Thursday, 30 July 2015

याकूब की फांसी और 12 वकीलों द्वारा तीन बजे रात में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

'आखिरकार...' 1993 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को फांसी दे दी गई। इस 'आखिरकार' पर इतना जोर इसलिए देना पड़ रहा है क्योंकि उसे फांसी के फंदे तक पहुंचने से पहले लोगों ने जोर लगाकर उसका नाम लिया। कई दिनों तक यह नाम ट्विटर और फेसबुक पर ट्रेंड हुआ। बहुत लोग उसे फांसी देने के पक्ष में थे तो कुछ ने इसका विरोध भी किया। देश के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा पहली बार रात में खुला और याकूब की फांसी पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई भोर में तकरीबन तीन बजे हुई। पक्ष और विपक्ष के लोग पूरी रात जागते रहे तो तटस्थ हमेशा की तरह अपने शिड्यूल में लगे रहे।

मुंबई में हुए 13 सिलसिलेवार बम विस्फोटों में 257 लोगों की जान गई थी, जबकि 700 से अधिक घायल हुए थे (यह सरकारी आंकड़ा है, इसकी विश्वसनीयता का अंदाजा आप खुद लगाइएगा)। क्या याकूब मेमन के जेल में काटे 21 साल उसके गुनाह के लिए काफी थे? 100 से ज्यादा स्कूली बच्चों की मौत की तुलना याकूब द्वारा अपने साथियों के खिलाफ दिए सबूत से करनी चाहिए? क्या याकूब के परिवार को देखते हुए उसके साथ मानवता दिखानी चाहिए? एक आतंकवादी को किसी धर्म से जोड़कर देखना चाहिए? या फिर यह कहते हुए उसकी फांसी पर रोक लगानी चाहिए कि‍ असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा भी तो बम ब्लास्ट के आरोपी हैं उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए? ये तर्क देना कि याकूब को गिरफ्तार नहीं किया गया था, उसे पाकिस्तान के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए लाया गया था, उसे जीवनदान देने के लिए पर्याप्त था?
याकूब कोई अनपढ़ नहीं था, जो किसी झांसे में आकर वह इतनी आसानी से भारत चला आता। वह पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट था। वह अकाउंट से जुड़ी फर्म के साथ-साथ अपने आतंकवादी भाई टाइगर मेमन का गैरकानूनी फाइनेंस संभालता था। इतना ही नहीं वह जेल में रहते हुए भी इग्नू से पॉलिटिकल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था और अंग्रेजी से पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर चुका था। अब आप ही बताइए कि वह किसी की बातों में आ सकता था?
