Friday, 6 June 2014

मोदी सरकार के अच्छे दिन और कांग्रेस की हार

16 वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गए। ‘’मोदी सरकार’’ और ‘’अच्छे दिन’’ आ गए के नारों के साथ मीडिया जगत, सोशल साइट्स और गली-मुहल्ला- गांव, नई सरकार का स्वागत करता दिखा। नतीजे एक तरफ मोदी की जीत दिखा रहे हैं तो दूसरी तरफ यह बता रहे हैं कि उन्हें एक मजबूत नेतृत्व चाहिए। युवा एक जोशिला प्रधानमंत्री चाहता था, जो उनकी तरह सोचे, उनकी तरह बात करे, उनकी तरह दमखम दिखाए और उनकी तरह सपने देखे। नरेंद्र मोदी इन सभी... नॉर्म्स पर बिलकुल फिट बैठें और परिणाम सबके सामने है।

पिछले 2 साल से नरेंद्र मोदी एक योद्धा की तरह सिर्फ और सिर्फ प्रधानंत्री की कुर्सी पर नजर गड़ाए अपना प्रचार कर रहे थें। उनका प्रचार तंत्र ऐसा था कि उन्होंने खुद ही एजेंडा सेटिंग की, खुद ही प्रोपेगेंडा क्रिएट किया, खुद ही मॉस स्टिरिया बनाया और खुद को मजबूत नेता के रूप में उन्होंने ही स्थापित किया। मोदी कांग्रेस के खिलाफ खुल कर बोलें और सरकार के विरोध में बने माहौल का जमकर फायदा उठाया।

देश में 2011 से सरकार विरोध माहौल था। महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद और असुरक्षा के माहौल में कब तक देश का युवा वर्ग खुद को खड़ा रख पाता। देश के पूरे यूथ ब्रिगेड ने परिवर्तन की बिगुल बजाई और उसका नैतृत्व कभी अण्णा हजारे, तो कभी रामदेव, तो कभी अरविंद केजरीवाल और फिर नरेंद्र मोदी ने किया। अण्णा हजारे के आंदोलन और दिल्ली गैंगे रेप के बाद जिस तरह लोग सरकार के खिलाफ सड़को पर उतरे नरेंद्र मोदी ने एक चालाक और कुशल नेता की तरह उसका पूरा फायदा उठाया।

2009 से 2014 तक कांग्रेस कहीं भी खुद को ना तो डिफेंड कर पाई ना और न तो आगे बढ़कर किसी काम को करने के लए कोई इनिसिएटिव ले पाई। पूरे 5 साल ऐसा ही लगता रहा कि वह सरकार बना के फंस सी गई है। राहुल गांधी और सोनिया गांधी के धूरी पर नाचती कांग्रेस अपने बड़े नेताओं की वजह से हारी, जो खुद को देश की सवा करोड़ आबादी से अलग मानने लगे थें। खुद को फॉरेन यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट मानने वाले ये नेता ये भूल गए कि भारत के लोग ही अब विदेशों की शान बन चुके हैं। सिर्फ बयानबाजी और अंतराष्ट्रीय मुद्दों का हवाला देकर वो खुद को बचाने की कोशिश करते-करते 5 साल बिता दिए।

नरेंद्र मोदी ने इन सालों में खुद की जमीन तैयार किए। अच्छे दिन और विकास का सपना दिखाया। वो आगे बढ़ते गए और कांरवा बनता गया। इसका परिणाम भी 16 मई 2014 को लोगों ने देखा। अच्छे दिन आएंगे या नहीं ये मैं नहीं जानता मगर जिस तरह जात-पात और धर्म पर आधारित पार्टियों का लोगों ने बॉयकाट किया है और मोदी के विकास के वादे के साथ खड़ दिखें हैं, ये साफ दिखाता है कि अब भारत बदल चुका है।

नरेंद्र मोदी के हाथ में भी कोई आसान गद्दी नहीं आई है। ये करोड़ों युवाओं के अरबो आशाओं की गद्दी है। यदि उनके आशा पर वो खरे नहीं उतरे तो अगली बार लोग उन्हें भी निराश कर देंगे। यदि 60 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति को युवा अपना नेता मानते हैं और उसकी हर बात का पूरा समर्थन करते हुए उसे पूरी शक्ति (स्पष्ट बहुमत) देते हैं तो यह आसान कुर्सी नहीं है। मोदी को दिखाना होगा कि वो सिर्फ सपने दिखाते नहीं, सपने साकार भी करते हैं। वो एक रेसलर की तरह सिर्फ हाथ नहीं उठाते, वो बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद को एक चारो खाने चित भी कर सकते हैं।

