Monday, 16 February 2015

ई भोले के बनारस ह!

अइसे त भोलाे क नगरी 12 हो महीना गुलजार और बम बम रहेला, लेकिन शिवरात्रि के दिन क बात ही कुछ अउर ह। हम त बचपन में टीवी पर जइसे श्री कृष्णा देखत समय द्वारका और रामायण देखत समय अयोध्या के महसूस कइली, वइसने कुछ हर साल शिवरात्रि पर आपन बनारस लगल। हॉय, हैलो, जयरामी, नमस्कार, प्रणाम सब कोनिया के लोग खाली हर हर महादेव अउर बम भोले से अइसे न एक दूसरे से मिले लन कि जइसे कहीं दूसरे दुनिया में चल गयल हउवन।

बाबा विश्वनाथ मंदिर, मृत्युंजय महादेव मंदिर, गौरी केदारेश्वर मंदिर, बीएचयू मंदिर ही नाहीं हर गली कोना में विराजमान शिवलिंग और भोलाा बाबा के दर्शन बदे  लोगन क भीड़ इकट्ठा रहेला। लोगन क माथे पर त्रिपुंड और बोली में हर हर महादेव आदमी के अंदर से खुश कर देला।

ई बनारस ह गुरु! सब मस्त। भोलाे बाबा क शादी के दिन सब कोई बाराती बन जाला और वहू विशेष आमंत्रित। शिव बारात त अइसे, जइसे साक्षात बाबा दुल्हा बनकर आ गयल हउवन। बाराती सब दुनिया-दारी, नफा-नुकसान, मोह-माया छोड़ कर बस शिवमय हो नाचत गावत बाबा के पीछे-पीछे निकल जायलन। जइसे बाबा हमेशा मस्ती में रहे लन वइसे ही बाबा भक्त भी भांग छान-घोट कर और ओम्मन ठंडई क तड़का लगा क पूरा न आनंद उठावेलन। 

शिवरात्रि पर बनारस में समय बितावा। ओकरे बाद ई प्रश्न पूछल बंद कर देबा कि काहें बनारसी एतना अइठन बाज होलन। आपन धुन, आपन राग। न कोई से डरना, न कोई सही आदमी के डराना। मन मिलल त सब कुछ न्यौछावर, नाहीं त गरिया क भगा दीहन। एकदम पूछल बंद कर देबा। देखा यार ई सच ह कि बनारसी हमेशा ई गुमान में रहेलन कि कुच्छो गड़बड़ होई त बाबा सब देख लीहन। ऐही से बनारसी पूरी दुनिया में आपन डंका भी बजावेलन। जहां जालन छा जालन।
कुछ दिन से सोशल साइट्स पर एक पोस्ट खूब शेयर होत ह कि ई काशी ह इहां जीते वाला पीएम और हारे वाला भी सीएम बन जाला। हां गुरु सच ह। ई हां जीते-हारे दुन्नों तरह के आदमी के कुछ न कुछ मिलेला। लेकिन यहू जान ल कि इहां बिना कुछ मांगे वाला के भी स्वर्ग नसीब होला। बाबा ओके जीवन-मृत्यु क माया से दूर कर लेवे लन। यार बाबा के लग्गे जवन आनंद ह उ कहीं ना ही ह। ऊहां जवन सुख ह ओतना त कउना कुर्सी पर बइठ कर नाहीं।

मजा ला शिवरात्रि क... मन करी त शिवरात्रि पर बनारस में रहकर देख लीहा... हम त पइदे लेली वहीं। यही सब देख के आगे बढ़ली। तोहू देख लीहा। सब भूल जइबा... 

Friday, 6 February 2015

ओबामा, असहिष्णुता और भारत


ओबामा, असहिष्णुता और भारत

26 जनवरी को बराक ओबामा इंडिया आए थे। इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी के साथ उनकी अच्छी ट्यूनिंग देखने को मिली। दौरे के दौरान दोनों की सात बार मुलाकात हुई। इस दौरान दोनों ने रेडियो के लिए संयुक्त रूप से रिकॉर्डिंग भी किया। पूरे विश्व में इसे अलग नजरिए से देखा गया। इसके साथ ही भारत की साख और पीएम मोदी के राजनीतिक दूरदृष्टि की लोगों ने बहुत तारीफ की थी। ओबामा अपनी तीन दिन के यात्रा के दौरान लौटे और भारत की मेजबानी की तारीफ की। 