वकील आनंद ग्रोवर अब भी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से बड़ी भूल हुई है। यह सही फैसला नहीं है। याकूब की फांसी की सजा पर 14 दिन की रोक लगाने के लिए देर रात चीफ जस्टिस एच एल दत्तू के यहां आनंद ग्रोवर के अलावा प्रशांत भूषण, युग मोहित, नित्या रामाकृष्णा सहित 12 टॉप वकील की टीम भी पहुंची थी। तीन बजकर 20 मिनट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सरकार का पक्ष रखा। दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने याकूब की फांसी को बरकरार रखा। इसमें प्रफुल्ल चंद्र पंत और अमिताभ रॉय शामिल थे। करीब डेढ़ घंटे चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने याकूब की फांसी को बरकरार रखते हुए वकीलों की याचिका खारिज कर दी। यह वकील किसे न्याय दिलाना चाह रहे थे यह समझ से परे है। हालांकि, उनका तर्क था कि वह भारतीय संविधान से मिली हर सुविधा याकूब को दिलाना चाहते थे, लेकिन क्या किसी गरीब-निरीह के लिए भी संविधान का ख्याल रखा जाता है?
कुछ ऑफिसर्स के स्टेटमेंट को लेकर भी लोग याकूब मेमन के पक्ष और विपक्ष में बयान दे रहे थे। आईबी के ऑफिसर रहे बी. रमण के अनुसार, याकूब को सरेंडर के लिए राजी किया गया था। वहीं, सीबीआई ने याकूब की गिरफ्तारी पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से दिखाई थी। एक और थ्योरी कहती है कि इंटरपोल ने उसे भारतीय एजेंसियों को सौंपा था और फिर उसे सरकारी प्लेन से नई दिल्ली लाया गया। इसमें गलत क्या है? इतने बड़े वारदात को अंजाम देने के लिए कई थ्योरी बनाई जा सकती है। हो सकता है अलग-अलग तरह से सभी को अप्लाई किया गया हो। यह देश के लिए एक कामयाबी थी।
ज्युडिशियरी में फांसी को कैपिटल पनि‍शमेंट कहते हैं क्योंकि किसी का जीवन खत्म होता है इसलिए जज पेन की निब तोड़ देते हैं। यहां तो पेन की निब भी बचानी चाहिए थी। इस बात से भी तरस नहीं आता कि जब याकूब फांसी के फंदे की ओर जाने लगा तो उसे उसका भाई सुलेमान नजर आया। उसने आवाज देकर कहा कि भाभी राहिना और जेल में ही पैदा हुई बच्ची जुबैदा का ख्याल रखना। ब्लास्ट में मरने वाले 200 से ज्यादा लोगों के बारे में क्यों नहीं ख्याल आया था? 100 से ज्यादा बच्चों का उसे मोह नहीं लगा था?
यहां याकूब के वकील का पक्ष देखिए
-याकूब को 14 दिन का समय मिलना चाहिए।
-याकूब के पास दया याचिका पर अपील का अधिकार।
-राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने की कॉपी नहीं मिली।
-2014 में दया याचिका याकूब के भाई ने दाखिल की थी, इस बार उसने दाखिल की है।
सरकारी पक्ष के वकील की दलील देखिए
-बार-बार याचिका से सिस्टम कैसे काम करेगा?
-इस तरह मौत के वारंट की कभी तामील नहीं हो सकेगी।
-राष्ट्रपति के पास करने को और भी काम हैं।
-दया याचिका खारिज चुनौती न देने की बात कही।
-याकूब की सहमति से दाखिल की गई थी दया याचिका।
रात 12 बजे चीफ जस्टिस के यहां पहुंचे वकील, चीफ जस्टिस ने क्रिएट की बेंच।