मोदी लहर और 16 वीं लोकसभा चुनाव

आखिरकार आम चुनाव खत्म हुए। सबसे लंबे चुनाव का नतीजा भी बड़ा ऐतिहासिक रहा। पहली बार भाजपा पूर्ण बहुमत में आई। नि:संदेह इसका पूरा श्रेय नरेंद्र मोदी को जाता है। मगर, इस चुनाव की शुरुआत से नतीजे आने के एक दिन पहले तक हाशिए पर जो रहा वो मीडिया ही था। मीडिया के प्रति लोगों की अलग ही नाराजगी रही। मीडिया नेताओं का गुलाम बना चुका है, बिक गया है मीडिया, जर्नलिस्ट बिक गए हैं, ऐसी कई चीजें लेकर लोग सड़क से ल...ेकर सोशल साइट्स तक जहां भी मौका मिला चीखते-चिल्लाते रहे। हां, कुछ बड़े पत्रकार इस बीच जरूर राजनैतिक पार्टियों को ज्वाइन किए और कुछ खबरें जरूर कुछ लोगों की भावनाओं को प्रभावित की, मगर इसमें पूरी मीडिया को दोषी ठहराना कहां तक जायज है। देश की आजादी से लेकर 2009 के चुनाव तक दर्जनों ऐसे बड़े नेता हुए हैं जो पत्रकारिता करते रहे हैं।

आज के समय में मीडिया जगत एक व्यापार है और पत्रकारिता एक नौकरी, इसे नकारा नहीं जा सकता। लेकिन यह नौकरी सीधे-सीधे जनता से भी जुड़ा है। मीडिया की विश्वसनियता जरूर कम हुई है मगर इसका इंपैक्ट अब भी बरकरार है।

कुछ लोग कहते हैं टीवी, अखबार, खबरिया पोर्टल पर उलूल-जुलूल की बात ज्यादा और खबरें कम होती हैं। मीडिया पूरे चुनाव में मोदी को सबसे ज्यादा दिखा रहा था और किसी नेता को उतना समय नहीं दे रहा था। दूसरे नंबर पर मीडिया में जो जगह बचता उसमें केजरीवाल अपनी जगह बना लेते और बाकि बची जगह पर सभी राजनीतिक पार्टियां।

भाई साहब बाजार में वही सामान बेचा जाता है, जिसकी मांग होती है। जैसे-जैसे मांग बढ़ती जाती है उस सामान से पूरा बाजार भर जाता है। ठीक उसी तरह मीडिया में भी मोदी और केजरीवाल की मांग ज्यादा थी। टीआरपी और पेज व्यू की रेस में जहां मोदी बाकियों से बहुत आगे थें इसलिए उन्हें सबसे ज्यादा दिखाया जाता रहा। बची जगह पर केजरीवाल की टीआरपी और पेज व्यू अपना कब्जा जमा लेती, फिर कहां से राहुल, मायावति, मुलायम और नीतीश को जगह मिलता।

टीवी की टीआरपी और पोर्टल की पेज व्यू अगर शनी लियोनी और पूनम पांडेय पर ज्यादा आएगी तो वो दिन-भर उसे ही चलाएंगे। आप देखोगे जैसी खबर, वैसी खबरें आपको दिखाई जाएगी। तो दोषी कौन? जिस टाइप की खबरें आप पसंद करोगे, जिस विशेष व्यक्ति की आप खबरें पसंद करोगे मीडिया उसे दिखाता है और आप कहते हो मीडिया वाले गलत हैं। एडिक्शन व्यूवर और रीडर को है, प्रेजेंटर को नहीं। यहां तो बस इंजेक्शन दिया जाता है।

मडर्स डे: क्या मां को एक दिन में समेटना चाहिए?

कुछ लोग आज तथाकथित मडर्स डे (इसे मातृ दिवस नहीं कहा जा सकता) मना रहे हैं... मैं किसी मडर्स डे या फाडर्स डे को नहीं मानता... जिस मां के गर्भ में 9 महीने पल के इस संसार में आए हैं उसके लिए किसी दिवस की जरूरत नही है... जिस मां ने मुझ सींच कर इतना बड़ा किया है उसे एक दिन में मै सिमटा नहीं सकता... जिंदगी का हर पल उस मां का ही है... उस मां को एक दिन में समेटना जिसने हमें सब कुछ सिखाया मुझे नहीं लगता की ...काफी है...

फिर भी ये दिन उन माताओं के लिए बहुत बड़ा दिन है जिनके बच्चे खुद को एडवांस और नये जमाने का साबित करने की रेस में ही कम से कम एक दिन के लिए ही समय निकाल पा रहे हैं... सेवाश्रमों में छोड़ दी गई मां के आंखों में कम से कम एक दिन की ही खुशी नसीब तो हो रही है...

कहते हैं दुनिया बदल रही है, हर चीज बदल रहा है... परिवर्तन ही समाज का नियम हैं... मगर कभी आपने मां को बदलते देखा है... नहीं ना... वो हमेशा तटष्ठ है अपने बच्चों के लिए... उसी दुलार और प्यार के साथ...

G और g की वैल्यू बदल सकती है... समय चक्र बदल सकता है... लोगों की हाथ की रेखाएँ बदल सकती हैं... एस्ट्रोनॉमी के नियम बदल सकते हैं... मगर मां नहीं बदल सकती... मां हमेशा मां रहती हैं... जिंदगी का हर पल मां के लिए...

बलात्कार का बलात्कार: क्या हो गया है जमाने को?