 5 फरवरी को अमेरिका के बेहद प्रतिष्ठित और नामी गिरामी नेशनल प्रेयर ब्रेकफस्ट को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने संबोधित किया। इस दौरान ओबामा ने भारत में धार्मिक असहिष्णुता और महात्मा गांधी पर भी बोला। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों की आस्थाओं पर पिछले कुछ सालों से हमला हुआ है। लेकिन, पिछले कुछ सालों से भारत में हुई धार्मिक असहिष्णुता की घटनाओं  से शांति दूत महात्मा गांधी भी स्तब्ध रह जाते।


हालांकि, इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता मार्क स्ट्रो ने सफाई देते हुए कहा कि उसने अपने यहां और दुनिया भर में असहिष्णुता से निपटने में महात्मा गांधी की विरासत एक प्रेरणा है। ओबामा द्वारा धार्मिक सहिष्णुता पर दिया गया भाषण किसी एक समूह, धर्म या देश के बारे में नहीं था। स्ट्रो ने कहा, 'हम अमेरिका और विश्वभर में असहिष्णुता से निपटने में महात्मा गांधी की विरासत से प्रेरणा पाते हैं।' 

सवाल ये उठता है कि एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद कह रहा है कि दुनिया भर के लोग महात्मा गांधी से प्रेरणा लेते हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में उनकी पुण्यतिथि पर उनके हत्यारे की मूर्ति लगाने पर विवाद हो रहा है। मामला तब और गंभीर दिखता है जब बीजेपी से जुड़े लोग इसमें शामिल मिलते हैं। ऐसे में क्या हम दुनिया में असहिष्णुता की बात कर सकते हैं।

भारत में धार्मिक भेदभाव का आलम ये है कि कोई भी चुनाव हो वह अंतिम दिन तक आते-आते सांप्रदायिक और सेकुलर लोगों के बीच ही सिमट जाता है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि हम अपने देश में जब एकजुटता और शांति का संदेश नहीं दे सकते हैं तो विश्व में हम कैसे इसका प्रचार कर सकते हैं?

Thursday, 5 February 2015

गंगा: उम्मीद की एक और किरण दिखती हुई

गंगा: उम्मीद की एक और किरण दिखती हुई

देश के एक चौथाई भाग और खासतौर पर उत्तर भारत की जीविका की मेरुदंड कहलाने वाली गंगा आज खुद के लिए संघर्ष कर रही है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जिस गंगा जल के दर्शन, स्पर्श, मंजन और स्नान से लोगों के सारे पाप कट जाते हैं और जिसके आचमन मात्र से तन-मन पवित्र हो जाता है, आज उसी गंगा के जल को पीने से लोगों को तरह-तरह के रोग हो रहे हैं। 

गंगा की वैज्ञानिक महत्ता भी कुछ कम नहीं है। गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफोज वायरस होते हैं, ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय हो जाते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं। इसके साथ ही गंगा के पानी में वातावरण से ऑक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता भी है। गंगा नदी में दूसरी नदियों के मुकाबले सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा होती है। 

उत्तर भारत की 25 करोड़ से ज्यादा आबादी जिसमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल राज्य के लोग हैं, वे आज सीधे-सीधे गंगा के जल के प्रदूषित होने पर प्रभावित हो रहे हैं। 1985 में भारत सरकार ने प्रदूषण के कारण उत्पन्न खतरे से गंगा को बचाने के लिए गंगा एक्शन प्लान बनाया। इसका मुख्य लक्ष्य गंगा नदी की सफाई करना और उसके पानी की गुणवत्ता में सुधार करना था।

जिस गंगा की सफाई के लिए 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा पूजन कर उसके निर्मलीकरण का संकल्प लिया था, उसी जगह 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसकी सफाई का आह्वान किया। 1986 से 2015 के बीच 200 करोड़ से ज्यादा का पैसा खर्च करने के बाद भी नतीजा शून्य ही निकला। 

गंगा निर्मलीकरण सरकार के लिए एक ऐसा जख्म साबित हुआ जिसका जितना इलाज होता गया जख्म गहराते चले गए। 1986 में सेंट्रल गंगा अथॉरिटी (सीजीए) बनाई गई मगर इससे कुछ खास सफलता ना मिलता देख 1996 के दिसंबर महीने में सरकार ने राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना बनाई और गंगा एक्शन प्लान को उसमें जोड़ा गया। इस योजना पर अब तक लगभग 837.40 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। इससे भी काम नहीं चला तो नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी (एनजीआरबीए) बना दी गई। 2007 में गंगा को दुनिया की पांचवी सबसे प्रदूषित नदी करार दिया गया। इसके अगले साल, 4 नवंबर 2008 को भारत सरकार ने देश की जीवन रेखा गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित कर इसके संरक्षण की शुरुआत की। इन वर्षों में योजनाएं तो कई बनीं लेकिन व्यावहारिक धरातल पर सार्थक परिणाम सामने नहीं आ पाया। 