दोनों दलीलों को पढ़ने के बाद ब्लास्ट में मरने वालों के बारे में सोचिए। उन 200 से ज्यादा लोगों के परिवार के बारे में सोचिए।
फिर डिसाइड करिए कि एक आतंकवादी को क्या इससे कम सजा मिलनी चाहिए?

Tuesday, 28 July 2015

'कलाम को आखिरी सलाम', ऐसी हेडिंग जिसे चाहकर भी नहीं बदल सकता था

जब भी कोई स्टूडेंट मुफलिसी के बीच एक बड़ा सपना देखता है तो उसे मोटिवेट करते हैं डॉ. अब्दुल कलाम ('था' लगाने का मन नहीं हो रहा)। एक मछुआरे का बेटा आधे पेट खाकर और बेहद छोटी जगह से निकलकर सफलतम और सबसे ज्यादा प्यार पाने वाले भारतीयों में कैसे शुमार हो गया, इसे जानकर लाखों स्टूडेंट्स को अपनी जिंदगी बदलने का मौका मिला। लोग उन्हें मिसाइल मैन, भारत रत्न, देश के 11वें राष्ट्रपति, साइंटिस्ट (वैज्ञानिक) जैसे कई उपनामों से पुकारते हैं, लेकिन उन्हें 'शिक्षक' कलाम कहलाना ही पसंद था। पृथ्वी को जीने लायक कैसे बनाया जाए? इस बारे में बात करने शिलांग पहुंचे शिक्षक कलाम स्टूडेंट्स के बीच से ही अपनी अनंत यात्रा के लिए निकल गए।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम सच्चे कर्मयोगी के उदाहरण थे। अखबार बेचकर घर की आर्थिक मदद करने वाले कलाम ने 'अग्नि' को उड़ान देकर देश को शक्तिशाली बनाया। उनके मेहनत का ही प्रतिफल था कि भारत परमाणु शक्ति संपन्न देश बन सका। भारत को बैलेस्टिक मिसाइल और लांचिंग टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाने वाले कलाम के सादे कपड़े, बालों को संवारने का तरीका और बच्चों-सी चहकती हंसी तमाम मिसाइलों से ज्यादा जानलेवा थी।
पृथ्वी, त्रिशूल, अग्नि-1, धनुष, आकाश, नाग, ब्रह्मोस समेत कई मिसाइलें बनाने वाले कलाम को लोग मिसाइलमैन कहते थे। इससे इतर एक तथ्‍य यह भी है कि‍ कलाम को भी कुछ फैसले लेने में दर्द होता था। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति होते हुए सबसे मुश्किल काम सजा-ए-मौत पर फैसला लेना था। इसके बाद उन्होंने इसे समाप्त करने की वकालत की थी। मृत्युदंड पर लॉ कमीशन के कंसलटेशन पेपर पर जवाब देते हुए कलाम ने कहा था कि राष्ट्रपति के तौर पर उन्हें इस तरह के मामलों में फैसला लेने में दर्द महसूस हुआ, क्योंकि ऐसे ज्यादातर मामलों में सामाजिक और आर्थिक भेदभाव था।
कहा जाता है कि उन्हें पढ़ाई के प्रति इतना लगाव था कि वह रोज सुबह चार बजे उठ कर मैथ्स पढ़ते थे। पढ़ाई खत्‍म होने के बाद ही वे अपने पिता के साथ नमाज पढ़ते थे। पढ़ाई को किसी धर्म-संप्रदाय से बड़ा मानने वाले कलाम कहते थे, जब तक ब्रह्मांड में सोलर सिस्टम है हर एक सेकेंड शुभ है। एक साधारण बच्चे से लेकर कलाम बनने का सफर आसान नहीं था, लेकिन उनकी जिंदगी का तो फलसफा ही था कि बड़े सपने देखो।
गरीब परिवार में जन्म लेने के कारण उन्होंने घर-घर जाकर अखबार बेची, लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी। वे रातभर लालटेन की रोशनी में पढ़ते थे। कलाम ने 1958 में अंतरिक्ष विज्ञान में मद्रास यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट लेबोरेट्री में भी काम किया। इसके बाद राष्ट्रपति तक का सफर और इस बीच 20 किताबों को लिखना। उन्होंने जो भी जिम्मेदारी ली, उसे नई परिभाषा दी।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में कलाम उनके वैज्ञानिक सलाहकार थे। उन्होंने कलाम को मंत्री बनने का ऑफर दिया था, लेकिन कलाम ने मना कर दिया। पोखरण में किए गए न्यूक्लियर टेस्ट में कलाम ने अहम भूमिका निभाई थी। बाद में एनडीए की सरकार ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया और इसके बाद व्यापक समर्थन मिलने के बाद वह देश के 11वें राष्ट्रपति बने। सर्वसुलभ होने के कारण उन्हें आम लोगों का राष्ट्रपति कहा गया।
शिलांग में आईआईएम के छात्रों को लेक्चर देने के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और बेथनी अस्पताल में उनका निधन हो गया। मैं दो दिन से खबरों से दूर था और मंगलवार की सुबह ऑफिस पहुंचने पर जैसे ही मैंने bhaskar.com टाइप किया मुझे स्क्रीन पर विश्वास ही नहीं हुआ। ध्यान से देखा तो हेडिंग था 'Live: पालम एयरपोर्ट पहुंचा कलाम का पार्थिव शरीर।' दूसरी हेडिंग थी, 'कलाम को आखिरी सलाम देने एयरपोर्ट पहुंचे प्रधानमंत्री।'ह ऐसी हेडिंग है जिसे पढ़कर मेरे पास शब्द ही नहीं बचे और मजबूरी ऐसी थी कि इसे बदलने के लिए नया एंगल भी नहीं खोज सकता था।
कलाम को आखिरी सलाम।

इसे आप यहां भी पढ़ सकते हैं... http://www.bhaskar.com/news/UP-tribute-to-inspirational-man-apj-kalam-5066738-NOR.html

