Wednesday, 24 December 2014

मालवीय जी की आत्मा अब भी बीएचयू को पवित्र करती है

मालवीय जी की आत्मा अब भी बीएचयू को पवित्र करती है

साहेब जरा ‪#‎बीएचयू‬ जा कर देखो, लगेगा कि मालवीय जी की आत्मा अब भी उस कैंपस को पवित्र कर रही है... ‪#‎मालवीय‬ जी भगवान तुल्य हैं...
‪#‎भारत‬ रत्न' अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है... इसके नाम में ही 'भारत' जुड़ा है... इसलिए यह सम्मान #मालवीय जी के कद को और ऊंचा कर रहा है... लेकिन ऐसे तथाकथित लोग जो मालवीय जी को यह सम्मान देने का विरोध कर रहे हैं, उनसे बस ये कहना चाहते हैं कि वे हम लोगों के लिए भगवान जैसे हैं... विरोध न करें... हिम्मत हो तो अंतिम सांस तक में उन्होंने जितना किया है उसका 1% भी कर के दिखा दें, मान लेंगे कि आप में कुछ दम है ...

मैं तो मानता हूं कि अब तक जिन 45 लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है उसमें महामना निर्विवाद रूप से नंबर 1 पर हैं... उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती...

नोट: एक छोटा सा निवेदन भी है कि भाई लोगों, जरा मालवीय जी का नाम सम्मान से लो... मालवीय ना लिखो... जी लगा लो, महामना लगा लो... नहीं सम्मान दे सकते हो तो टाइम निकाल कर 2-3 घंटे मालवीय जी को गुगल पर सर्च करके पढ़ लो, अपने आप देने लगोगे..

Wednesday, 10 December 2014

दोस्त कहूं, तांत्रिक कहूं या फ्रॉड?

दोस्त कहूं, तांत्रिक कहूं या फ्रॉड?

आज गुगल पर ऐसे ही इमेज सर्च कर रहा था... अचानक एक तांत्रिक पर आंखें रूक गई... लगा इसे कहीं देखे हैं... याद ही नहीं आ रहा था... फिर पेज खोजते हुए उसके फेसबुक पेज तक पहुंच गए... कई फोटो देखने के बाद क्लियर हुआ कि अरे ये तो अपना .... दोस्त है...
मेरे ही मोहल्ले में रहता था... मेरे ही स्कूल से पढ़ा भी था... हां शायद कुछ गलत संगत में चला गया था...
भोपाल जाने से पहले जब मैं राघवेंद्र मिश्र ही था, तब वे एक बार आया था... बता रहा था भाई डकैती के इलजाम में पुलिस पकड़ ली थी... बड़ा परेशान चल रहे हैं... मैंने उसे एक भैया जो बड़े नेता हैं से मिलवाया, उसका काम हो गया था... इसके बाद आखिरी बांर होली में मिला था... सफारी गाड़ी से जा रहा था कहीं... मुझे देख कर अबीर लगाने के लिए रूका... फिर कहा- भाई कल मिलते हैं, बिजनेस प्लान किए हैं.. तुम्हें भी उसमें शामिल करना है... फिर निकल गया...

इसके बाद आज दिखा... तांत्रिक के भेष में... उसके बगल में एक गनर... न जाने कितना कंठी माला पहने हुए... उसके फेसबुक पेज पर कई वीडियो दिखा... इसमें वह श्मशान पर कुछ कर रहा था... इसके अलावा भी कई मंदिरों में खींचा हुआ फोटो लगाया हुआ था...

मजे की बात है उसने अपना एड्रेस-कलकत्ता, स्टडी इन- असम यूनिवर्सिटी, वर्क एज- भारतीय साधक, लिखा हुआ है... दुनिया भर के लोग उस पर गुरु जी चरण स्पर्श... गुरु जी अपना नंबर दीजिए... इस टाइप का कमेंट किए पड़े हैं...
क्या बोलूं... बस लगता है हिंदी शब्दकोश में आने वाले समय में चोर/डकैत का पर्यावाची बाबा ना हो जाए

Wednesday, 3 December 2014

हर लड़का खराब और हर लड़की सही ? ये कैसी सोच??

हर लड़का खराब और हर लड़की सही ? ये कैसी सोच??

