16 वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गए। ‘’मोदी सरकार’’ और ‘’अच्छे दिन’’ आ गए के नारों के साथ मीडिया जगत, सोशल साइट्स और गली-मुहल्ला- गांव, नई सरकार का स्वागत करता दिखा। नतीजे एक तरफ मोदी की जीत दिखा रहे हैं तो दूसरी तरफ यह बता रहे हैं कि उन्हें एक मजबूत नेतृत्व चाहिए। युवा एक जोशिला प्रधानमंत्री चाहता था, जो उनकी तरह सोचे, उनकी तरह बात करे, उनकी तरह दमखम दिखाए और उनकी तरह सपने देखे। नरेंद्र मोदी इन सभी... नॉर्म्स पर बिलकुल फिट बैठें और परिणाम सबके सामने है।
पिछले 2 साल से नरेंद्र मोदी एक योद्धा की तरह सिर्फ और सिर्फ प्रधानंत्री की कुर्सी पर नजर गड़ाए अपना प्रचार कर रहे थें। उनका प्रचार तंत्र ऐसा था कि उन्होंने खुद ही एजेंडा सेटिंग की, खुद ही प्रोपेगेंडा क्रिएट किया, खुद ही मॉस स्टिरिया बनाया और खुद को मजबूत नेता के रूप में उन्होंने ही स्थापित किया। मोदी कांग्रेस के खिलाफ खुल कर बोलें और सरकार के विरोध में बने माहौल का जमकर फायदा उठाया।
देश में 2011 से सरकार विरोध माहौल था। महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद और असुरक्षा के माहौल में कब तक देश का युवा वर्ग खुद को खड़ा रख पाता। देश के पूरे यूथ ब्रिगेड ने परिवर्तन की बिगुल बजाई और उसका नैतृत्व कभी अण्णा हजारे, तो कभी रामदेव, तो कभी अरविंद केजरीवाल और फिर नरेंद्र मोदी ने किया। अण्णा हजारे के आंदोलन और दिल्ली गैंगे रेप के बाद जिस तरह लोग सरकार के खिलाफ सड़को पर उतरे नरेंद्र मोदी ने एक चालाक और कुशल नेता की तरह उसका पूरा फायदा उठाया।
2009 से 2014 तक कांग्रेस कहीं भी खुद को ना तो डिफेंड कर पाई ना और न तो आगे बढ़कर किसी काम को करने के लए कोई इनिसिएटिव ले पाई। पूरे 5 साल ऐसा ही लगता रहा कि वह सरकार बना के फंस सी गई है। राहुल गांधी और सोनिया गांधी के धूरी पर नाचती कांग्रेस अपने बड़े नेताओं की वजह से हारी, जो खुद को देश की सवा करोड़ आबादी से अलग मानने लगे थें। खुद को फॉरेन यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट मानने वाले ये नेता ये भूल गए कि भारत के लोग ही अब विदेशों की शान बन चुके हैं। सिर्फ बयानबाजी और अंतराष्ट्रीय मुद्दों का हवाला देकर वो खुद को बचाने की कोशिश करते-करते 5 साल बिता दिए।
नरेंद्र मोदी ने इन सालों में खुद की जमीन तैयार किए। अच्छे दिन और विकास का सपना दिखाया। वो आगे बढ़ते गए और कांरवा बनता गया। इसका परिणाम भी 16 मई 2014 को लोगों ने देखा। अच्छे दिन आएंगे या नहीं ये मैं नहीं जानता मगर जिस तरह जात-पात और धर्म पर आधारित पार्टियों का लोगों ने बॉयकाट किया है और मोदी के विकास के वादे के साथ खड़ दिखें हैं, ये साफ दिखाता है कि अब भारत बदल चुका है।
नरेंद्र मोदी के हाथ में भी कोई आसान गद्दी नहीं आई है। ये करोड़ों युवाओं के अरबो आशाओं की गद्दी है। यदि उनके आशा पर वो खरे नहीं उतरे तो अगली बार लोग उन्हें भी निराश कर देंगे। यदि 60 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति को युवा अपना नेता मानते हैं और उसकी हर बात का पूरा समर्थन करते हुए उसे पूरी शक्ति (स्पष्ट बहुमत) देते हैं तो यह आसान कुर्सी नहीं है। मोदी को दिखाना होगा कि वो सिर्फ सपने दिखाते नहीं, सपने साकार भी करते हैं। वो एक रेसलर की तरह सिर्फ हाथ नहीं उठाते, वो बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद को एक चारो खाने चित भी कर सकते हैं।
