फ्रैंडशिप डे, फाडर्स डे, मडर्स डे, ऐसे ही आजकल हर तारीख को कोई न कोई 'डे' होता है। मुझे ये 'डे' मनाना पसंद नहीं, लेकिन क्या करूं इनमें से कुछ के नाम ही ऐसे होते हैं कि न चाहते हुए भी इसकी खुशी में शामिल हो जाता हूं।
आज लोग फ्रेंडशिप डे मना रहे हैं। सोशल साइट्स पर यह ट्रेडिंग सब्जेक्ट है। दोस्ती को लेकर लोगों ने बड़े ही दिलचस्प ट्वीट किए हैं, जिन्हें पढ़ कर वह सुनहरे दिन याद आ गए जब लगता था कि बस दोस्तों का साथ हो तो हर कुछ मुमकिन है। 12 बजे रात से मिल रहे फ्रेंडशिप डे के मैसेज और कुछ दोस्तों द्वारा भेजी गई साथ की पुरानी फोटोज ने सबकुछ ताजा कर दिया। दोस्तों के साथ इमोशनल अटैचमेंट रहा है, जिसमें कोई स्वार्थ-चापलूसी का दूर दूर तक कोई मामला नहीं रहा। आज भी बनारस से जुड़ा हर काम फट से हो जाता है, जिसका मुझे घमंड भी रहता है।
जब कॉलेज के बाद बनारस से बाहर नौकरी करने की बात आई तो मेरे कुछ शुभचिंतकों ने कहा था कि बस 6 महीने बनारस से बाहर रहोगे तो सभी दोस्त, भैया और चाचा भूल जाएंगे। तुम्हें भी उनकी याद नहीं आएगी और नई जगह नए तरीके से जिंदगी जीने लगोगे। लेकिन, उनकी बातें 100 फीसदी गलत साबित हुईं। मैं आज भी बनारस जाता हूं तो मुझे चाचा-भइया कहने वालों से लगायत ऐसे लोग जिन्हें मैं दोस्त, भइया और चाचा कहता हूं मुझसे ऐसे मिलते हैं कि इसे व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।
एक छोटा सा उदाहरण है। सोमवार को मेरा वीकली ऑफ होता है, इसलिए हर सप्ताह सोमवार या रविवार की शाम तक मेरे कई दोस्त, भइया और शुभचिंतकों का कॉल-मैसेज यह पूछने के लिए आ जाता है कि मैं बनारस आ रहा हूं या नहीं। आज के समय में सब बिजी हैं, लेकिन वह टाइम निकाल कर मुझसे मिलते हैं। साथ में घंटों बैठने की कोशिश करते हैं। एक दूसरा उदाहरण भी देख लीजिए। एक बार मैं काशी विश्वनाथ ट्रेन से कैंट स्टेशन उतरा और स्टेशन से जैसे ही बाहर निकला तो आवाज आई- भैया महादेव। मैंने मुड़कर देखा तो मेरा एक दोस्त दिखा। वह ऑफिस जा रहा था। हम दोनों ने एक दूसरे का हालचाल लिया। इसी बीच उसने बोला, 'चला घर छोड़ देई। मैंने कहा कि भाई ऑफिस जा, हम ऑटो से चल जाइब। उसने तुरंत जवाब दिया कि कल सुबह तू फिर से निकल जइबा। संझा के फोन करब त तू कह देबा फला जगह फला आदमी के संगे हई। मुलाकात हो न पाई। ऑफिस में त रोज गाली सुनी ला आज तोहरे संगे में समय बिता कर सुनब त पुराना याद ताजा हो जाई। हां ओ समय पापा-मम्मी डांटत रहलन अब ऑफिस में थोड़ा सा सुने के पड़ी।'
