना बहुत बड़ी चुनौती है और इसकी जिम्मेदारी इस धरती पर रह रहे सभी नागरिकों की है। 

चीन में लगातार आ रही जहरीली धुंध से समझा जा सकता है कि प्रदूषण किस तरह से  हमारी वायु, जल और खाद्य पदार्थों को प्रभावित करता है। विश्व में बढ़ रहा जहरीला प्रदूषण मानव निर्मित है और इसे सब एकजुट होकर ही बचा सकते हैं। भारत में भी पर्यावरण की स्थिति सुधारने की दिशा में पहल करते हुए, शहरी आबादी पर जरूरी उपायों को अमल कराने के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं, जिसका ताजा उदाहरण दिल्ली में देखने को मिल रहा है। हमें यह पृथ्वी अपने पूर्वजों से प्रदूषण रहित मिली थी और हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को इसे प्रदूषण रहित ही सौंपना होगा।

Tuesday, 24 November 2015

आमिर खान साहब...कुछ तो फर्ज निभाइए

बॉलीवुड स्टार आमिर खान ने असहिष्णुता पर बयान दिया। वह भी एक ऐसे समारोह में जहां देश के बड़े पत्रकारों के साथ-साथ सरकार तक उनकी बात पहुंचा सकने वाले कद्दावर केंद्रीय मंत्री बैठे थे। इस देश में संवैधानिक रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। हर किसी को अपना पक्ष रखने का अधिकार है, तो आमिर ने भी अपने अधिकार का प्रयोग किया। इसके साथ ही एक वाजिब जगह पर रखने के लिए भी बधाई। लेकिन... इस लेकिन में ही दो प्रश्न हैं... 

आमिर खान, आपको लोग मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहते हैं। लेकिन, क्या आपने सहिष्णुता/असहिष्णुता पर दिए बयान में वह परफेक्शन दिखाया है। आपने पुरस्कार वापसी का समर्थन करते हुए कहा, यह क्रिएटिव लोगों का विरोध का तरीका है। यह आपका तर्क है कि आप किसे पसंद करते हैं, किसे नहीं। लेकिन, आपने कहा, 'मेरी पत्नी ने मुझसे कहा था, क्या हमें देश छोड़ना चाहिए।' यह बात चुभ सी गई। इस स्टेटमेंट में मुझे आप असहिष्णु दिखे। इसके लिए मेरे पास दो तर्क हैं।

पहला तर्क- इस देश के लोग 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' कहा जाता है। स्वर्ग, में कुछ कमियां हो सकती हैं, लेकिन लोग उसे छोड़ते नहीं है। ऐसा होता तो लोग नर्क की कामना करते। इसी स्वर्ग रूपी जननी ने आपको इतना दिया है कि आप दूसरे देश में जा कर बसने की बात सोच सकते हैं। इसके बावजूद आप या आपकी पत्नी इस तरह की बात करेंगे तो दूसरों का क्या होगा। 

दूसरा तर्क- आमिर खान, आप एक सिलेब्रिटी हैं। आपकी फिल्में कम भी कमाई करती हैं तो 2-3 सौ करोड़ का कारोबार करती हैं। लेकिन, एक परफेक्शनिस्ट सिर्फ अपने बारे में सोचे तो बड़ा अजीब लगता है। आप उनके बारे में भी सोचिए, जिनके पास इतने पैसे नहीं है। हर कोई देश छोड़कर जाने की सोचने भी लगे, तो क्या वह आर्थिक रूप से इतना मजबूत है कि कहीं और बस सकता है?

आमिर खान, हो सकता है बीते दिनों लव जिहाद, दादरी, बीफ, पाकिस्तान चले जाओ, साहित्यकारों की हत्या, जैसी घटनाओं से आप या आपके परिवार को डर लगा हो। शादी से पहले आपकी पत्नी हिंदू थी तो शायद आप लव जिहाद के मुद्दे से डर गए हों। यह भी हो सकता है कि आप बीफ खाए हों, या खाना पसंद करते हों तो बीफ केस से डरे हों। फिर कलीबुर्गी की हत्या ने आप में डर पैदा किया हो। लेकिन, आप जैसा मजबूत सिलेब्रिटी डरेगा तो दूसरों का क्या होगा। 

आमिर खान, आप इस डर के खिलाफ आवाज बुलंद कर सकते हैं। अपने तर्कों के साथ अपना पक्ष रख सकते हैं। आपके आने से कमजोर लोगों को भी मजबूती मिलेगी। डर से भागिए से बेहतर लड़ना है। देश ने आपको बहुत कुछ दिया है, कुछ तो कर्ज उतारिए, कुछ तो फर्ज निभाइए।

#Aamir khan   #Intolerance  #IntolerantNation 

Wednesday, 28 October 2015

13 साल की रेप पीड़िता ने लड़की को दिया जन्म, दोषी कौन-कौन?