हर लड़की का कॉलर सर्फ एक्सल से सफा और हर लड़का कीचड़ में सना... ई कैसा नजरिया??? वो कहां है जो स्कूटी का एक्सीडेंट हो जाए तो पूरे झुंड में उसे उठाने को दौड़ते हैं और बाइक सवार लड़के का हो जाए तो गरियाते हैं कि गिरने दो टशन मार रहा होगा...

लड़की-लड़कों में अंतर न करने वाले लोग कहां है भाई? दो लड़कियां लड़के को लात-घूसे से मारती हैं, एक लड़की वीडियो बनाती है... इसके बाद दोनों लड़कियां सीधे मर्दानी (झांसी की रानी) बन जाती हैं... लड़कियां, लड़कों को मार रहीं हैं तो ठीक ही कर रही हैं...

गुरु ऊपर से मर्दानी भी देख कर दुखी होंगी कि मरने के बाद सारे किए धरे पर ई सब पानी फेर दे रहे हैं... कोइयो से तुलना कर दे रहे हैं...

गलत लड़के भी हो सकते हैं और लड़कियां भी... जरूरत है दोनों को बराबर देखने की... नियम-कानून दोनों के लिए बराबर बनाने चाहिए...

मानते हैं कि लड़कियों के साथ छेड़खानी जैसे मामले ज्यादा हो रहे हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बस कोई लड़की, किसी भी लड़की पर इल्जाम लगा दे और लड़के के साथ कहानी हो जाए... हुजूर तफ्तीश तो कर लेते...

लड़कियों के इस घटना और दो महीने पहले पार्क वाली घटना दोनों के वीडियो की तफ्तीश करनी चाहिए... अगर लड़कियों की गलती है तो उन्हें सजा मिलनी चाहिए... लड़कियों पर छेड़खानी, मारपीट से लेकर मानहानी तक का केस दर्ज होना चाहिए... आखिर बिना गलती के बेइज्जत लड़के पर क्या गुजरता होगा...

Monday, 24 November 2014

मनीला ट्रांस का बीएचयू वर्जन

मनीला ट्रांस का बीएचयू वर्जन

दम-दम, बम-बम खिंच मेरे हमदम- ‪#‎मनीला‬ ट्रांस को हनी सिंह ‪#‎BHU‬ पर कुछ ऐसा गाते
दम-दम, बम-बम लूट मेरे हमदम
लूटेगा तू तो कहलाएगा #BHU नंबर वन
मजा लेगा तू वीसी, रिजस्ट्रार और प्रोफेसर बन ...
दम-दम, बम-बम #BHU को लूट मेरे हमदम...
बदला मिजाज, ‪#‎स्टूडेंट्स‬ यूनियन की मांग पर
मांग ऐसा है, जिससे उजागर होगी वहां फैली ‪#‎लूट‬ हर...
थोड़ा तो मार लो #स्टूडेंट्स को दौड़ा कर, ‪#‎पॉवर‬ के नशे में
पुलिस-पीएसी लगा के, ‪#‎हॉस्टल‬ में घूस के...
दम-दम, बम-बम लूट मेरे हमदम...
कैसे होता है, वहां ‪#‎रिक्रूटमेंट‬-प्रमोशन, कैसे मैं बताऊं ये
लगा है सब-कुछ ठाकुर-बाभन की लूट खसोट पंचाइत पर..
ठोड़ा-ठो़ड़ा माल, जो भी आया लूटा जाम...
दम-दम, बम-बम लूट मेरे हमदम...
जन्नत है ये #BHU परिसर, खानदानी विरासत के लिए कर ले इसे जतन
हम दम मेरे संग लूट की डोरी में बन जा तू पतंग...
दम-दम, बम-बम लूट #BHU मेरे हमदम...
नए कुलपति, तू भी मेरे साथ माल लूट ले जरा...
प्रमोशन करूं, हिस्सेदारी में तू शामिल कर ले जरा...
रजिस्ट्रार-रेक्टर बनाउंगा, तू वीसी हाउस में कश तो लगा ले यारी...
दम बोले दम तू #BHU का मजा लूट ले...
लूट का पैसा मिलेगा तो तू भूलेगी सारा गम...
दम दम बम बम लूट #BHU मेरे हमदम...

Thursday, 20 November 2014

बीएचयू के स्टूडेंट अराजक कैसे?

बीएचयू के स्टूडेंट अराजक कैसे?

