Monday, 24 November 2014

मनीला ट्रांस का बीएचयू वर्जन

मनीला ट्रांस का बीएचयू वर्जन

दम-दम, बम-बम खिंच मेरे हमदम- ‪#‎मनीला‬ ट्रांस को हनी सिंह ‪#‎BHU‬ पर कुछ ऐसा गाते
दम-दम, बम-बम लूट मेरे हमदम
लूटेगा तू तो कहलाएगा #BHU नंबर वन
मजा लेगा तू वीसी, रिजस्ट्रार और प्रोफेसर बन ...
दम-दम, बम-बम #BHU को लूट मेरे हमदम...
बदला मिजाज, ‪#‎स्टूडेंट्स‬ यूनियन की मांग पर
मांग ऐसा है, जिससे उजागर होगी वहां फैली ‪#‎लूट‬ हर...
थोड़ा तो मार लो #स्टूडेंट्स को दौड़ा कर, ‪#‎पॉवर‬ के नशे में
पुलिस-पीएसी लगा के, ‪#‎हॉस्टल‬ में घूस के...
दम-दम, बम-बम लूट मेरे हमदम...
कैसे होता है, वहां ‪#‎रिक्रूटमेंट‬-प्रमोशन, कैसे मैं बताऊं ये
लगा है सब-कुछ ठाकुर-बाभन की लूट खसोट पंचाइत पर..
ठोड़ा-ठो़ड़ा माल, जो भी आया लूटा जाम...
दम-दम, बम-बम लूट मेरे हमदम...
जन्नत है ये #BHU परिसर, खानदानी विरासत के लिए कर ले इसे जतन
हम दम मेरे संग लूट की डोरी में बन जा तू पतंग...
दम-दम, बम-बम लूट #BHU मेरे हमदम...
नए कुलपति, तू भी मेरे साथ माल लूट ले जरा...
प्रमोशन करूं, हिस्सेदारी में तू शामिल कर ले जरा...
रजिस्ट्रार-रेक्टर बनाउंगा, तू वीसी हाउस में कश तो लगा ले यारी...
दम बोले दम तू #BHU का मजा लूट ले...
लूट का पैसा मिलेगा तो तू भूलेगी सारा गम...
दम दम बम बम लूट #BHU मेरे हमदम...

Thursday, 20 November 2014

बीएचयू के स्टूडेंट अराजक कैसे?

बीएचयू के स्टूडेंट अराजक कैसे?

#‎मोदी‬ जी आपके संसदीय क्षेत्र का हूं आपको ‪#‎वोट‬ भी नहीं दिया था, लेकिन 100 फीसदी कह सकता हूं कि आज ‪#‎BHU‬ के जिन छात्रों पर लाठीचार्ज हुआ उसमें ‪#‎90फीसदी‬ ने जी जान लगा कर आपका प्रचार किया था... वो नहीं होते तो ‪#‎केजरीवाल‬ के एनजीओ वाले आपको‪#‎शीला‬ बना देते... इतना ही नहीं,
मोदी सरकार में चार ऐसे सांसद हैं जिन्हें मैं पर्सनली जानता हूं कि वो आज जो भी हैं #BHU की वजह से हैं...  ‪#‎सांसदऔरमंत्री‬ मनोज सिंहा, ‪#‎सांसद‬ महेंद्र पांडेय, #सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त,#सांसद मनोज तिवारी... ये सभी बीएचयू के प्रोडक्ट हैं और बनारस में ही इन सबका घर भी है.. फिर ‪#‎पीएम‬ मोदी का ‪#‎ऑफिस‬ भी है...

ऐसे लोगों के रहते #BHU के स्टूडेंट्स को पुलिस दौड़ा-दौड़ा कर मार रही थी... एक को गोली भी लग गई और सब खामोश हैं...