यूपी के बाराबंकी में 13 साल की एक बच्ची के साथ 17 साल का एक लड़का रेप करता है। फिर धमकी देता है कि किसी को बताया तो घरवालों को मार डालेगा। डरी बच्ची किसी से भी इसका जिक्र नहीं करती है। छह महीने तक उस मासूम को अपने शरीर में हो रहे परिवर्तन के बारे में कुछ नहीं पता चलता। एक दिन उसकी तबीयत बिगड़ने पर परिवार के लोग उसे हॉस्पिटल ले जाते हैं और वहां सोनोग्राफी टेस्ट में सामने आता है कि वह प्रेग्नेंट है। इसके बात परिवार के लोगों के जोर देने पर बच्ची उन्हें रेप के बारे में बताती है।

तय करिए कौन दोषी है...

8 जुलाई को मासूम के पिता ने इसकी शिकायत पुलिस से की। वहां से उन्हें प्रॉपर रिस्पॉंस नहीं मिला। इसके बाद गर्भपात की इजाजत लेने के लिए परिवार के लोग बाराबंकी मजिस्ट्रेट कोर्ट गए, लेकिन वहां से उन्हें जिला अस्पताल भेज दिया गया। 18 अगस्त को परिवार सीएमओ से मिला तो उन्होंने कोर्ट जाने के लिए कह दिया। इसके बाद परिवार इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा। 7 सितंबर को कोर्ट ने कहा कि पहले मेडिकल जांच कराओ। जांच के बाद डॉक्टरों की टीम ने यह कहकर गर्भपात की इजाजत देने से मना कर दिया कि गर्भ साढ़े सात महीने का हो चुका है। बच्ची का जान जा सकती है। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद मासूम को क्वीन मैरी मेडिकल कॉलेज में बीते 10 सितंबर से डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया था। 26 अक्टूबर को मासूम ने एक मासूम लड़की को जन्म दिया।

 तय करिए दोषी कौन-कौन है... 

अपनी बेबसी को लेकर हॉस्पिटल में नवजात के साथ समय काट रही मासूम की मदद के लिए तीन दिन के बाद भी कोई नहीं पहुंचा। जनता की हिमायती बनने वाली मोदी सरकार हो या मुस्कुराइए आप यूपी में है का नारा बुलंद करने वाली अखिलेश सरकार, मैं फोटो खिंचाने के लिए गरीबों के पास नहीं जाता कहने वाले राहुल गांधी हो या कोई भी नेता। न तो कोई एनजीओ पहुंची, न तो व्यक्ति।

 तय करिए कौन दोषी है...

सवाल यह है कि बच्ची के भविष्य के साथ-साथ उस बच्चे का क्या होगा, जो दुनिया में एक जुल्म की वजह से आया है। हंसने-खेलने की उम्र में रेप और फिर प्रेग्नेंसी की पहाड़ जैसी तकलीफ से लड़ने वाली मासूम क्या करेगी। वह मासूम अपनी बच्ची का शक्ल नहीं देखना चाहती। सिर्फ रो रही है। 

तय करिए दोषी कौन है ...

बच्ची के पिता कहते हैं, ''आखि‍र अब हम पड़ोसियों, रिश्तेदारों और समाज से कैसे आंख मि‍ला पाएंगे। साहब, इज्जत उतर गई है हमारी। मजदूरी कर घर चलाता हूं। बड़ी बि‍टि‍या इंटर में है। उसकी एक छोटी बहन और एक भाई है। ऐसे में अब उनका क्‍या होगा? वे कहते हैं, ''साहब, उस बच्‍ची को लेकर तो वे घर नहीं जाएंगे। बच्‍ची को हॉस्पिटल में ही छोड़ देंगे। मुनि‍या तो हमारी बच्‍ची है, अभी तक उसने ठीक से होश भी नहीं संभाला है।''


तय करिए कौन है दोषी...

मासूम के पिता कहते हैं, ''साहब, आरोपी के घर की चौखट पर कई बार मत्‍था तक टेक चुका हूं, लेकि‍न वो कहते हैं कि बेटा जेल में सड़ जाए, लेकि‍न न तो मुनि‍या को अपनाएंगे और ना ही उसके बच्चे को। जि‍तना पैसा खर्च करना होगा करेंगे, लेकि‍न अपनाएंगे नहीं।''

तय करिए कौन है दोषी...