#‎मोदी‬ जी आपके संसदीय क्षेत्र का हूं आपको ‪#‎वोट‬ भी नहीं दिया था, लेकिन 100 फीसदी कह सकता हूं कि आज ‪#‎BHU‬ के जिन छात्रों पर लाठीचार्ज हुआ उसमें ‪#‎90फीसदी‬ ने जी जान लगा कर आपका प्रचार किया था... वो नहीं होते तो ‪#‎केजरीवाल‬ के एनजीओ वाले आपको‪#‎शीला‬ बना देते... इतना ही नहीं,
मोदी सरकार में चार ऐसे सांसद हैं जिन्हें मैं पर्सनली जानता हूं कि वो आज जो भी हैं #BHU की वजह से हैं...  ‪#‎सांसदऔरमंत्री‬ मनोज सिंहा, ‪#‎सांसद‬ महेंद्र पांडेय, #सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त,#सांसद मनोज तिवारी... ये सभी बीएचयू के प्रोडक्ट हैं और बनारस में ही इन सबका घर भी है.. फिर ‪#‎पीएम‬ मोदी का ‪#‎ऑफिस‬ भी है...

ऐसे लोगों के रहते #BHU के स्टूडेंट्स को पुलिस दौड़ा-दौड़ा कर मार रही थी... एक को गोली भी लग गई और सब खामोश हैं...

‪#‎रामपाल‬ को हरियाणा में मारना था तो तीन दिन इंतजार किए और ‪#‎स्टूडेंट्स‬ को आधे घंटा समझाने के बाद लाठीचार्ज...
ऐसा नहीं है कि #स्टूडेंट्स की गलती नहीं होगी, लेकिन ‪#‎पुलिस‬ और ‪#‎प्रशासन‬ उन्हें समझा नहीं सकती थी?????

जिन #स्टूडेंट्स को आज लोग अराजक बता रहे हैं वो इंट्रेस पास करके वहां एडमिशन लिए हैं और इतना तो है कि महामना हर किसी को अपने यहां घुसने नहीं देते, कुछ तो काबिलियत होगा ही इनमें... फिर भी वे अराजक हैं... क्या बोलें...........

Friday, 14 November 2014

यक्ष प्रश्न, जिसका उत्तर केबीसी वाला कंप्यूटर जी भी नहीं दे सकता

यक्ष प्रश्न, जिसका उत्तर अमिताभ बच्चन का केबीसी वाला कंप्यूटर जी भी नहीं दे सकता...

इसके जैसे बच्चे के लिए हर दिन एक जैसा बितता है... रोज भूख से लड़ना... दो रोटी के लिए मजदूरी करना... बोझा ढ़ोते, बड़ा होना... ठंडी में ठंड, गर्मी में सूरज की तपीश और बारिश में पानी सब इसके दुश्मन बने रहते हैं... इनकी मासूमियत, चेहरे की हंसी, इनका सपना सभी चीजें कुछ आवश्यक्ताओं में सीमटी होती हैं...

आज एक आंकड़ा मिला, जिसमें लिखा था कि सिर्फ बनारस में 12 हजार से ज्यादा कूड़ा बिनने वाले बच्चे हैं... इनकी उम्र 15 साल से कम है... हम बचपन को पाने की ख्वाहिश रखते हैं और ये उससे भागने की जुगत में लगे रहते हैं... हम बचपन के मस्ती भरे दिन को याद करते हैं, वो बचपन को बुरा सपना समझ भूल जाना चाहते हैं... हम अपने बचपन की तस्वीरों में मासूमियत और खुशी देखते हैं, उनके पास कोई तस्वीर ही नहीं होती, शायद वे शीशे को अपनी तकदीर समझकर उसे देखना ही न चाहते हों...
बाल दिवस पर नेहरू जी को मात्र श्रद्धांजलि देने में सैकड़ों, लाखों यहां तक कि करोड़ों खर्च कर रहे हैं, लेकिन इन बच्चों के लिए सिवाय उनके गरीबी की फोटों खींचने के सिवाय कुछ नहीं करते...
ये 21वीं सदी का भारत है... यहां न्यू ईयर, वेलेंटाइन डे, होली, फ्रेंड्सशीप डे, रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली, क्रिशमश, मडर्स डे, फाडर्स डे, सिस्टर्स डे, यहां तक कि अप्रैल फूल डे जैसे डे पर दूसरों को विश करने में न जाने कितना खर्च कर देते हैं... लेकिन बाल दिवस पर, कुछ लोग नेहरू के विचार को जानने में और कुछ उन्हें गरियाने के सिवाय कुछ नहीं करते...
नहीं मालूम कि नेहरू ने अपने जन्मदिन को क्यों बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया, लेकिन जब हर दिन नए जमाने में कुछ नए कलेवर में आ गया है तो चिल्ड्रेंस डे क्यों नहीं?
अगर हम कहते हैं कि हम वैज्ञानिक युग के लोग हैं, सब कुछ बदल सकते हैं तो उसकी किस्मत क्यों नहीं बदल सकते जो अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ दो रोटी, तन धकने के लिए कपड़ा और रहने के लिए छांव के संघर्ष में बिता देता है... यक्ष प्रश्न है, लेकिन शायद इसका उत्तर देने के लिए सवा करोड़ आबादी में से कोई नहीं...