Tuesday, 21 July 2015

ओल्ड मॉन्क लवर्स... या बदलता यंगिस्तान

रम पीने वालों के लिए बुरी खबर है। खासतौर पर ओल्ड मॉन्क लवर्स के लिए। व्हिस्की के प्रिमियम ब्रांड जॉनी वॉकर, ब्लंडर्स प्राइड, इंपिरियल ब्लू और रॉयल स्टेज पीने वालों के लिए भी यहां खबर है। हां, 'आई एम नॉट अ पार्टी एनीमल। ही ऑर शी इनसिस्ट मी। आई ड्रिंक जस्ट टू हैव अ गुड टाइम। आई एम अ गुड गर्ल/ब्वॉय। डोन्ट माइंड स्टिरियोटाइप गार्जियन लैक्चर।' ऐसी बातें करने वाले यंगिस्तान के लिए अच्छी या बुरी खबर है वे खुद डिसाइड करें। यंग इंडिया किस रास्ते से आगे बढ़ रहा है, इसकी भी रिपोर्ट है। यहां पढ़िए...

इंडिया को आज कल यंगिस्तान कहते हैं। कहें भी क्यों न। एक रिपोर्ट के अनुसार, यहां प्रति पांच व्यक्ति में एक शख्स युवा है। वहीं, साल 2020 तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश बन जाएगा, जहां नौजवानों की आबादी करीब 64 फीसदी हो जाएगी। अब एक दूसरी रिपोर्ट की बात करते हैं। मेट्रो शहरों में लगभग 45 फीसदी युवा महीने में 4-5 बार ड्रिंक करते हैं। वहीं, 19-26 साल के यूथ 60 फीसदी एल्कोहल कंज्यूम कर जाते हैं। पब और बार के 80 फीसदी कस्टमर की उम्र 25 साल के आस पास है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल जनसंख्या के मामले में हालांकि, भारत चीन से पीछे हैं, लेकिन 10 से 24 साल की उम्र के 35.6 करोड़ लोगों के साथ भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। अब एक तीसरी रिपोर्ट भी देखिए। अपने जीवन के 60 बसंत देख चुका रमों का राजा 'ओल्ड मॉन्क' बुरे दौर से गुजर रहा है। इसकी बिक्री लगभग आधी हो गई है। इसे चाहने वाले सोशल साइट्स पर इसे बचाने के लिए कैंपेन चला रहे हैं और इसे बचाने की कोशिश में इसे ज्यादा कंज्यूम करने की अपील कर रहे हैं। 

ये यंग इंडिया है, जो आधुनिकता की रेस में उसेन बोल्ट की तरह है। लेकिन, विडंबना है कि वे खाता कम और दौड़ता ज्यादा है। वह अल्कोहल का भी डाई हार्ट लवर्स हो सकता है। खुद को पाक-साफ बताते यह दूसरों के इनसिस्ट करने पर एल्कोहल पीने की बात करते हैं, लेकिन कुछ ही पल बाद कहते हैं कि थोड़ी सी ही तो पी है, कौन सा जुर्म कर दिया। आई एम अ गुड गर्ल ऑर ब्वॉय। ये यंगिस्तान बॉटल के बारे में बेहिचक बात करता है। पैग के बारे में दोस्तों से पूछता है। किसी का बर्थ डे हो या कोई मैच, एग्जाम की शुरुआत हो या अंत, बोरियत मिटानी हो या उदासी को दूर करना हो, कितनी भी बड़ी परेशानी हो या खुशी, ये पीते हैं और छक कर पीते हैं। वे कहते हैं, वी आर एंजाइंग अवर लाइफ इन डैट टाइप। लीव फ्री एंड थिंक बिग। डोंट माइंड स्टिरियोटाइप गार्जियन लैक्चर। लेकिन, जहां बात होती है डू बेस्ट की वहां वह घनचक्कर में पड़ जाते हैं।  

अब आते हैं 60 साल के रमों के राजा ओल्ड मॉन्क पर। इंडियन आर्मी से आम आदमी तक की दूरी तय करने में इसे काफी साल लग गए। फिर, जब पहुंचा तो छा गया। मीडिल इनकम और फैमिली वालों की यह पहली पसंद है। देखते ही देखते लोग इसके डाई हार्ट लवर्स हो गए। लेकिन, आज कल ओल्ड मॉन्क के बुरे दिन हैं।  साल 2005 में इसकी जितनी सेलिंग थी उसकी आधी हो गई है। 