 पिता कहते हैं, ''साहब, गुडगांव और दि‍ल्‍ली से दो लोग बच्‍ची को गोद लेने के लिए भी आए थे, लेकिन मैंने कह दिया मुझे इस बारे में कुछ नहीं मालूम। अब जज साहब ही जानें। आठ तारीख को जज साहब मि‍लने आए तो, उन्‍होंने पूछा कि बच्‍ची के पैदा होने के बाद क्‍या करोगे? मैंने साफ कह दि‍या कि मैं नहीं ले जाऊंगा। आप ही जानें क्‍या करना है।''

तय करिए कौन है दोषी...

सड़क से लेकर सोशल साइट्स तक खुद को जनता का हिमायती बताने वाले नेता, ढ़ेरों फंड जुटाने वाली सामाजिक संस्था, अरबों-खरबों रुपए रखने के लिए उद्योगपति, खुद में ही भगत सिंह से लेकर चंद्रशेखर आजाद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस से लेकर महात्मा गांधी तक का अक्स देखने वाले लोग और खुद का मानवता का हितैषी मानने वाले किसी भी शख्स ने अब तक परिवार की किसी भी तरह की मदद नहीं की है।

मामले में 3 नवंबर को कोर्ट का फैसला आना है। वहां से अब भी कुछ उम्मीद है?

तय करिए दोषी कौन है...

मैं, कोर्ट, पीएम, सीएम, नेता, समाजसेवक या किसी भी इंसान पर कमेंट नहीं करना चाहता। बस इस बात पर खुद के लिए गुस्सा आ रहा है कि मेरा जन्म कहां हो गया है। हां, इस बात पर भी आ रहा है कि मैं सोच क्यों नहीं पा रहा मुझे क्या करना चाहिए। बस गुस्सा आ रहा है और कुछ नहीं। हां यह भी पता है कि मैं कुछ नहीं कर पाउंगा, सिर्फ लिख के रह जाउंगा।  



Friday, 11 September 2015

मीट पर बैन का प्याज कनेक्शन... थोड़ी पॉलिटिक्स, थोड़ी इकोनॉमिक्स

कुछ सरकारें मीट पर बैन लगा रही हैं। कहा जा रहा है कि जैन धर्म के पवित्र पर्यूषण (उपवास का त्योहार) पर्व को देखते हुए यह बैन है। इसके तहत मुंबई की दो नगर पालिका, गुजरात के अहमदाबाद, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में मीट पर बैन है। सुना है कि मीट बनाने में प्याज की ज्यादा खपत होती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि प्याज की बिक्री कम करने और प्याज को लेकर मचे हंगामे को देखकर ऐसा निर्णय लिया जा रहा है। प्याज पर बैन में थोड़ी इकोनॉमिक्स हो सकती है तो थोड़ी पॉलिटिक्स। 

प्याज की बढ़ती कीमतों से सरकारें हमेशा से डरी रहती हैं। प्याज की बढ़ती कीमतों के कारण ही कई नेताओं की गद्दी छीनी है। कई बार इसने सियासत का रूख बदला है। ऐसे में मीट बंद होने का कारण प्याज भी हो सकता है। वैसे जिन-जिन जगहों पर प्याज पर बैन लग रहा है वहां सरकार में बीजेपी ही है। प्याज की बढ़ती कीमतों को लेकर लोग केंद्र की एनडीए सरकार पर निशाना साधने लगे हैं, ऐसे में बीजेपी शासित राज्य कहीं इसी तरह से केंद्र की मदद तो नहीं कर रहे हैं। 

दूसरी तरफ यह भी हो सकता है बीजेपी जैन धर्म के वोटर्स को अपने पक्ष में करने के लिए ऐसा कर रही हो। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि जैन धर्म के पर्व के दौरान मुंबई में मीट पर बैन का प्रस्ताव साल 1994 में कांग्रेस सरकार लाई थी। 10 साल बाद दो दिनों के बैन को बढ़ा कर चार दिन कर दिया गया। हालांकि, इसे कभी पूरी तरह से लागू नहीं किया गया।

इकोनॉमिक्स कहती है कि किसी चीज को ज्यादा बेचना हो तो उसके दाम में थोड़ी सी गिरावट ला दें। या फिर किसी चीज का दाम ज्यादा होने से बाजार में हाहाकार मचा हो तो उसकी खपत कम कर दें। तो ऐसा भी हो सकता है कि यहां इकोनॉमिक्स लग रही हो। कुछ दिन ही सही प्याज की बिक्री बंद हो जाए तो प्याज के दाम पर असर भी पड़ जाए। 