देश में एक तरफ चारो ओर बलात्कार (रेप) की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। तो दूसरी और कुछ लोग क्रूरता और बेशर्मी की पराकाष्ठा पार करते हुए बलात्कार का भी बलात्कार करते हुए इसे जाति, धर्म, महिला/लड़की/बच्ची/बुजूर्ग, क्षेत्र से जोड़ कर राजनीति कर रहे हैं। कुछ लोग इसमें रेप पीड़िता को या महिलाओं/लड़कियों को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो कुछ कानून व्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था पर उंगली उठा रहे हैं। कुछ लोग ...सेक्स और रेप को अपने-अपने तरह से परिभाषित कर रहे हैं तो कुछ नैतिकता और संस्कार को दोषी मान रहे हैं। शर्म आती है ये देख-सुन कर की लोग बलात्कार को भी अलग-अलग चस्मे से देख रहे हैं।

आज के समय में लोगों का कला का सम्मान करने का तरीका बदल गया है। ‘डर्टी पिक्चर’ फिल्म को राष्ट्रीय पूरस्कार देकर, ‘हेट स्टोरी’ जैसी फिल्मों का कलेक्शन फैमिली फिल्मों से कई गुना ज्यादा देकर, सनि लिओनी और पूनम पांडेय को मुख्य अतिथि बनाकर लोग कला का सम्मान करने लगे हैं।

वहीं टेलीवीजन सेटों (इडियट बॉक्श) पर 24 घंटे शेविंग क्रिम से लेकर डियोड्रेंट और पॉवडर से लेकर इनर वियर (लड़के/लड़कियों) को कामुकता के केंद्र में रखकर बेचा जा रहा है और अर्धनग्न मॉडलों से उसका प्रचार कराते हुए लोग रेप के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। अब इस तरह के उत्पादों का प्रयोग करने के बाद जब अविकसित दिमाग वालों के मन में आग लग रही है और कोई उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर रहा तो ये फ्रस्टेशन कहीं ना कहीं तो निकलेगा ही। और इसका खामियाजा नादान बच्चियां और सलवार सूट वाली लड़कियां भुगतती है। नतीजा बड़ी संख्या में आपके सामने है।

दूसरी ओर मधु किश्वर का बयान आता है कि रेप के कारणों में महिलाओं के कपड़े भी जिम्मेदार होते हैं। जरा आप मधु किश्वर के टीन एज की तस्वीरों से लेकर आज तक की तस्वीरों में उनके कपड़ों पर गौर कर लें, उनके बयान और वास्तविकता में अंतर स्पष्ट हो जाएगा। मैम कपड़ो का छोटा होना और दिमाग के छोटे होने में अंतर है।

वहीं रेप पर राजनीति भी बहुत करीने से हो रही है। अलग-अलग पार्टीयां इसे अलग-अलग एंगल दे रही हैं। लोग पीड़िता की जाती/धर्म जानने के बाद उस जाती से जुड़े अपने वरिष्ठ नेता से बयान दिलवा रहे हैं। इसमें कांग्रेस, भाजपा समेत लगभग सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां हैं। धन्य हैं आप लोग और आप की राजनीति।

लोकसभा, राज्यसभा से लगायत विधानसभाओं और नौकरशाही में बलात्कार के मुजरीमों को बैठा कर आप देश में सदाचार और नैतिकता की बात करते हैं ? जो लोग टीवी और फिल्मों में अश्लीलता फैला रहे हैं वो हाई सिक्योरिटी लेकर क्यों घूमते हैं? इन लोगों के नग्नता की सजा बेचारी आम बच्चियां/लड़कियां भूगत रही हैं। इनकी नग्नता और खास प्रचारों से प्रभावित और मानसिक दिवालियापन से ग्रसित यूवकों की शिकार हाई सिक्योरिटी जोन में रहने वाली ये मॉडल/हिरोइन नहीं चुकाती बल्कि वे आम महिलाएं/लड़कियां/बच्चियां चूकाती हैं, जो जिंदगी की भागमभाग में खुद को स्थापित करने से लिए घर से बाहर और गांव से शहर रोज करती हैं।

अब वक्त ऐसे जघन्य अपराध पर कानून बनाने का नहीं बल्कि सजा देने का है। जल्द से जल्द बलात्कारियों को पकड़ कर ऐसी सजा दें जिसे सुन और देख कर मानसिक रूप से दिवालियापन का शिकार हुए यूवकों/आदमीयों की रूह कांप जाए और किसी भी महिला की और नजर घुमाने से पहले मात्र सजा के बारे में सोच कर वो सिहर जाएं। अब नैतिकता और संस्कार का पाठ पढ़ाने का समय नहीं रह गया अब सजा देने का समय आ गया है, जिससे जल्द से जल्द ऐसी घटनाएं रुक जाएं। किसी भी गलत काम को रोकने के लिए डर और शर्म दो चीज की जरूरत होती है। बलात्कारियों के पास शर्म नाम की कोई चीज रह नहीं जाती है इसलिए उन्हें डराना पड़ेगा और ढ़ंग से डराना चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं तुरंत बंद हो।