अब आप ये सोचते होंगे की ओल्ड मॉन्क के फैन कम होते जा रहे हैं और इसके चाहने वाले किसी दूसरी ब्रांड की तरफ जा रहे हैं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। लोगों ने रम पीना ही कम कर दिया है। यूरो मॉनिटर के हिसाब से भारत में जहां वाइन का कंजप्शन 6 फीसदी और बियर का 8 फीसदी बढ़ा है, वहीं रम का मार्केट 1.5 फीसदी घटा है। व्हिस्की के प्रीमियम ब्रांड जॉनी वॉकर, ब्लंडर्स प्राइड, इंपिरियल ब्लू और रॉयल स्टेज लोगों को ज्यादा अट्रैक्ट कर रहा है। इसके कारण ही ओल्ड मॉन्क घाटे में चल रहा है। 

अब आते हैं ओल्ड मन्क के फैन्स की तरफ। मेरे एक सीनियर हैं, वह भी इसके जबरदस्त फैन हैं। उन्हें जब पता चला कि ओल्ड मॉन्क घाटे में चल रहा है और कुछ ऐसा ही बाजार रहा तो जल्द ही बंद जाएगा तो उन्होंने बकायदा दो पेटी का ऑर्डर कर दिया। इसके साथ ही इसे सेव करने के कैंपेन में अपनी हिस्सेदारी करते हुए कमेंट किया कि 'वी कंज्यूम मोर फॉर लॉन्ग लाइफ ऑफ अवर बेस्ट टेस्ट रम। सीनियर के मुताबिक उन्हें सबसे पहले ओल्ड मॉन्क उनके पापा ने पिलाया था, ये कहते हुए कि 'मर्दों वाली ड्रिंक पिया करो।' इसके बाद वह इसके फैन हो गए। नवाबों के शहर लखनऊ में मोहन मिकिंस इसे बनाता था और लोग यहां से लगेज कम और ओल्ड मॉन्क ज्यादा ले जाते थे।

सोशल साइट्स पर इसके लिए चल रहे कैंपेन में लोगों के स्टेट्मेंट पढ़ कर और मजा आया। चूंकि मैं इसका फैन नहीं हूं इसलिए उस पेज का लिंक नहीं डाल रहा हूं, लेकिन यकीन मानिए ओल्ड मॉन्क लवर्स ने अपने कमेंट में दिल के जज्बात उतार रखे हैं। मैं यह सोच रहा हूं कि क्या किसी खाने-पीने जैसी चीज से मैं इतनी मोहब्बत कर पाऊंगा। सच में ये प्यार है जो किसी से भी हो सकता है। अब वह ओल्ड मॉन्क ही क्यों न हो। 

Sunday, 19 July 2015

किसानों के आइकन बने हैं अमिताभ बच्चन, फिल्म की स्क्रिप्ट बन कर न रह जाए ये?

जरा सोचिए! भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान विश्वनाथन आनंद को बना दिया जाए। किसी गैंगेस्टर को शांति का नोबल पुरस्कार दे दिया जाए। एक भी फिल्म नहीं देखना वाला सत्यजित रॉय पर किताब लिख दे। किसी राजनेता को बॉलीवुड का ब्रांड एंबेस्डर बना दिया जाए। ...तो आपको कैसा लगेगा? इसे छोड़िए। अब ये सोचिए कि अमिताभ बच्चन का नाम आते ही आपकी आंखों के सामने उनकी कौन सी तस्वीर बनती है। हीरो वाली ही न! अब जरा किसान अमिताभ बच्चन के बारे में सोचिए। 'सूर्यवंशम' फिल्म के सीन्स दिमाग में आएं क्या?