वैसे मुंबई के दो नगर पालिका (17 और 20 सितंबर को), गुजरात के अहमदाबाद (11 सितंबर से 18 सितंबर तक), राजस्थान (17,18 और 27 सितंबर को), छत्तीसगढ़ (10 से 18 सितंबर तक) और पंजाब (17 सितंबर को) मीट पर बैन लगाने से कितना फर्क पड़ सकता है, यह तो कोई बड़ा अर्थशास्त्री ही बता सकता है।

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#narendra modi #bjp #congress #onion

Wednesday, 2 September 2015

नए जमाने का श्लोगन है, Life is short. Have an affair

दो दिन की जिंदगी है, जी लो यार। आज कर लो मजा, कल किसने देखा है। जिंदगी जीने के लिए होती है, जी भर के इंजॉय करो। अब ऐसे श्लोगन के दिन लद गए। अब के श्लोगन हैं, "Life is short. Have an affair" (जिंदगी छोटी है, बनाएं रिश्ते")। कुछ यूथ कहते हैं कि इंटलेक्चुअल दिखने के लिए एक कुर्ता, एक बैग, एक हाथ की उंगलियों में सिगरेट तो दूसरे हाथ में बियर की बॉटल होना जरूरी है। कुछ कहते हैं कि प्यार कहीं भी कहीं भी हो सकता है और सेक्स तक पहुंच कर ही मामला स्थिर होता है। कुछ कहते हैं सेल्फ कॉन्फिडेंस को बढ़ाने के लिए सिगरेट-बियर पीते हैं। कुछ कहते हैं ज्यादा गर्लफ्रैंड/ब्वॉयफ्रेंड मतलब ज्यादा एक्सपीरियंस, बाकी तो लोग जिंदगी काटते हैं। 

इंटरनेट का जमाना है और इसने जिंदगी को बहुत आसान बना दिया है। आजकल देखें तो साल 2001 में लॉन्च कनाडा की एक साइट वर्ल्ड वाइड की चर्चा में टॉप पर है। उसका नाम एश्लेमैडिसन है। यह डेटिंग साइट उन लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गई है जो या तो शादीशुदा हैं या किसी रिलेशनशिप में कमिटेड हैं। इसके चर्चा में आने का कारण इसके मेंबर्स के डेटा की चोरी है। वैसे तो हर चोरी के बाद चोर के नाम का खुलासा होता है, लेकिन इस चोरी के बाद चोर के नाम से ज्यादा चोरी की गई लिस्ट में शामिल मेंबर्स की ज्यादा चर्चा हुई। होगी भी क्यों न, वे नए तरीके से जिंदगी को जीने जो निकले थे।

साइट के यूजर्स में सबसे ज्यादा तादात भारतीयों और अमेरिकियों की है। ऐसी खबरें है कि इस साइट पर 100 से ज्यादा यूएस के सरकारी कर्मचारी ने भी रजिस्ट्रेशन कराया है। इनमें व्हाइट हाउस, कांग्रेस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के कर्मचारी के अकाउंट भी हैं। भारतीयों से जुड़े कई चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए हैं। इसके मुताबिक, इस वेबसाइट को करीब 2.75 लाख भारतीय इस्तेमाल करते थे। साल 2008 से 2015 के बीच कुल 5,236 भारतीयों ने इस साइट पर 2.4 करोड़ रुपए खर्च किए। शायद यही बदलता भारत है।

15 जुलाई 2015 को कुछ हैकर्स ने इसका सारा कस्टमर डेटा (ईमेल्स, घर के पते, यूजर्स की सेक्सुअल फैंटेसी, क्रेडिट कार्ड इन्फॉर्मेशन) चुरा ली और उसे इस वेबसाइट को बंद न किए जाने पर उसे पोस्ट करने की धमकी दी। हैकर्स ने इसका कुछ डेटा 18 अगस्त को पोस्ट कर दिया। वहीं, एश्ले मैडिसन की पैरेंट कंपनी ‘Avid Life Media’ का कहना है कि, हैकिंग के बाद भी इस पर हजारों लोगों ने पिछले सप्ताह साइन अप किया है।

मामला सिर्फ इतना है कि लोग बदल रहे हैं। शौक बदल रहा है। लोग बंधन से बाहर आ रहे हैं। हर चीजों की तरह सेक्स को भी लेकर प्रयोग होने लगे हैं। कुछ जानकारों का मानना है कि आर्थिक तौर पर स्वतंत्र होने के बाद से ही लोग ऐसी स्वतंत्रता के बारे में सोचते हैं। बस एक सवाल है कि क्या यह सांस्कृतिक मूल्यों में आ रहे बदलाव की ओर एक इशारा है या कुछ और? या फिर बदलते भारत की एक तस्वीर?


