ओबामा, असहिष्णुता और भारत
26 जनवरी को बराक ओबामा इंडिया आए थे। इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी के साथ उनकी अच्छी ट्यूनिंग देखने को मिली। दौरे के दौरान दोनों की सात बार मुलाकात हुई। इस दौरान दोनों ने रेडियो के लिए संयुक्त रूप से रिकॉर्डिंग भी किया। पूरे विश्व में इसे अलग नजरिए से देखा गया। इसके साथ ही भारत की साख और पीएम मोदी के राजनीतिक दूरदृष्टि की लोगों ने बहुत तारीफ की थी। ओबामा अपनी तीन दिन के यात्रा के दौरान लौटे और भारत की मेजबानी की तारीफ की।
5 फरवरी को अमेरिका के बेहद प्रतिष्ठित और नामी गिरामी नेशनल प्रेयर ब्रेकफस्ट को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने संबोधित किया। इस दौरान ओबामा ने भारत में धार्मिक असहिष्णुता और महात्मा गांधी पर भी बोला। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों की आस्थाओं पर पिछले कुछ सालों से हमला हुआ है। लेकिन, पिछले कुछ सालों से भारत में हुई धार्मिक असहिष्णुता की घटनाओं से शांति दूत महात्मा गांधी भी स्तब्ध रह जाते।
हालांकि, इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता मार्क स्ट्रो ने सफाई देते हुए कहा कि उसने अपने यहां और दुनिया भर में असहिष्णुता से निपटने में महात्मा गांधी की विरासत एक प्रेरणा है। ओबामा द्वारा धार्मिक सहिष्णुता पर दिया गया भाषण किसी एक समूह, धर्म या देश के बारे में नहीं था। स्ट्रो ने कहा, 'हम अमेरिका और विश्वभर में असहिष्णुता से निपटने में महात्मा गांधी की विरासत से प्रेरणा पाते हैं।'
सवाल ये उठता है कि एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद कह रहा है कि दुनिया भर के लोग महात्मा गांधी से प्रेरणा लेते हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में उनकी पुण्यतिथि पर उनके हत्यारे की मूर्ति लगाने पर विवाद हो रहा है। मामला तब और गंभीर दिखता है जब बीजेपी से जुड़े लोग इसमें शामिल मिलते हैं। ऐसे में क्या हम दुनिया में असहिष्णुता की बात कर सकते हैं।
भारत में धार्मिक भेदभाव का आलम ये है कि कोई भी चुनाव हो वह अंतिम दिन तक आते-आते सांप्रदायिक और सेकुलर लोगों के बीच ही सिमट जाता है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि हम अपने देश में जब एकजुटता और शांति का संदेश नहीं दे सकते हैं तो विश्व में हम कैसे इसका प्रचार कर सकते हैं?
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