Saturday, 9 May 2015

कोई तीर्थ नहीं है ऐसा, जैसा मां का प्यार

कोई तीर्थ नहीं है ऐसा, जैसा मां का प्यार

'मां' इस शब्द में ही पूरी दुनिया समाहित है। मां का ध्यान आते ही दिमाग काम करना बंद कर देता है, काम करता है तो बस दिल। मैं आज जो भी हो वह मां के प्यार, करूणा, स्नेह, ममता और वात्सल्य की ही वजह से हूं। यह 100 फीसदी सच लगता है कि ईश्वर हर समय हमारे साथ नहीं रह सकते, मां उनकी कमी को उनसे बेहतर तरीके से पूरी कर सकें, इसलिए उनका सृजन किया गया है।

जब फ्लैशबैक में जाता हूं तो बचपन के दिनों के सीन्स ऐसे सामने आ जाता है जैसे पूरी रिकॉर्डिंग दिमाग में सहेज कर रखा हुआ हूं। क्लास थ्री तक मां की गोद में ही स्कूल जाना। हर चीजों की फरमाइश पूरी होना। मेरे हर शौक को खुद का बना लेना। मेरे लिए ही सपने देखना। अपने वर्तमान को मेरे भविष्य से जोड़ना। मेरी खुशी के लिए अपने हर खुशी से कंप्रोमाइज करना। जैसे-जैसे मैं बड़ा होता, लगता मां में कुछ और शक्ति जुड़ रही है।  

मैं भूखा हूं तो मां को पता चल जाता है, मैं सोया नहीं हूं तो मां को पता चल जाता है, मैं किसी चीज के लिए परेशान हूं तो मां को पता चल जाता है। सोचता हूं कि मां के दिल में ये कैसा ड्रोन कैमरा फिक्स होता है जो वह हर चीज देख और महसूस कर लेती हैं? 

मां शब्द में एक दुनिया होती है
जिसका सबकुछ मैं होता हूं...

मां का एक सपना होता है,
जिसमें मेरे भविष्य की खुशियां होती हैं...

मां का एक शौक होता है,
जो मेरी कामयाबी में निहित होती है...

मां को भी भूख लगता है,
लेकिन मेरा पेट भरने के बाद, उन्हें महसूस होता है...

मां में भी एक उम्मीद होती है,
लेकिन, मुझे उसका बोझ नहीं डालना चाहती है...

मां की भी ख्वाहिश होती है,
जो मेरी जरूरतों की भरपाई के साथ पूरी होती है...

मां बूढ़ी होती है, मैं जवान होता हूं,
लेकिन, मां मुझमें अपना अक्स ढूंढ, सपने पूरा होते देखती है...

मां दूर भी होती है,
लेकिन, उसे मेरे हर दुख का अहसास होता है...

मैं मां से बोलना चाहता हूं,
लेकिन मां उससे पहले सब जान, उसके इलाज के बारे में बताती है...

शायद मां ही हैं, जहां विज्ञान फेल होता है,
क्योंकि शरीर के प्रमुख अंगों में मां का नाम नहीं होता है...

रोज दिन में दो से तीन बार मेरी मां से फोन पर बात होती है। फोन रिसीव होते ही मेरे प्रणाम मां बोलने के बाद मैं चुप हो जाता हूं। क्योंकि आगे के 30-40 सेकेंड तक मां हर बार की तरह वही वाक्य और शब्द बोलती हैं- खुश रहो बेटा... विश्वनाथ जी भला करें... गणेश जी सारी मनोकामना पूरी करें। दुर्गा माई सब दुख दूर करें। गंगा मइया करें जो चाहते हो वह पाओ... दिन दूना रात चौगुना सफलता पाओ...! बहुत जत्तन से पलले हईं... ध्यान रखा आपन...! इसके बाद का भी फिक्स वाक्य- क्या खाए हो? बस यहीं पर मैं हर बार की तरह झूठ बोलता हूं 'जो भी अच्छा खाने का डिश मन में आता है बोल देता हूं'... मां का अगला वाक्य भी हमेशा की तरह होता है- काहें झूठ बोलत हउवा... मैं हंसता हूं और फिर जो खाया रहता हूं वह बोल देता हूं। ताज्जुब की बात है कि अगर इस वक्त भी मैं झूठ बोलता रहता हूं तो वह तुरंत पकड़ लेती हैं। किसी शायर ने कहा है-

काशी देखा, मथुरा देखा और देखा हरिद्वार।
नासिक घूमा, गया घूमा और घूमा सारा संसार।।
चंडी पूजा, मंसा पूजा और पूजा माता का दरबार।
लेकिन, कोई तीर्थ नहीं है ऐसा, जैसा मां का प्यार।।

नोट: बहुत ज्यादा इमोशनल हूं, शायद इसलिए मां-पापाजी के नाम पर की-बोर्ड पर उंगलियां नहीं चलती। शरीर में अजीब से बेचैनी आ जाती है। उनके बारे में जब भी सोचता हूं, मन करता है सब छोड़ कर उनके पास चला जाऊं। जबतक घर पर था 21 वीं सदी की बहुत सी चीजों का पाने की ख्वाहिश थी, लेकिन अब सिर्फ और सिर्फ मां-पापाजी की खुशियों के लिए कुछ भी करने की सोचता हूं। 

मां-पाप ही सबकुछ हैं... साल का एक दिन नहीं, जिंदगी का हर सेकेंड उनके लिए है... सबको मिले मां का प्यार इस उम्मीद के साथ हैप्पी वाला मडर्स डे...

इसे dainikbhaskar.com पर भी पढ़ सकते हैं:- http://www.bhaskar.com/news/UP-mothers-day-own-thought-on-my-mother-4988265-NOR.html

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