नीचे बस कुछ डेटा हैं...
शहर                              एश्लेमैडिसन यूजर्स
दिल्ली                          38562
मुंबई                            33036
चेन्नई                          16434
हैदराबाद                      12825
कोलकाता                    11807
बेंगलुरु                        11561
अहमदाबाद                  7009
चंडीगढ़                        2918
जयपुर                          5045
लखनऊ                      3885
पटना                         2524

किस शहर ने कितना खर्च किया
शहर                              एश्लेमैडिसन पर खर्च रकम (लाख रुपए में)
मुंबई                             45
बेंगलुरु                          35
नई दिल्ली                     34
पुणे                               16
चेन्नई                          13
गुड़गांव                        12
हैदराबाद                      10
कोलकाता                     6
अहमदाबाद                  5
नोएडा                          4

Monday, 31 August 2015

आरक्षण और राजनीति, मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना

गुजरात में पटेल-पाटीदार कम्युनिटी के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हार्दिक पटेल अब पूरे देश में आंदोलन करेंगे। उन्होंने ऐलान किया है कि दिल्ली और लखनऊ में भी वह अपनी मांगों के लिए सड़क पर उतरेंगे। इसके बाद से ही आरक्षण के पक्ष और विपक्ष दोनों में एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है। कुछ लोगों का मानना है कि यह आंदोलन पटेल-पाटीदार जाति को तो आरक्षण नहीं दिला पाएगा, लेकिन आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करने की मांग कर रहे लोगों को जरूर मजबूत करेगा।

वायु पुराण में एक श्लोक लिखा है, मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पयः। जातौ जातौ नवाचाराः नवा वाणी मुखे मुखे ।। 

इसका अर्थ है- जितने मनुष्य हैं, उतने विचार हैं। एक ही गांव के अंदर अलग-अलग कुएं के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है। एक ही संस्कार के लिए अलग-अलग जातियों में अलग-अलग रिवाज होता है। एक ही घटना का बखान हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से करता है। इसमें आश्चर्य करने या बुरा मानने की जरूरत नहीं है। 

साल 1990 में जब मंडल कमीशन लागू हुआ था, तब उसका विरोध करने में बीजेपी और संघ सबसे आगे रहे थे। यही नहीं, जातिगत आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी की वाजपेयी सरकार में भी काफी बहस हुई थी। उस दौरान बीजेपी ने आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत करते हुए इसे अपने घोषणापत्र में भी शामिल किया था। कहीं ऐसा तो नहीं कि मोदी सरकार में भी आरक्षण के विरोध में माहौल बनाने की कोशिश हो रही है? या आरक्षण के खिलाफ दूसरी जातियों में बढ़ रहे विरोध को भुनाने की कोशिश की जा रही है?

एक सर्वे के मुताबिक, देश के सबसे बड़े प्रदेश यूपी में 50 हजार से ज्यादा गांवों में पिछड़ों की आबादी कुल जनसंख्या की 53.33 फीसदी है। वहीं, यूपी के 75 जिलो में से 51 में ओबीसी की जनसंख्या 60 फीसदी से ज्यादा है। पंचायती राज विभाग के रैपिड सर्वे में एक ओर पिछड़े वर्ग की आबादी 53.12 फीसदी से बढ़कर 53.33 फीसदी हो गई है तो दलितों की आबादी में 0.5 फीसदी की कमी आई है। हालांकि, रैपिड सर्वे में अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी में 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। राजनैतिक पार्टियां इसे अपने 'पिछड़ा कार्ड' के तुरूप के इक्के की तौर पर देख रही हैं।

राजस्थान के गुर्जर, हरियाणा के जाट, महाराष्ट्र के मराठा पहले ही आरक्षण की मांग कर चुके हैं और अब गुजरात के पटेल-पाटीदार जाति। देश में इन हिस्सों में हिंसक आंदोलन कराके SC/ST/OBC आरक्षण की मांग हो चुकी है। पूरे देश में पिछड़ा बनने की होड़ क्यों लगी है? आरक्षण की मांग को लेकर हुए पाटीदार समाज के आंदोलन ने देश में फिर से बहस छेड़ दी है कि आरक्षण किसको मिले और किसको नहीं? या तो सबको आरक्षण मिले या किसी को नहीं। पटेल समुदाय के जरिए हिंसक आंदोलन कराने का मकसद देश में आरक्षण विरोधी माहौल बनाना तो नहीं? शायद कहीं कुछ फायदा और कहीं कुछ राजनीति है।