Friday, 3 October 2014

मौत पर सिर्फ मुआवजा, ये कैसी सरकार

मौत पर सिर्फ मुआवजा, ये कैसी सरकार

मौत और इज्जत जरूरी या पैसा... नेताजी लोग (बीजेपी, कांग्रेस या कोई भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दल के), मुआवजा की जगह व्यवस्था दुरुस्त करना ही हादसे में शिकार लोगों को सच्ची श्रद्धांजलि है...
सच में नए भारत का निर्माण करना चाहते हो तो हादसों को रोका... कुछ ऐसा करो, जिससे घर से मेला घूमने निकले बच्चे की लाश लौटकर ना आए... कुछ ऐसा करो कि सफर कर रहे व्यक्ति खुद के पैरों पर घर पहुंचे, न कि एंबुलेंस या चार कंधों में... कुछ ऐसा करो कि लड़की इज्जत लूटने से पहले रेपिस्ट को उसकी सजा के खौफ से हार्ट अटैक आ जाए...

पटना में रावण दहन के बाद भगदड़ में 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई... गोरखपुर में ट्रेन हादसे में 14 लोगों की जान चली गई... लखनऊ और बदायूं में युवतियां गैंगरेप का शिकार हो गईं... इन सब के बाद सरकार (केंद्र और राज्य) ने क्या किया... सिर्फ उनके परिजनों को मुआवजा दिया... 1 लाख, 2 लाख, 5 लाख, 10 लाख... धन्य हो लोग...

किसी भी हादसे के बाद सरकार और प्रशासन मुआवजा की घोषणा करके कॉलर उठाकर निकल लेती है... हो गई जिम्मेदारी पूरी...

गुरु ये आम लोग हैं सामान्य रहते हैं, सामान्य खाते हैं लेकिन दिल से बड़े होते हैं... इन्हें पैसे से ज्यादा इंसानियत की जरूरत है...

तुम्हारे लिए पैसा ही सबकुछ है... तुम जिंदगी की कीमत मुआवजे/पैसे से लगा सकते हो, तुम इज्जत/आबरू को मुआवजा से दोबारा पा सकता हो... लेकिन, एक आदमी के लिए यही चीज सबकुछ है... ये पैसे के पीछे नहीं जिंदगी के पीछे भागते हैं...
 इनकी लिए यही चीजें सबकुछ हैं... ये रूखा-सूखा खा सकते हैं, फटा-पुराना पहन सकते हैं, पैदल ही लंबी दूरी तय कर सकते हैं... लेकिन मानवता और संवेदनाओं से समझौता नहीं कर सकते...
ढाक के तीन पात हैं सब...