2014 में 16 वीं लोकसभा के चुनाव में गंगा की सफाई को भारतीय जनता पार्टी ने अपने मेनूफेस्टो में प्रमुखता के साथ रखा। इसे बल तब और मिला जब उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी गंगा तट पर स्थित प्राचीन शहर बनारस से अपनी दावेदारी की। मोदी के एक भाषण की एक लाईन ने तो पूरे देश में सुर्खियां बटोरी जिसमें उन्होंने बोला कि ‘न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है। दरअसल, मुझे तो मां गंगा ने यहां बुलाया है। यहां आकर मैं वैसी ही अनुभूति कर रहा हूं, जैसे एक बालक अपनी मां की गोद में करता है।‘ 

16वीं लोकसभा के परिणाम में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलते ही लोगों में ये आस फिर से जग गई कि इस सरकार द्वारा गंगा नदी की रक्षा के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी जाकर गंगा की सफाई के लिए आह्वान किया साथ ही उन्होंने अपने मंत्रीमंडल में भी गंगा सफाई के लिए बकायदा एक विभाग बनाकर उमा भारती को इसकी जिम्मेदारी सौंपी और उनके साथ कुछ और लोगों को भी इसमें जोड़ा। अब आवश्यकता है कि नागरिक चेतना नया आकार ग्रहण करे । इसे बचाने और बनाए रखने के लिए समग्र प्रयास की आवश्यकता है और ठोस प्रयास से ही गंगा के प्रति सच्ची आस्था और श्रद्धा की संज्ञा दी जा सकती है।

फेसबुक मेरे लाइफ का एक बेहतरीन पार्ट है

फेसबुक मेरे लाइफ का एक बेहतरीन पार्ट है


4 फरवरी 2004 को मार्क जुकरबर्ग साहब ने एक गजब की चीज लॉन्च की थी। उन्होंने उसका नाम 'फेसबुक' रखा। विलियम शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है',लेकिन जुकरबर्ग ने नाम में ही सबकुछ समेट लिया। हालांकि, शेक्सपियर साहब की ये लाइन 'better three hours too soon than a minute too late' मेरे हिसाब से फेसबुक के लिए फिट बैठता है...

हर चीज की कुछ अच्छाइयां और बुराइयां होती है.... जाहिर है फेसबुक की भी होंगी। लेकिन, मेरी नजर में हर एजुकेटेड व्यक्ति (अब इसे सरकारी आंकड़े से ना देख लीजिएगा कि जिसे अपना पूरा परिचय लिखना-पढ़ना आए वो शिक्षित है) के लिए यह एक बेस्ट प्लेटफॉर्म है। आज के समय में फेसबुक सिर्फ दोस्ती बढ़ाने और इंटरटेनमेंट का ही जरिया नहीं है, यह सोशल अवेयरनेस लाने, खुद का टैलेंट दिखाने के साथ-साथ न्यूज, आर्टिकल पढ़ने का भी एक बड़ा प्लेटफार्म बन गया है। यही नहीं, अब तो लोग यहां से बिजनेस के साथ-साथ खुद की और अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी करते हैं।
खैर मैं खुद पर आता हूं... मैंने फेसबुक पर सिर्फ जिज्ञासा या शौक के लिए ही आईडी बनाई थी। बहुत दिनों तक यहां सिर्फ टाइम पास होता रहा... इसके बाद यहां से मेरी लोगों से दोस्ती शुरू हुई... मामला ही बदल गया। मैंने फेसबुक पर देश-विदेश के सभी बड़े लेखक, जर्नलिस्ट, समाजसेवी और राजनीतिज्ञ लोगों को फॉलो करना शुरू कर दिया। यही नहीं, इसके बाद मैंने उनके बीच से भी ऐसे लोगों को फॉलो करना शुरू कर दिया, जिनकी लेखनी और सोच में वाकई दम है... यकीन मानिए मैंने इन लोगों से बहुत कुछ सीखा...
आपको जानकर आश्चर्य होगा, मेरी नौकरी भी फेसबुक के जरिए ही लगी। हुआ यूं कि एक यूनिवर्सिटी (बीएचयू नहीं) के एक लेक्चरर ने मुझे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजा... एक दूसरे के पोस्ट पर लाइक और कमेंट के साथ-साथ धीरे-धीरे मैसेज से बातचीत शुरू हुई... उसी दौरान मेरे कुछ शुभचिंतक (जीजा जी लोग, एक दो परिचित भैया, जिनसे मैं कॉलेज टाइम में मिला था, पापाजी के दोस्त लोग शामिल हैं) ने मुझे समझाया कि बेटा कुछ सालों के लिए बनारस से बाहर चले जाओ... कुछ बेहतर कर के बनारस आ जाना... मैंने बहुत सोचा और जाने का निर्णय लिया...