‪#‎रामपाल‬ को हरियाणा में मारना था तो तीन दिन इंतजार किए और ‪#‎स्टूडेंट्स‬ को आधे घंटा समझाने के बाद लाठीचार्ज...
ऐसा नहीं है कि #स्टूडेंट्स की गलती नहीं होगी, लेकिन ‪#‎पुलिस‬ और ‪#‎प्रशासन‬ उन्हें समझा नहीं सकती थी?????

जिन #स्टूडेंट्स को आज लोग अराजक बता रहे हैं वो इंट्रेस पास करके वहां एडमिशन लिए हैं और इतना तो है कि महामना हर किसी को अपने यहां घुसने नहीं देते, कुछ तो काबिलियत होगा ही इनमें... फिर भी वे अराजक हैं... क्या बोलें...........

Friday, 14 November 2014

यक्ष प्रश्न, जिसका उत्तर केबीसी वाला कंप्यूटर जी भी नहीं दे सकता

यक्ष प्रश्न, जिसका उत्तर अमिताभ बच्चन का केबीसी वाला कंप्यूटर जी भी नहीं दे सकता...

इसके जैसे बच्चे के लिए हर दिन एक जैसा बितता है... रोज भूख से लड़ना... दो रोटी के लिए मजदूरी करना... बोझा ढ़ोते, बड़ा होना... ठंडी में ठंड, गर्मी में सूरज की तपीश और बारिश में पानी सब इसके दुश्मन बने रहते हैं... इनकी मासूमियत, चेहरे की हंसी, इनका सपना सभी चीजें कुछ आवश्यक्ताओं में सीमटी होती हैं...

आज एक आंकड़ा मिला, जिसमें लिखा था कि सिर्फ बनारस में 12 हजार से ज्यादा कूड़ा बिनने वाले बच्चे हैं... इनकी उम्र 15 साल से कम है... हम बचपन को पाने की ख्वाहिश रखते हैं और ये उससे भागने की जुगत में लगे रहते हैं... हम बचपन के मस्ती भरे दिन को याद करते हैं, वो बचपन को बुरा सपना समझ भूल जाना चाहते हैं... हम अपने बचपन की तस्वीरों में मासूमियत और खुशी देखते हैं, उनके पास कोई तस्वीर ही नहीं होती, शायद वे शीशे को अपनी तकदीर समझकर उसे देखना ही न चाहते हों...
बाल दिवस पर नेहरू जी को मात्र श्रद्धांजलि देने में सैकड़ों, लाखों यहां तक कि करोड़ों खर्च कर रहे हैं, लेकिन इन बच्चों के लिए सिवाय उनके गरीबी की फोटों खींचने के सिवाय कुछ नहीं करते...
ये 21वीं सदी का भारत है... यहां न्यू ईयर, वेलेंटाइन डे, होली, फ्रेंड्सशीप डे, रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली, क्रिशमश, मडर्स डे, फाडर्स डे, सिस्टर्स डे, यहां तक कि अप्रैल फूल डे जैसे डे पर दूसरों को विश करने में न जाने कितना खर्च कर देते हैं... लेकिन बाल दिवस पर, कुछ लोग नेहरू के विचार को जानने में और कुछ उन्हें गरियाने के सिवाय कुछ नहीं करते...
नहीं मालूम कि नेहरू ने अपने जन्मदिन को क्यों बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया, लेकिन जब हर दिन नए जमाने में कुछ नए कलेवर में आ गया है तो चिल्ड्रेंस डे क्यों नहीं?
अगर हम कहते हैं कि हम वैज्ञानिक युग के लोग हैं, सब कुछ बदल सकते हैं तो उसकी किस्मत क्यों नहीं बदल सकते जो अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ दो रोटी, तन धकने के लिए कपड़ा और रहने के लिए छांव के संघर्ष में बिता देता है... यक्ष प्रश्न है, लेकिन शायद इसका उत्तर देने के लिए सवा करोड़ आबादी में से कोई नहीं...