Friday, 12 September 2014

भलामानुषियत

भलामानुषियत

बचपन से भलामानुषियत का पाठ पढ़
मैने भी सोचा कुछ इच्छा करूं
हाथों की लकीरों की जगह, भले कर्मों में खुद की तकदीर पिरोऊं
बदलती इंसानी फितरत से अलग, अपने सपनों का इक जहां बनाऊं...
अपनी दुनिया के लिए मैंने भी खेल का सुंदर मैदान है देखा
मगर, उसका नया रूप मुझको अवाक कर बैठा
यूं ही निहाल हो गया सब कुछ खेल समझकर
अंतर्मन की टीस निकाल खुद को बेहाल देखकर...
खुद की राहों के मुसाफिर, इतना तो बता देते
कि लौट पंछी भी शाम ढले, चहचहाते दिल कुलबुला जाते
अनुभव, तल्ख़, खट्टे-मीठे, रास्तों में कितने मिले हैं
शूल के संग फूल भी तो, जिंदगी में अक्सर बिछे हैं...
मालूम है उड़ नहीं सकता आसमां में, फिर भी मस्ती से उसे छूं जाऊं
दूध की तरह शुद्ध, मृदुल हो, खुद की शैतानियत के भाव में मिट जाऊं
भलों के बदले भला कर दूं, मेहनत पर भविष्य की तस्वीर उकेरूं
ख्वाहिश है कुछ ऐसा जहां बनाऊं, हर जगह खुशियां ही पाऊं...
सपनों की रंगीनियत में था, कि अंतर्मन ने इतना पुकारा
उस मधुर आवाज से भी, बेवकूफियत ने कर लिया किनारा
कांटों से बने रास्तों को चुना, फिर भी नहीं मैं हारा
इस उम्मीद में कि इस हमनशीं चमन में ही है मेरा गुजारा...
कल्पना ही है मेरी प्रेरणा, सपने देखना नहीं छोड़ूंगा
हर मौसम में बहार लाने को, कभी न बिकने वाला पत्थर बनूंगा
जिंदगी की रंगीनियत में, खुले हाथ ही जीत जाउंगा
मौत के दिन भी देख चांद , उसे पाने की चाह में जी जाऊंगा...
सोचता था ना थकेंगे ये कदम, फिर भी चलना छोड़ दिया
अकेला दुनिया की भीड़ में, फिर भी नहीं जमाने को छोड़ा
है शेरियत जिंदगी में अब भी, फिर क्यों शब्द छोड़ देता है जहां
एक अदद पूरे सपने से मेरे, मुझे भी मिल सकती थोड़ी तृप्ति यहां...
राघवेंद्र मिश्र

Friday, 6 June 2014

मोदी सरकार के अच्छे दिन और कांग्रेस की हार

16 वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गए। ‘’मोदी सरकार’’ और ‘’अच्छे दिन’’ आ गए के नारों के साथ मीडिया जगत, सोशल साइट्स और गली-मुहल्ला- गांव, नई सरकार का स्वागत करता दिखा। नतीजे एक तरफ मोदी की जीत दिखा रहे हैं तो दूसरी तरफ यह बता रहे हैं कि उन्हें एक मजबूत नेतृत्व चाहिए। युवा एक जोशिला प्रधानमंत्री चाहता था, जो उनकी तरह सोचे, उनकी तरह बात करे, उनकी तरह दमखम दिखाए और उनकी तरह सपने देखे। नरेंद्र मोदी इन सभी... नॉर्म्स पर बिलकुल फिट बैठें और परिणाम सबके सामने है।

पिछले 2 साल से नरेंद्र मोदी एक योद्धा की तरह सिर्फ और सिर्फ प्रधानंत्री की कुर्सी पर नजर गड़ाए अपना प्रचार कर रहे थें। उनका प्रचार तंत्र ऐसा था कि उन्होंने खुद ही एजेंडा सेटिंग की, खुद ही प्रोपेगेंडा क्रिएट किया, खुद ही मॉस स्टिरिया बनाया और खुद को मजबूत नेता के रूप में उन्होंने ही स्थापित किया। मोदी कांग्रेस के खिलाफ खुल कर बोलें और सरकार के विरोध में बने माहौल का जमकर फायदा उठाया।

देश में 2011 से सरकार विरोध माहौल था। महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद और असुरक्षा के माहौल में कब तक देश का युवा वर्ग खुद को खड़ा रख पाता। देश के पूरे यूथ ब्रिगेड ने परिवर्तन की बिगुल बजाई और उसका नैतृत्व कभी अण्णा हजारे, तो कभी रामदेव, तो कभी अरविंद केजरीवाल और फिर नरेंद्र मोदी ने किया। अण्णा हजारे के आंदोलन और दिल्ली गैंगे रेप के बाद जिस तरह लोग सरकार के खिलाफ सड़को पर उतरे नरेंद्र मोदी ने एक चालाक और कुशल नेता की तरह उसका पूरा फायदा उठाया।

