गंगा: उम्मीद की एक और किरण दिखती हुई
देश के एक चौथाई भाग और खासतौर पर उत्तर भारत की जीविका की मेरुदंड कहलाने वाली गंगा आज खुद के लिए संघर्ष कर रही है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जिस गंगा जल के दर्शन, स्पर्श, मंजन और स्नान से लोगों के सारे पाप कट जाते हैं और जिसके आचमन मात्र से तन-मन पवित्र हो जाता है, आज उसी गंगा के जल को पीने से लोगों को तरह-तरह के रोग हो रहे हैं।
गंगा की वैज्ञानिक महत्ता भी कुछ कम नहीं है। गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफोज वायरस होते हैं, ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय हो जाते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं। इसके साथ ही गंगा के पानी में वातावरण से ऑक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता भी है। गंगा नदी में दूसरी नदियों के मुकाबले सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा होती है।
उत्तर भारत की 25 करोड़ से ज्यादा आबादी जिसमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल राज्य के लोग हैं, वे आज सीधे-सीधे गंगा के जल के प्रदूषित होने पर प्रभावित हो रहे हैं। 1985 में भारत सरकार ने प्रदूषण के कारण उत्पन्न खतरे से गंगा को बचाने के लिए गंगा एक्शन प्लान बनाया। इसका मुख्य लक्ष्य गंगा नदी की सफाई करना और उसके पानी की गुणवत्ता में सुधार करना था।
जिस गंगा की सफाई के लिए 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा पूजन कर उसके निर्मलीकरण का संकल्प लिया था, उसी जगह 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसकी सफाई का आह्वान किया। 1986 से 2015 के बीच 200 करोड़ से ज्यादा का पैसा खर्च करने के बाद भी नतीजा शून्य ही निकला।
जिस गंगा की सफाई के लिए 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा पूजन कर उसके निर्मलीकरण का संकल्प लिया था, उसी जगह 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसकी सफाई का आह्वान किया। 1986 से 2015 के बीच 200 करोड़ से ज्यादा का पैसा खर्च करने के बाद भी नतीजा शून्य ही निकला।
गंगा निर्मलीकरण सरकार के लिए एक ऐसा जख्म साबित हुआ जिसका जितना इलाज होता गया जख्म गहराते चले गए। 1986 में सेंट्रल गंगा अथॉरिटी (सीजीए) बनाई गई मगर इससे कुछ खास सफलता ना मिलता देख 1996 के दिसंबर महीने में सरकार ने राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना बनाई और गंगा एक्शन प्लान को उसमें जोड़ा गया। इस योजना पर अब तक लगभग 837.40 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। इससे भी काम नहीं चला तो नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी (एनजीआरबीए) बना दी गई। 2007 में गंगा को दुनिया की पांचवी सबसे प्रदूषित नदी करार दिया गया। इसके अगले साल, 4 नवंबर 2008 को भारत सरकार ने देश की जीवन रेखा गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित कर इसके संरक्षण की शुरुआत की। इन वर्षों में योजनाएं तो कई बनीं लेकिन व्यावहारिक धरातल पर सार्थक परिणाम सामने नहीं आ पाया।
2014 में 16 वीं लोकसभा के चुनाव में गंगा की सफाई को भारतीय जनता पार्टी ने अपने मेनूफेस्टो में प्रमुखता के साथ रखा। इसे बल तब और मिला जब उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी गंगा तट पर स्थित प्राचीन शहर बनारस से अपनी दावेदारी की। मोदी के एक भाषण की एक लाईन ने तो पूरे देश में सुर्खियां बटोरी जिसमें उन्होंने बोला कि ‘न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है। दरअसल, मुझे तो मां गंगा ने यहां बुलाया है। यहां आकर मैं वैसी ही अनुभूति कर रहा हूं, जैसे एक बालक अपनी मां की गोद में करता है।‘
16वीं लोकसभा के परिणाम में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलते ही लोगों में ये आस फिर से जग गई कि इस सरकार द्वारा गंगा नदी की रक्षा के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी जाकर गंगा की सफाई के लिए आह्वान किया साथ ही उन्होंने अपने मंत्रीमंडल में भी गंगा सफाई के लिए बकायदा एक विभाग बनाकर उमा भारती को इसकी जिम्मेदारी सौंपी और उनके साथ कुछ और लोगों को भी इसमें जोड़ा। अब आवश्यकता है कि नागरिक चेतना नया आकार ग्रहण करे । इसे बचाने और बनाए रखने के लिए समग्र प्रयास की आवश्यकता है और ठोस प्रयास से ही गंगा के प्रति सच्ची आस्था और श्रद्धा की संज्ञा दी जा सकती है।
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