Thursday, 20 August 2015

अमीर-गरीब सभी के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ें, 'भगवानों' के खिलाफ मार्च निकाले लोग

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। इसमें कहा गया है कि यूपी के सभी जनप्रतिनिधियों, सरकारी अफसरों, एंप्लॉइज और जजों को अपने बच्चों को सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाना होगा। है न शानदार फैसला!

जनप्रतिनिधी, सरकारी अफसर, एंप्लॉइज और जज यही मिलकर देश चलाते हैं। ये ही पृथ्वी के भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश और विश्वकर्मा हैं। यही आम लोगों का मुकद्दर लिखते हैं और वह भी पैसे (तनख्वाह) लेकर। वहीं, आम आदमियों की आदत होती है अफसर और बड़े लोगों के पीछे चलने की। उनके गुणगान गाने की। लेकिन, क्या ये भगवान उनके बारे में सोचते हैं। अगर हां तो हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक, पढ़ाएं अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में। अगर नहीं पढ़ा सकते तो आम लोगों को अपनी आदत बदलते हुए इन भगवानों के खिलाफ कैंडिल मार्च निकालना चाहिए। वैसे ही जैसे आए दिन कहीं न कहीं निकालते हैं। उन्हें मजबूर करना चाहिए कि वे अपने बच्चों को सरकारी-प्राथमिक स्कूल में पढ़ाएं। जिससे वह सरकारी-प्राथमिक स्कूल की व्यवस्था को ठीक करने में जरूरी कदम उठाएं। उस सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने की जिसके द्वारा इस मामले में याचिका दायर करने वाले शिक्षक शिव कुमार पाठक को बर्खास्त कर दिया गया है। 

सरकारी स्कूलों का हाल किसी से छुपा नहीं है। वहां कक्षा (क्लास) 5 के कई बच्चों के अपने स्कूल का पूरा नाम और 100 तक की गिनती तक नहीं आती। वह बच्चे जब किसी तरह क्लास 8-9 तक पहुंचते हैं और तो उनका सामना होता है 10वीं के बोर्ड एग्जाम से। फिर वहां उनकी मुलाकात होती है नकल माफियाओं से और वह किसी तरह से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी कर लेते हैं। इसके बाद जैसे ही पोस्ट ग्रेजुएशन या किसी कंपीटिटिव एग्जाम के लिए वह एप्लाई करते हैं तो उनका सामना होता है प्राइवेट स्कूल और सीबीएसई-आईसीएसई बोर्ड के बच्चों से। यहीं से उन्हें उनकी हैसियत समझ में आ जाती है और बढ़ती है बेरोजगारी।

इसमें बच्चों की क्या गलती है। वह तो बेचारे कच्ची मिट्टी के लोथे होते हैं। उन्हें जो जैसा पढ़ाएगा और जिस ढांचे में ढ़ालेगा वह उसी तरह ढ़लेंगे। पढ़ाई का वैज्ञानिक तरीका क्या उन्हें तो प्राथमिक तरीके से भी नहीं पढ़ाया जाता है। न तो अच्छे टीचर मिलते हैं और न ही व्यवस्था। एक-दो टीचरों से पूरा स्कूल चलता है और उनमें भी अधिकतर जुगाड़ से नौकरी पाए हुए रहते हैं। ऐसे में बच्चे क्या कर पाएंगे। सभी तो एकलव्य नहीं होते।

अब सरकारी स्कूलों के टीचर की बात करते हैं। स्कूल में पढ़ाने से ज्यादा उनकी ड्यूटी चुनावों में, सरकारी अभियानों में, मिड डे मिल का खाना बनवाने में और स्कूल की बिल्डिंग-टॉयलेट जैसी व्यवस्थाओं को देखने में ही बीत जाती है। बचे टाइम में वे क्लास लेते हैं। इसमें भी कहीं-कहीं तो एक साथ एक ही रूम में कई क्लास के बच्चों को पढ़ाया जाता है। ऐसे में वह कितना ज्ञान दे देंगे।

अब आते हैं बच्चों के अभिभावक पर। मौजूदा समय में वे ही अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाते हैं, जो गरीबी की मार झेल रहे हैं और प्राइवेट स्कूल का बोझ नहीं उठा सकते। चूंकि प्राइवेट स्कूलों की फीस के साथ-साथ अतिरिक्त खर्चे इतने होते हैं जितने में उनका पूरा परिवार एक महीना तक भोजन कर ले। इसलिए वह भोजन को ही प्राथमिकता पर रखते हैं और बच्चों को सरकारी-प्राथमिक स्कूलों में ही पढ़ाते हैं।

जनप्रतिनिधी, सरकारी अफसर, एंप्लॉइज और जज (पृथ्वी के भगवान) यही मिलकर देश चलाते हैं। ये अपने बच्चों को देश-विदेश के बड़े संस्थानों में पढ़ाते हैं। उनकी बेहतरी के लिए कुछ भी करते हैं। अब इन्हीं के बच्चे सरकारी-प्राथमिक स्कूलों में पढ़ेंगे तो वे वहां की व्यवस्थाएं सुधारने के लिए भी हर मुकम्मल व्यवस्था करेंगे। ठीक उसी तरह जैसे वह अपने बच्चों के लिए पूरा सिस्टम इधर से उधर कर देते हैं। 

हाईकोर्ट के मुताबिक, यदि सरकारी कर्मचारियों ने अपने बच्‍चों को कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ाया तो उन्‍हें फीस के बराबर की रकम हर महीने सरकारी खजाने में जमा करानी होगी। कोर्ट ने यह भी कहा था कि ऐसे लोगों का इन्क्रीमेंट और प्रमोशन कुछ वक्त के लिए रोकने के इंतजाम किए जाएं। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने यह आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने यूपी के मुख्य सचिव को आदेश दिया था कि वे बाकी अफसरों से राय-मशविरा करके 6 महीने में नई व्यवस्था कराएं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से कहा है कि वे इस मामले में छह महीने बाद रिपोर्ट भी दें।

अब देखिए सिस्टम की कारस्तानी। पीआईएल दाखिल करने वाले सुल्तानपुर के प्राथमिक स्कूल में टीचर शिव कुमार पाठक को डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन अफसर ने बर्खास्त कर दिया। उन पर आरोप है कि वे स्कूल से लगातार छुट्टी ले रहे थे। जबकि, शिव कुमार पाठक ने कहा कि उन पर गलत आरोप लगाया गया है। उन्होंने कहा कि जब भी कोर्ट में पैरवी का दिन आया, तो वे स्कूल से बाकायदा लिखित में छुट्टी लेकर गए हैं। प्रिंसिपल ने उन्हें छुट्टी दी है। उन्होंने कहा, "मैं सरकार के खिलाफ कई मामलों में अपोजिट पार्टी हूं, इसलिए मुझ पर कार्रवाई की जा रही है। महीनों कई टीचर नहीं आते, लेकिन उन्हें कभी बर्खास्त नहीं किया गया। मैं इसके खिलाफ अपील करूंगा।"




फोटो छत्तीसगढ़ के एक स्कूल की है, जहां टीचर शराब के नशे में 'अ' से आम और 'द' से दारू पियो सिखा रहा था।

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