2009 से 2014 तक कांग्रेस कहीं भी खुद को ना तो डिफेंड कर पाई ना और न तो आगे बढ़कर किसी काम को करने के लए कोई इनिसिएटिव ले पाई। पूरे 5 साल ऐसा ही लगता रहा कि वह सरकार बना के फंस सी गई है। राहुल गांधी और सोनिया गांधी के धूरी पर नाचती कांग्रेस अपने बड़े नेताओं की वजह से हारी, जो खुद को देश की सवा करोड़ आबादी से अलग मानने लगे थें। खुद को फॉरेन यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट मानने वाले ये नेता ये भूल गए कि भारत के लोग ही अब विदेशों की शान बन चुके हैं। सिर्फ बयानबाजी और अंतराष्ट्रीय मुद्दों का हवाला देकर वो खुद को बचाने की कोशिश करते-करते 5 साल बिता दिए।

नरेंद्र मोदी ने इन सालों में खुद की जमीन तैयार किए। अच्छे दिन और विकास का सपना दिखाया। वो आगे बढ़ते गए और कांरवा बनता गया। इसका परिणाम भी 16 मई 2014 को लोगों ने देखा। अच्छे दिन आएंगे या नहीं ये मैं नहीं जानता मगर जिस तरह जात-पात और धर्म पर आधारित पार्टियों का लोगों ने बॉयकाट किया है और मोदी के विकास के वादे के साथ खड़ दिखें हैं, ये साफ दिखाता है कि अब भारत बदल चुका है।

नरेंद्र मोदी के हाथ में भी कोई आसान गद्दी नहीं आई है। ये करोड़ों युवाओं के अरबो आशाओं की गद्दी है। यदि उनके आशा पर वो खरे नहीं उतरे तो अगली बार लोग उन्हें भी निराश कर देंगे। यदि 60 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति को युवा अपना नेता मानते हैं और उसकी हर बात का पूरा समर्थन करते हुए उसे पूरी शक्ति (स्पष्ट बहुमत) देते हैं तो यह आसान कुर्सी नहीं है। मोदी को दिखाना होगा कि वो सिर्फ सपने दिखाते नहीं, सपने साकार भी करते हैं। वो एक रेसलर की तरह सिर्फ हाथ नहीं उठाते, वो बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद को एक चारो खाने चित भी कर सकते हैं।

मोदी लहर और 16 वीं लोकसभा चुनाव

आखिरकार आम चुनाव खत्म हुए। सबसे लंबे चुनाव का नतीजा भी बड़ा ऐतिहासिक रहा। पहली बार भाजपा पूर्ण बहुमत में आई। नि:संदेह इसका पूरा श्रेय नरेंद्र मोदी को जाता है। मगर, इस चुनाव की शुरुआत से नतीजे आने के एक दिन पहले तक हाशिए पर जो रहा वो मीडिया ही था। मीडिया के प्रति लोगों की अलग ही नाराजगी रही। मीडिया नेताओं का गुलाम बना चुका है, बिक गया है मीडिया, जर्नलिस्ट बिक गए हैं, ऐसी कई चीजें लेकर लोग सड़क से ल...ेकर सोशल साइट्स तक जहां भी मौका मिला चीखते-चिल्लाते रहे। हां, कुछ बड़े पत्रकार इस बीच जरूर राजनैतिक पार्टियों को ज्वाइन किए और कुछ खबरें जरूर कुछ लोगों की भावनाओं को प्रभावित की, मगर इसमें पूरी मीडिया को दोषी ठहराना कहां तक जायज है। देश की आजादी से लेकर 2009 के चुनाव तक दर्जनों ऐसे बड़े नेता हुए हैं जो पत्रकारिता करते रहे हैं।

आज के समय में मीडिया जगत एक व्यापार है और पत्रकारिता एक नौकरी, इसे नकारा नहीं जा सकता। लेकिन यह नौकरी सीधे-सीधे जनता से भी जुड़ा है। मीडिया की विश्वसनियता जरूर कम हुई है मगर इसका इंपैक्ट अब भी बरकरार है।

कुछ लोग कहते हैं टीवी, अखबार, खबरिया पोर्टल पर उलूल-जुलूल की बात ज्यादा और खबरें कम होती हैं। मीडिया पूरे चुनाव में मोदी को सबसे ज्यादा दिखा रहा था और किसी नेता को उतना समय नहीं दे रहा था। दूसरे नंबर पर मीडिया में जो जगह बचता उसमें केजरीवाल अपनी जगह बना लेते और बाकि बची जगह पर सभी राजनीतिक पार्टियां।

