गुजरात में पटेल-पाटीदार कम्युनिटी के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हार्दिक पटेल अब पूरे देश में आंदोलन करेंगे। उन्होंने ऐलान किया है कि दिल्ली और लखनऊ में भी वह अपनी मांगों के लिए सड़क पर उतरेंगे। इसके बाद से ही आरक्षण के पक्ष और विपक्ष दोनों में एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है। कुछ लोगों का मानना है कि यह आंदोलन पटेल-पाटीदार जाति को तो आरक्षण नहीं दिला पाएगा, लेकिन आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करने की मांग कर रहे लोगों को जरूर मजबूत करेगा।
वायु पुराण में एक श्लोक लिखा है, मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पयः। जातौ जातौ नवाचाराः नवा वाणी मुखे मुखे ।।
इसका अर्थ है- जितने मनुष्य हैं, उतने विचार हैं। एक ही गांव के अंदर अलग-अलग कुएं के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है। एक ही संस्कार के लिए अलग-अलग जातियों में अलग-अलग रिवाज होता है। एक ही घटना का बखान हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से करता है। इसमें आश्चर्य करने या बुरा मानने की जरूरत नहीं है।
साल 1990 में जब मंडल कमीशन लागू हुआ था, तब उसका विरोध करने में बीजेपी और संघ सबसे आगे रहे थे। यही नहीं, जातिगत आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी की वाजपेयी सरकार में भी काफी बहस हुई थी। उस दौरान बीजेपी ने आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत करते हुए इसे अपने घोषणापत्र में भी शामिल किया था। कहीं ऐसा तो नहीं कि मोदी सरकार में भी आरक्षण के विरोध में माहौल बनाने की कोशिश हो रही है? या आरक्षण के खिलाफ दूसरी जातियों में बढ़ रहे विरोध को भुनाने की कोशिश की जा रही है?
एक सर्वे के मुताबिक, देश के सबसे बड़े प्रदेश यूपी में 50 हजार से ज्यादा गांवों में पिछड़ों की आबादी कुल जनसंख्या की 53.33 फीसदी है। वहीं, यूपी के 75 जिलो में से 51 में ओबीसी की जनसंख्या 60 फीसदी से ज्यादा है। पंचायती राज विभाग के रैपिड सर्वे में एक ओर पिछड़े वर्ग की आबादी 53.12 फीसदी से बढ़कर 53.33 फीसदी हो गई है तो दलितों की आबादी में 0.5 फीसदी की कमी आई है। हालांकि, रैपिड सर्वे में अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी में 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। राजनैतिक पार्टियां इसे अपने 'पिछड़ा कार्ड' के तुरूप के इक्के की तौर पर देख रही हैं।
राजस्थान के गुर्जर, हरियाणा के जाट, महाराष्ट्र के मराठा पहले ही आरक्षण की मांग कर चुके हैं और अब गुजरात के पटेल-पाटीदार जाति। देश में इन हिस्सों में हिंसक आंदोलन कराके SC/ST/OBC आरक्षण की मांग हो चुकी है। पूरे देश में पिछड़ा बनने की होड़ क्यों लगी है? आरक्षण की मांग को लेकर हुए पाटीदार समाज के आंदोलन ने देश में फिर से बहस छेड़ दी है कि आरक्षण किसको मिले और किसको नहीं? या तो सबको आरक्षण मिले या किसी को नहीं। पटेल समुदाय के जरिए हिंसक आंदोलन कराने का मकसद देश में आरक्षण विरोधी माहौल बनाना तो नहीं? शायद कहीं कुछ फायदा और कहीं कुछ राजनीति है।