Friday, 6 June 2014

मडर्स डे: क्या मां को एक दिन में समेटना चाहिए?

कुछ लोग आज तथाकथित मडर्स डे (इसे मातृ दिवस नहीं कहा जा सकता) मना रहे हैं... मैं किसी मडर्स डे या फाडर्स डे को नहीं मानता... जिस मां के गर्भ में 9 महीने पल के इस संसार में आए हैं उसके लिए किसी दिवस की जरूरत नही है... जिस मां ने मुझ सींच कर इतना बड़ा किया है उसे एक दिन में मै सिमटा नहीं सकता... जिंदगी का हर पल उस मां का ही है... उस मां को एक दिन में समेटना जिसने हमें सब कुछ सिखाया मुझे नहीं लगता की ...काफी है...

फिर भी ये दिन उन माताओं के लिए बहुत बड़ा दिन है जिनके बच्चे खुद को एडवांस और नये जमाने का साबित करने की रेस में ही कम से कम एक दिन के लिए ही समय निकाल पा रहे हैं... सेवाश्रमों में छोड़ दी गई मां के आंखों में कम से कम एक दिन की ही खुशी नसीब तो हो रही है...

कहते हैं दुनिया बदल रही है, हर चीज बदल रहा है... परिवर्तन ही समाज का नियम हैं... मगर कभी आपने मां को बदलते देखा है... नहीं ना... वो हमेशा तटष्ठ है अपने बच्चों के लिए... उसी दुलार और प्यार के साथ...

G और g की वैल्यू बदल सकती है... समय चक्र बदल सकता है... लोगों की हाथ की रेखाएँ बदल सकती हैं... एस्ट्रोनॉमी के नियम बदल सकते हैं... मगर मां नहीं बदल सकती... मां हमेशा मां रहती हैं... जिंदगी का हर पल मां के लिए...

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