भाई साहब बाजार में वही सामान बेचा जाता है, जिसकी मांग होती है। जैसे-जैसे मांग बढ़ती जाती है उस सामान से पूरा बाजार भर जाता है। ठीक उसी तरह मीडिया में भी मोदी और केजरीवाल की मांग ज्यादा थी। टीआरपी और पेज व्यू की रेस में जहां मोदी बाकियों से बहुत आगे थें इसलिए उन्हें सबसे ज्यादा दिखाया जाता रहा। बची जगह पर केजरीवाल की टीआरपी और पेज व्यू अपना कब्जा जमा लेती, फिर कहां से राहुल, मायावति, मुलायम और नीतीश को जगह मिलता।

टीवी की टीआरपी और पोर्टल की पेज व्यू अगर शनी लियोनी और पूनम पांडेय पर ज्यादा आएगी तो वो दिन-भर उसे ही चलाएंगे। आप देखोगे जैसी खबर, वैसी खबरें आपको दिखाई जाएगी। तो दोषी कौन? जिस टाइप की खबरें आप पसंद करोगे, जिस विशेष व्यक्ति की आप खबरें पसंद करोगे मीडिया उसे दिखाता है और आप कहते हो मीडिया वाले गलत हैं। एडिक्शन व्यूवर और रीडर को है, प्रेजेंटर को नहीं। यहां तो बस इंजेक्शन दिया जाता है।

मडर्स डे: क्या मां को एक दिन में समेटना चाहिए?

कुछ लोग आज तथाकथित मडर्स डे (इसे मातृ दिवस नहीं कहा जा सकता) मना रहे हैं... मैं किसी मडर्स डे या फाडर्स डे को नहीं मानता... जिस मां के गर्भ में 9 महीने पल के इस संसार में आए हैं उसके लिए किसी दिवस की जरूरत नही है... जिस मां ने मुझ सींच कर इतना बड़ा किया है उसे एक दिन में मै सिमटा नहीं सकता... जिंदगी का हर पल उस मां का ही है... उस मां को एक दिन में समेटना जिसने हमें सब कुछ सिखाया मुझे नहीं लगता की ...काफी है...

फिर भी ये दिन उन माताओं के लिए बहुत बड़ा दिन है जिनके बच्चे खुद को एडवांस और नये जमाने का साबित करने की रेस में ही कम से कम एक दिन के लिए ही समय निकाल पा रहे हैं... सेवाश्रमों में छोड़ दी गई मां के आंखों में कम से कम एक दिन की ही खुशी नसीब तो हो रही है...

कहते हैं दुनिया बदल रही है, हर चीज बदल रहा है... परिवर्तन ही समाज का नियम हैं... मगर कभी आपने मां को बदलते देखा है... नहीं ना... वो हमेशा तटष्ठ है अपने बच्चों के लिए... उसी दुलार और प्यार के साथ...

G और g की वैल्यू बदल सकती है... समय चक्र बदल सकता है... लोगों की हाथ की रेखाएँ बदल सकती हैं... एस्ट्रोनॉमी के नियम बदल सकते हैं... मगर मां नहीं बदल सकती... मां हमेशा मां रहती हैं... जिंदगी का हर पल मां के लिए...

बलात्कार का बलात्कार: क्या हो गया है जमाने को?

देश में एक तरफ चारो ओर बलात्कार (रेप) की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। तो दूसरी और कुछ लोग क्रूरता और बेशर्मी की पराकाष्ठा पार करते हुए बलात्कार का भी बलात्कार करते हुए इसे जाति, धर्म, महिला/लड़की/बच्ची/बुजूर्ग, क्षेत्र से जोड़ कर राजनीति कर रहे हैं। कुछ लोग इसमें रेप पीड़िता को या महिलाओं/लड़कियों को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो कुछ कानून व्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था पर उंगली उठा रहे हैं। कुछ लोग ...सेक्स और रेप को अपने-अपने तरह से परिभाषित कर रहे हैं तो कुछ नैतिकता और संस्कार को दोषी मान रहे हैं। शर्म आती है ये देख-सुन कर की लोग बलात्कार को भी अलग-अलग चस्मे से देख रहे हैं।

