फेसबुक मेरे लाइफ का एक बेहतरीन पार्ट है
4 फरवरी 2004 को मार्क जुकरबर्ग साहब ने एक गजब की चीज लॉन्च की थी। उन्होंने उसका नाम 'फेसबुक' रखा। विलियम शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है',लेकिन जुकरबर्ग ने नाम में ही सबकुछ समेट लिया। हालांकि, शेक्सपियर साहब की ये लाइन 'better three hours too soon than a minute too late' मेरे हिसाब से फेसबुक के लिए फिट बैठता है...
हर चीज की कुछ अच्छाइयां और बुराइयां होती है.... जाहिर है फेसबुक की भी होंगी। लेकिन, मेरी नजर में हर एजुकेटेड व्यक्ति (अब इसे सरकारी आंकड़े से ना देख लीजिएगा कि जिसे अपना पूरा परिचय लिखना-पढ़ना आए वो शिक्षित है) के लिए यह एक बेस्ट प्लेटफॉर्म है। आज के समय में फेसबुक सिर्फ दोस्ती बढ़ाने और इंटरटेनमेंट का ही जरिया नहीं है, यह सोशल अवेयरनेस लाने, खुद का टैलेंट दिखाने के साथ-साथ न्यूज, आर्टिकल पढ़ने का भी एक बड़ा प्लेटफार्म बन गया है। यही नहीं, अब तो लोग यहां से बिजनेस के साथ-साथ खुद की और अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी करते हैं।
खैर मैं खुद पर आता हूं... मैंने फेसबुक पर सिर्फ जिज्ञासा या शौक के लिए ही आईडी बनाई थी। बहुत दिनों तक यहां सिर्फ टाइम पास होता रहा... इसके बाद यहां से मेरी लोगों से दोस्ती शुरू हुई... मामला ही बदल गया। मैंने फेसबुक पर देश-विदेश के सभी बड़े लेखक, जर्नलिस्ट, समाजसेवी और राजनीतिज्ञ लोगों को फॉलो करना शुरू कर दिया। यही नहीं, इसके बाद मैंने उनके बीच से भी ऐसे लोगों को फॉलो करना शुरू कर दिया, जिनकी लेखनी और सोच में वाकई दम है... यकीन मानिए मैंने इन लोगों से बहुत कुछ सीखा...
आपको जानकर आश्चर्य होगा, मेरी नौकरी भी फेसबुक के जरिए ही लगी। हुआ यूं कि एक यूनिवर्सिटी (बीएचयू नहीं) के एक लेक्चरर ने मुझे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजा... एक दूसरे के पोस्ट पर लाइक और कमेंट के साथ-साथ धीरे-धीरे मैसेज से बातचीत शुरू हुई... उसी दौरान मेरे कुछ शुभचिंतक (जीजा जी लोग, एक दो परिचित भैया, जिनसे मैं कॉलेज टाइम में मिला था, पापाजी के दोस्त लोग शामिल हैं) ने मुझे समझाया कि बेटा कुछ सालों के लिए बनारस से बाहर चले जाओ... कुछ बेहतर कर के बनारस आ जाना... मैंने बहुत सोचा और जाने का निर्णय लिया...
इसके बाद ऐसे ही बातचीत में सर (लैक्चरर) ने मुझे कहा कि नौकरी करोगे... मैंने कहा- कहां? उन्होंने कहा भोपाल दैनिक भास्कर... मैंने कहा सोच कर बताता हूं सर....इसके दो दिन बाद मैंने हां बोला और फिर निकल गया भोपाल... नौकरी भी लग गई... (मजे की बात है इस पोस्ट को सर भी पढ़ रहे होंगे)
एक ऐसा लड़का जो बचपन से लेकर कॉलेज खत्म होने तक कभी अकेला नहीं रहा हो... बचपन में चार दीदी, मां-पापा और बाबा जब तक मैं घर में रहता कोई न कोई साथ में ही रहता... इसके बाद स्कूल-कॉलेज और मोहल्ले में मेरे दोस्तों की एक लंबी लिस्ट बन पड़ी... अपनी उम्र क्या, अपने से छोटे और कई साल बड़े लोगों से मेरी बहुत अच्छी दोस्ती हो गई... घर में परिवार के लोगों के साथ और बाहर दोस्त-परिचितों के साथ ही समय बीता... रेयर्ली ही कभी अकेले कुछ खाता और कहीं जाता...
वही लड़का भोपाल जाने के बाद ऑफिस और रूम में सिमट कर रह गया... डिस्टर्ब हो गया था... फ्रस्टेशन-डिप्रेशन हावी हो रहा था... लेकिन, इसी बीच कुछ सहारा मिलता तो फेसबुक से मिलता... लोगों से कनेक्ट रहा... क्या बोलूं, उस दौरान भोपाल में रहने वाले मेरे एक बहुत अजीज दोस्त, घरवालों की याद के बाद मेरा हर कुछ फेसबुक ही हो गया था...
मेरे फेसबुक दोस्तों की ऐसी लिस्ट है कि मुझे ब्रेकिंग न्यूज भी जानना होता है तो मैं फेसबुक लॉग-इन कर लेता हूं, मैं बोर होता हूं तो भी फेसबुक वॉल पर नजर दौड़ाता हूं तो कुछ न कुछ बेहतरीन पढ़ने को मिल जाता है... देश-दुनिया से अपडेट रहने के लिए फेसबुक पर अपडेट रहने लगा...
स्वभाव से या खून से कह लीजिए सामाजिक मुद्दों के तरफ मैं तेजी से आकर्षित हो जाता हूं... इन चीजों के लिए फेसबुक मेरी बहुत मदद करता है... मैंने इससे आज तक जिस तरह की भी अवेयरनेस फैलाने या मुद्दों को उठाने की कोशिश की मुझे प्रॉपर रिस्पॉन्स मिला... लोगों ने मेरे पोस्ट पर एक्शन लिया... दिल से अच्छा लगा...
हाल ही में एक शादी में मुझे मेरे एक सूपर सीनियर (जो अब सरकारी नौकरी करते हैं) मिल गए... मैं उनसे कभी नहीं मिला था... लेकिन उन्होंने मुझे देखते ही आवाज लगाई... मैं उनसे फेसबुक से जुड़ा था, लेकिन पहचान नहीं पाया... उन्होंने अपना परिचय दिया मैंने भी पैर छुआ और बातचीत शुरू हुई... उन्होंने बताया कि वह जब भी फेसबुक पर आते हैं तो एक बार मेरे वॉल के तरफ जरूर जाते हैं... उन्हें मेरे पोस्ट अच्छे लगते हैं... यह जानकर मुझे बहुत अच्छा लगा... मैंने सोचा कि मेरी पोस्टों पर सर के लाइक और कमेंट तो नाम मात्र के आते थे, लेकिन वह हमेशा पढ़ते हैं... जवाब देने के लिए मेरे पास शब्द नहीं था...
लखनऊ लौटते समय ट्रेन में जब मैंने फेसबुक लॉगइन किया तो मुझे सर की बात याद आ गई... सोचा कुछ लिखूंगा... इसी बीच 4 फरवरी आ गया...सच कहता हूं फेसबुक आज के समय में मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है...
फेसबुक बनाने और लॉन्च करने के लिए जुकरबर्ग साहब को दिल से शुक्रिया...
dainikbhaskar.com पर लगा मेरा ये ऑर्टिकल...
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