पिछले 2 साल से नरेंद्र मोदी एक योद्धा की तरह सिर्फ और सिर्फ प्रधानंत्री की कुर्सी पर नजर गड़ाए अपना प्रचार कर रहे थें। उनका प्रचार तंत्र ऐसा था कि उन्होंने खुद ही एजेंडा सेटिंग की, खुद ही प्रोपेगेंडा क्रिएट किया, खुद ही मॉस स्टिरिया बनाया और खुद को मजबूत नेता के रूप में उन्होंने ही स्थापित किया। मोदी कांग्रेस के खिलाफ खुल कर बोलें और सरकार के विरोध में बने माहौल का जमकर फायदा उठाया।
देश में 2011 से सरकार विरोध माहौल था। महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद और असुरक्षा के माहौल में कब तक देश का युवा वर्ग खुद को खड़ा रख पाता। देश के पूरे यूथ ब्रिगेड ने परिवर्तन की बिगुल बजाई और उसका नैतृत्व कभी अण्णा हजारे, तो कभी रामदेव, तो कभी अरविंद केजरीवाल और फिर नरेंद्र मोदी ने किया। अण्णा हजारे के आंदोलन और दिल्ली गैंगे रेप के बाद जिस तरह लोग सरकार के खिलाफ सड़को पर उतरे नरेंद्र मोदी ने एक चालाक और कुशल नेता की तरह उसका पूरा फायदा उठाया।
2009 से 2014 तक कांग्रेस कहीं भी खुद को ना तो डिफेंड कर पाई ना और न तो आगे बढ़कर किसी काम को करने के लए कोई इनिसिएटिव ले पाई। पूरे 5 साल ऐसा ही लगता रहा कि वह सरकार बना के फंस सी गई है। राहुल गांधी और सोनिया गांधी के धूरी पर नाचती कांग्रेस अपने बड़े नेताओं की वजह से हारी, जो खुद को देश की सवा करोड़ आबादी से अलग मानने लगे थें। खुद को फॉरेन यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट मानने वाले ये नेता ये भूल गए कि भारत के लोग ही अब विदेशों की शान बन चुके हैं। सिर्फ बयानबाजी और अंतराष्ट्रीय मुद्दों का हवाला देकर वो खुद को बचाने की कोशिश करते-करते 5 साल बिता दिए।
नरेंद्र मोदी ने इन सालों में खुद की जमीन तैयार किए। अच्छे दिन और विकास का सपना दिखाया। वो आगे बढ़ते गए और कांरवा बनता गया। इसका परिणाम भी 16 मई 2014 को लोगों ने देखा। अच्छे दिन आएंगे या नहीं ये मैं नहीं जानता मगर जिस तरह जात-पात और धर्म पर आधारित पार्टियों का लोगों ने बॉयकाट किया है और मोदी के विकास के वादे के साथ खड़ दिखें हैं, ये साफ दिखाता है कि अब भारत बदल चुका है।
नरेंद्र मोदी के हाथ में भी कोई आसान गद्दी नहीं आई है। ये करोड़ों युवाओं के अरबो आशाओं की गद्दी है। यदि उनके आशा पर वो खरे नहीं उतरे तो अगली बार लोग उन्हें भी निराश कर देंगे। यदि 60 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति को युवा अपना नेता मानते हैं और उसकी हर बात का पूरा समर्थन करते हुए उसे पूरी शक्ति (स्पष्ट बहुमत) देते हैं तो यह आसान कुर्सी नहीं है। मोदी को दिखाना होगा कि वो सिर्फ सपने दिखाते नहीं, सपने साकार भी करते हैं। वो एक रेसलर की तरह सिर्फ हाथ नहीं उठाते, वो बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद को एक चारो खाने चित भी कर सकते हैं।