आज के समय में लोगों का कला का सम्मान करने का तरीका बदल गया है। ‘डर्टी पिक्चर’ फिल्म को राष्ट्रीय पूरस्कार देकर, ‘हेट स्टोरी’ जैसी फिल्मों का कलेक्शन फैमिली फिल्मों से कई गुना ज्यादा देकर, सनि लिओनी और पूनम पांडेय को मुख्य अतिथि बनाकर लोग कला का सम्मान करने लगे हैं।

वहीं टेलीवीजन सेटों (इडियट बॉक्श) पर 24 घंटे शेविंग क्रिम से लेकर डियोड्रेंट और पॉवडर से लेकर इनर वियर (लड़के/लड़कियों) को कामुकता के केंद्र में रखकर बेचा जा रहा है और अर्धनग्न मॉडलों से उसका प्रचार कराते हुए लोग रेप के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। अब इस तरह के उत्पादों का प्रयोग करने के बाद जब अविकसित दिमाग वालों के मन में आग लग रही है और कोई उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर रहा तो ये फ्रस्टेशन कहीं ना कहीं तो निकलेगा ही। और इसका खामियाजा नादान बच्चियां और सलवार सूट वाली लड़कियां भुगतती है। नतीजा बड़ी संख्या में आपके सामने है।

दूसरी ओर मधु किश्वर का बयान आता है कि रेप के कारणों में महिलाओं के कपड़े भी जिम्मेदार होते हैं। जरा आप मधु किश्वर के टीन एज की तस्वीरों से लेकर आज तक की तस्वीरों में उनके कपड़ों पर गौर कर लें, उनके बयान और वास्तविकता में अंतर स्पष्ट हो जाएगा। मैम कपड़ो का छोटा होना और दिमाग के छोटे होने में अंतर है।

वहीं रेप पर राजनीति भी बहुत करीने से हो रही है। अलग-अलग पार्टीयां इसे अलग-अलग एंगल दे रही हैं। लोग पीड़िता की जाती/धर्म जानने के बाद उस जाती से जुड़े अपने वरिष्ठ नेता से बयान दिलवा रहे हैं। इसमें कांग्रेस, भाजपा समेत लगभग सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां हैं। धन्य हैं आप लोग और आप की राजनीति।

लोकसभा, राज्यसभा से लगायत विधानसभाओं और नौकरशाही में बलात्कार के मुजरीमों को बैठा कर आप देश में सदाचार और नैतिकता की बात करते हैं ? जो लोग टीवी और फिल्मों में अश्लीलता फैला रहे हैं वो हाई सिक्योरिटी लेकर क्यों घूमते हैं? इन लोगों के नग्नता की सजा बेचारी आम बच्चियां/लड़कियां भूगत रही हैं। इनकी नग्नता और खास प्रचारों से प्रभावित और मानसिक दिवालियापन से ग्रसित यूवकों की शिकार हाई सिक्योरिटी जोन में रहने वाली ये मॉडल/हिरोइन नहीं चुकाती बल्कि वे आम महिलाएं/लड़कियां/बच्चियां चूकाती हैं, जो जिंदगी की भागमभाग में खुद को स्थापित करने से लिए घर से बाहर और गांव से शहर रोज करती हैं।

अब वक्त ऐसे जघन्य अपराध पर कानून बनाने का नहीं बल्कि सजा देने का है। जल्द से जल्द बलात्कारियों को पकड़ कर ऐसी सजा दें जिसे सुन और देख कर मानसिक रूप से दिवालियापन का शिकार हुए यूवकों/आदमीयों की रूह कांप जाए और किसी भी महिला की और नजर घुमाने से पहले मात्र सजा के बारे में सोच कर वो सिहर जाएं। अब नैतिकता और संस्कार का पाठ पढ़ाने का समय नहीं रह गया अब सजा देने का समय आ गया है, जिससे जल्द से जल्द ऐसी घटनाएं रुक जाएं। किसी भी गलत काम को रोकने के लिए डर और शर्म दो चीज की जरूरत होती है। बलात्कारियों के पास शर्म नाम की कोई चीज रह नहीं जाती है इसलिए उन्हें डराना पड़ेगा और ढ़ंग से डराना चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं तुरंत बंद हो।