Friday, 14 November 2014

यक्ष प्रश्न, जिसका उत्तर केबीसी वाला कंप्यूटर जी भी नहीं दे सकता

यक्ष प्रश्न, जिसका उत्तर अमिताभ बच्चन का केबीसी वाला कंप्यूटर जी भी नहीं दे सकता...

इसके जैसे बच्चे के लिए हर दिन एक जैसा बितता है... रोज भूख से लड़ना... दो रोटी के लिए मजदूरी करना... बोझा ढ़ोते, बड़ा होना... ठंडी में ठंड, गर्मी में सूरज की तपीश और बारिश में पानी सब इसके दुश्मन बने रहते हैं... इनकी मासूमियत, चेहरे की हंसी, इनका सपना सभी चीजें कुछ आवश्यक्ताओं में सीमटी होती हैं...

आज एक आंकड़ा मिला, जिसमें लिखा था कि सिर्फ बनारस में 12 हजार से ज्यादा कूड़ा बिनने वाले बच्चे हैं... इनकी उम्र 15 साल से कम है... हम बचपन को पाने की ख्वाहिश रखते हैं और ये उससे भागने की जुगत में लगे रहते हैं... हम बचपन के मस्ती भरे दिन को याद करते हैं, वो बचपन को बुरा सपना समझ भूल जाना चाहते हैं... हम अपने बचपन की तस्वीरों में मासूमियत और खुशी देखते हैं, उनके पास कोई तस्वीर ही नहीं होती, शायद वे शीशे को अपनी तकदीर समझकर उसे देखना ही न चाहते हों...
बाल दिवस पर नेहरू जी को मात्र श्रद्धांजलि देने में सैकड़ों, लाखों यहां तक कि करोड़ों खर्च कर रहे हैं, लेकिन इन बच्चों के लिए सिवाय उनके गरीबी की फोटों खींचने के सिवाय कुछ नहीं करते...
ये 21वीं सदी का भारत है... यहां न्यू ईयर, वेलेंटाइन डे, होली, फ्रेंड्सशीप डे, रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली, क्रिशमश, मडर्स डे, फाडर्स डे, सिस्टर्स डे, यहां तक कि अप्रैल फूल डे जैसे डे पर दूसरों को विश करने में न जाने कितना खर्च कर देते हैं... लेकिन बाल दिवस पर, कुछ लोग नेहरू के विचार को जानने में और कुछ उन्हें गरियाने के सिवाय कुछ नहीं करते...
नहीं मालूम कि नेहरू ने अपने जन्मदिन को क्यों बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया, लेकिन जब हर दिन नए जमाने में कुछ नए कलेवर में आ गया है तो चिल्ड्रेंस डे क्यों नहीं?
अगर हम कहते हैं कि हम वैज्ञानिक युग के लोग हैं, सब कुछ बदल सकते हैं तो उसकी किस्मत क्यों नहीं बदल सकते जो अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ दो रोटी, तन धकने के लिए कपड़ा और रहने के लिए छांव के संघर्ष में बिता देता है... यक्ष प्रश्न है, लेकिन शायद इसका उत्तर देने के लिए सवा करोड़ आबादी में से कोई नहीं...

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