इसके बाद ऐसे ही बातचीत में सर (लैक्चरर) ने मुझे कहा कि नौकरी करोगे... मैंने कहा- कहां? उन्होंने कहा भोपाल दैनिक भास्कर... मैंने कहा सोच कर बताता हूं सर....इसके दो दिन बाद मैंने हां बोला और फिर निकल गया भोपाल... नौकरी भी लग गई... (मजे की बात है इस पोस्ट को सर भी पढ़ रहे होंगे)

एक ऐसा लड़का जो बचपन से लेकर कॉलेज खत्म होने तक कभी अकेला नहीं रहा हो... बचपन में चार दीदी, मां-पापा और बाबा जब तक मैं घर में रहता कोई न कोई साथ में ही रहता... इसके बाद स्कूल-कॉलेज और मोहल्ले में मेरे दोस्तों की एक लंबी लिस्ट बन पड़ी... अपनी उम्र क्या, अपने से छोटे और कई साल बड़े लोगों से मेरी बहुत अच्छी दोस्ती हो गई... घर में परिवार के लोगों के साथ और बाहर दोस्त-परिचितों के साथ ही समय बीता... रेयर्ली ही कभी अकेले कुछ खाता और कहीं जाता...

वही लड़का भोपाल जाने के बाद ऑफिस और रूम में सिमट कर रह गया... डिस्टर्ब हो गया था... फ्रस्टेशन-डिप्रेशन हावी हो रहा था... लेकिन, इसी बीच कुछ सहारा मिलता तो फेसबुक से मिलता... लोगों से कनेक्ट रहा... क्या बोलूं, उस दौरान भोपाल में रहने वाले मेरे एक बहुत अजीज दोस्त, घरवालों की याद के बाद मेरा हर कुछ फेसबुक ही हो गया था...
मेरे फेसबुक दोस्तों की ऐसी लिस्ट है कि मुझे ब्रेकिंग न्यूज भी जानना होता है तो मैं फेसबुक लॉग-इन कर लेता हूं, मैं बोर होता हूं तो भी फेसबुक वॉल पर नजर दौड़ाता हूं तो कुछ न कुछ बेहतरीन पढ़ने को मिल जाता है... देश-दुनिया से अपडेट रहने के लिए फेसबुक पर अपडेट रहने लगा...
स्वभाव से या खून से कह लीजिए सामाजिक मुद्दों के तरफ मैं तेजी से आकर्षित हो जाता हूं... इन चीजों के लिए फेसबुक मेरी बहुत मदद करता है... मैंने इससे आज तक जिस तरह की भी अवेयरनेस फैलाने या मुद्दों को उठाने की कोशिश की मुझे प्रॉपर रिस्पॉन्स मिला... लोगों ने मेरे पोस्ट पर एक्शन लिया... दिल से अच्छा लगा...

हाल ही में एक शादी में मुझे मेरे एक सूपर सीनियर (जो अब सरकारी नौकरी करते हैं) मिल गए... मैं उनसे कभी नहीं मिला था... लेकिन उन्होंने मुझे देखते ही आवाज लगाई... मैं उनसे फेसबुक से जुड़ा था, लेकिन पहचान नहीं पाया... उन्होंने अपना परिचय दिया मैंने भी पैर छुआ और बातचीत शुरू हुई... उन्होंने बताया कि वह जब भी फेसबुक पर आते हैं तो एक बार मेरे वॉल के तरफ जरूर जाते हैं... उन्हें मेरे पोस्ट अच्छे लगते हैं... यह जानकर मुझे बहुत अच्छा लगा... मैंने सोचा कि मेरी पोस्टों पर सर के लाइक और कमेंट तो नाम मात्र के आते थे, लेकिन वह हमेशा पढ़ते हैं... जवाब देने के लिए मेरे पास शब्द नहीं था...

लखनऊ लौटते समय ट्रेन में जब मैंने फेसबुक लॉगइन किया तो मुझे सर की बात याद आ गई... सोचा कुछ लिखूंगा... इसी बीच 4 फरवरी आ गया...सच कहता हूं फेसबुक आज के समय में मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है...
फेसबुक बनाने और लॉन्च करने के लिए जुकरबर्ग साहब को दिल से शुक्रिया...

dainikbhaskar.com पर लगा मेरा ये ऑर्टिकल...

http://www.bhaskar.com/news/UP-mark-zuckerberg-first-launced-facebook-its-become-a-part-of-my-life-4894052-PHO.html?seq=1