मेरे दोस्तों की संख्या भी इतनी है कि मैं उंगलियों पर नहीं गिन सकता और कभी गिनने की कोशिश भी नहीं की। दोस्तों का मेरी जिंदगी में बहुत सहयोग रहा है। हर सुख-दुख में साथ खड़े रहे हैं। हर तरह के दोस्त। हर तरह की शैतानी। कुछ भी नहीं बचा है। क्या अच्छा, क्या बुरा। समाज की नजर में शरीफ से शरीफ और बदमाश से बदमाश, सब मेरे अच्छे दोस्त रहे हैं। इतनी चीजें हैं कि किसी से कहने पर वह यह भी सोच सकता है कि फेंक रहा है। भौकाली बनारसी है। लेकिन, हकीकत क्या है मैं जानता हूं और मेरे दोस्त जानते हैं। कुछ चीजें तो एक ग्रुप के दोस्तों के साथ होने पर दूसरे ग्रुप के दोस्तों को बताने पर उन्हें भी आश्चर्य होता था।
ऐसे ही एक दोस्त से गुस्सा होकर मैंने उसे ब्लॉक कर दिया, जिससे लगभग एक महीने हम दोनों की बात नहीं हो पाई। एक दिन मंदिर के बाहर वह मुझसे मिल गया। मैंने झूठ बोल दिया कि भाई फोन ही नहीं है और इस समय पैसा नहीं है कि नया खरीदूं। इसके बाद मैं देर रात घर पहुंचा तो मम्मी बताईं कि फला लड़का आया था, ये मोबाइल देकर गया है। बहुत देर तक तुम्हारा इंतजार किया, अभी-अभी गया है। ये कुछ किस्से हैं।
मुझसे ज्यादा उम्र के भी भइया लोगों से मेरी बहुत अच्छी दोस्ती रही है। सब दिल, पद और व्यक्तित्व से बड़े आदमी। लोग उनसे परिचय बढ़ाने के लिए परेशान रहते हैं। मुझसे परिचय और मामूली बोलचाल से दोस्ती और फिर छोटा भाई तक का सफर इतना जल्दी बीत गया कि मैं खुद अंदाजा नहीं लगा सकता। वे अपने-अपने क्षेत्र में इतना काम किए हैं कि समाज भी उन्हें बड़ा आदमी मानता है। आज भी उनका केयर करना, मेरी हर चीजों में मुझे पॉजिटिव सुक्षाव देना। हम देर रात बातें करते हैं, किसी हम उम्र दोस्त या घरवालों की तरह। उनका मेरे करियर की चिंता करना, यह सब मेरी जिंदगी की एक बड़ी उपलब्धि है।
बनारस से निकलने के बाद मैंने दोस्ती करना छोड़ दिया। भोपाल में मुझे एक दोस्त मिला। बाकी सब फार्मेलिटी वाले ही रहे। लखनऊ में मुझे एक बड़े भाई जैसे दोस्त मिले। व्यक्तित्व के अच्छे और नि:स्वार्थ संबंध रखने वाले। वह भी बनारस के उन्हीं भइया लोगों की तरह हैं जो मेरा फोन न उठाने और वॉट्सऐप का जवाब नहीं देने पर परेशान हो जाते हैं। सच बताऊं दो साल बाद अच्छी दोस्ती हुई।
दोस्तों के साथ की ऐसी यादें हैं जिन्हें मैं कभी नहीं भूल सकता। कभी भी नहीं। इतनी यादें हैं कि सच में एक डायरी भर जाएगी। उनकी दोस्ती मेरी जिंदगी का एक हिस्सा बन गई है। व्यस्त नौकरी के बीच आज बहुत कम बातें होती हैं, फेसबुक पर लाइक, कमेंट वॉट्सऐप पर एक-दो चैट और जरूरत पड़ने पर फोन करने के अलावा ज्यादा बात नहीं होती है। लेकिन, आज भी दोस्तों का साथ वैसा ही है। उनसे बात करना ऑक्सीजन की तरह काम करता है। उनके साथ समय बिताना एक ख्वाहिश के पूरे होने जैसा लगता है। दोस्तों ने मेरा इतना साथ दिया कि मैं उन्हें कभी धन्यवाद भी नहीं बोल सकता। धन्यवाद, आभार यह शब्द बौने हैं उनके सहयोग के आगे।
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