भारत सरकार ने हाल ही में डीडी किसान चैनल लॉन्च किया है। बताया जा रहा है कि यह चैनल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना था। अब चैनल की रीच बढ़ाने के लिए उसकी मार्केटिंग और ब्रांडिग करनी ही पड़ेगी। इसके लिए एक ऑइकन लीडर की भी जरूरत पड़ेगी जो इसे लीड करे। ऐसे में आपको किसका नाम सूझेगा या आप किसे देखन चाहेंगे। जरा सोचिए! अमेरिका के प्रमुख निवेश सलाहकार और लोकप्रिय लेखक जिम रोजर्स या पंजाबी कृषि विशेषज्ञ प्रोफेसर एसएस गिल या फिर ह्रासमान प्रतिफल नियम (Law of Diminishing Returns) मांग का नियम, पूर्ति का नियम बताने वाले विशेषज्ञ को। डीडी किसान चैनल की रीच बढ़ाने के लिए भारत सरकार को सबसे बड़ा नाम सुझा है अमिताभ बच्चन का। इसके लिए उन्हें 6.31 करोड़ रुपए भी दिए गए हैं। 

अब एक्टर अमिताभ बच्चन से बाहर निकलकर किसान अमिताभ के बारे में सोचिए। है न थोड़ा आश्चर्य करने वाली चीज। वैसे किसान चैनल का ब्रांड एंबेस्डर होने से बिगी बी किसान नहीं बने हैं, वह कागजीतौर पर भी किसान हैं। उनके पास लखनऊ के काकोरी के मुजफ्फरनगर चौधरी खेड़ा में करीब 33 बीघा जमीन है। इसकी कीमत करीब 67 लाख रुपए प्रति बीघा बताई गई है। इसे उनके जीजा की देखरेख में शाहजहांपुर का एक परिवार संभालता है। आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि इस साल ओलावृष्टि और बारिश से जब किसानों की 70 फीसदी फसल बर्बाद हो गए तो भी बिग बी के खेतों के फसल 95 फीसदी तक सुरक्षित काट लिए गए थे। हैं न वह अच्छे किसान!

जब बुंदेलखंड में किसान सुसाइड कर रहा था, जब महाराष्ट्र के किसान मुआवजे की मांग को लेकर धरना दे रहे थे और दिल्ली में किसान गजेंद्र, केजरीवाल की सभा में सुसाइड कर रहे थे, उसी बीच बिग बी के खतों की फसलें भी चर्चा में थी। हालांकि, बिग बी ने खुद जाकर खेती नहीं की थी, बल्कि एक किसान परिवार को खेती के लिए लगाया था और उसे खेती के लिए आवश्यक सभी जरूरी चीजें समय पर उपलब्ध कराई गई थीं। वहां पूरी तरह से वैज्ञानिक पद्धति को फॉलो किया जाता है, जिसके लिए जमकर पैसा भी खर्च किया जाता है। फिर खेती बेहतर क्यों न हो? 

उचित संसाधन और अच्छी कृषि पद्धति से तो फसलों की अच्छी पैदावर की जा सकती है, लेकिन इसके लिए पैसों की भी जरूरत होती है। अब ऐसे किसान जो एक सीजन की खेती से निराशा मिलने पर सुसाइड कर ले रहे हैं वह बिग भी की तरह कैसे इन्वेस्ट कर पाएंगे। रोल मॉडल ऐसा होना चाहिए जो अपने बीच का हो। जिसे देख कर वह इंस्पायर हों कि यह हमारे बीच से ही निकल कर बेहतरीन काम किया है और बुलंदियों को छुआ है। आइकन किसी को थोपा नहीं जा सकता है। बेहतर होता किसी किसान को रोल मॉडल बनाया जाता, एक प्रधान सेवक के तौर पर। जिससे सच में लगता कि भारत कृषि प्रधान देश है और आने वाले समय में यहां की अर्थव्यवस्था कृषि ही मजबूत करेगी। 

खैर यह तो भविष्य ही बताएगा कि किसानों के आइकन बने अमिताभ बच्चन से कुछ फायदा भी होगा या किसी फिल्म की स्क्रिप्ट ही बनकर रह जाएगा...
  


Thursday, 16 July 2015

मोदी जी गंगा पुत्र होते हुए 10 हजार रुपए प्रति सेकेंड की कीमत पर काशी आएंगे!

आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी

गंगा पुत्र जी, देश की जनता को आपसे बहुत उम्मीद है। रिकॉर्डतोड़ वोट और सांसदों के साथ आप देश के प्रधानमंत्री बने हैं। देश को संक्रमण काल से बाहर निकालने की आपने बात कही है। आप ने ही कहा है कि हम विश्व गुरु बनेंगे। गरीब से गरीब का गुणात्मक विकास होगा। सरकारी योजनाएं लाइन में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंचेंगी। सभी चीजों का डिजिटलाइजेशन ऐसा होगा कि डायनासोर की तरह करप्शन इस देश से गायब हो जाएगा। लोग बुलेट ट्रेन की तेजी से 'दिन दूना और रात चौगुना' तरक्की करेंगे। 

मान्यवर, ये कैसी विडंबना है कि गंगा पुत्र ही काशी नहीं पहुंच पा रहे हैं। विकास रूपी जहाज में उड़ते हुए आप विश्व के देशों की यात्राएं कर रहे हैं, लेकिन अपने ही संसदीय क्षेत्र नहीं पहुंच पा रहे हैं। एक ट्रॉमा सेंटर का उद्घाटन क्यों नहीं हो पा रहा? आप तो चाय बेचकर और काफी मुफलिसी में संघर्ष कर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं, फिर आप पानी की तरह बारिश में बहते पैसे को कैसे देख सकते हैं।

16 जुलाई को भी आपका वाराणसी का दौरा था। बारिश के प्रभाव को रोकने के लिए व्यापक इंतजाम किए गए थे, लेकिन इसी दौरान एक मजदूर की करंट से मौत हो गई। वह भी उसकी जो आपके मंच पर फूल लगा रहा था ताकि आपको अच्छी खुशबू मिले। हां यह बात दिगर है कि वाराणसी की जनता गंदगी में जीने की आदी हो चुकी है। उस निर्णय का स्वागत है जि‍समें आपने कहा कि जहां हादसे में मृत मजदूर का शव रखा है, वहां से आप किस तरह अच्छी बातें कर सकते हैं। अब जरा उनके बारे में भी सोचिए जो पैसों के अभाव में मर रहे हैं।

जरा आप चोरी से बनारस आइए। वही पुराने नरेंद्र दामोदर दास मोदी बनकर अपने संसदीय क्षेत्र की गलियों में घूमिए। देखिए कि लोगों को चलने के लिए सड़कें नहीं हैं। वहां कितनी गंदगी फैली है। उस गंगा को देखिए, जिसे आपने अपनी मां कहा था। झाड़ू लगाकर देश में आपने जहां स्वच्छता की अलख जगाया थे, उसके ठीक बगल में होते कब्जे को देखिए। जैसा आप कहते थे, 'मुझे वोट दीजिए और फिर देश की स्थिति देखिएगा, वैसे ही हम कहते हैं कि आप एक बार आम नागरिक की तरह आइए और यहां के हालात देखिए।' 

मोदी जी, क्या आपको पता है कि बीते चार बार के ट्रॉमा सेंटर के उद्घाटन की तैयारियों में तकरीबन 33 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।  इसमें मंच, टेंट, सिक्युरिटी, पीएम प्रोटोकॉल और मेहमाननवाजी के खर्च शामिल हैं। इतनी रकम में बनारस में गरीब परिवारों के लिए 660 घर बन सकते थे। या फिर 33 हजार टॉयलेट भी बनाए जा सकते थे। 1000 से ज्यादा घरों में एक दिन की बिजली सप्लाई हो सकती थी क्योंकि गुरुवार के दौरे के लिए 1.4 मेगावॉट की बिजली पैदा करने वाले डीजल जनरेटर लगाए गए थे। इतने पैसे की बर्बादी आप कैसे कर सकते हैं। 

मैं समझ ही नहीं पा रहे ये आपके कार्यकाल में ऐसा कैसे हुआ है। इस कार्यक्रम में आप पर तकरीबन 10 हजार रुपए प्रति सेकेंड के हिसाब से खर्च होना था, जो आप नहीं आए तो उसका कुछ फीसदी बच गया। आप जैसे इतने नि‍चले स्तर से ऊपर तक आने वाले व्यक्ति पर इतना खर्च होगा तो क्या होगा? 

आप काशी को क्योटो बनाना चाहते हैं। विश्व के इस पुरातन शहर को दुनिया का आधुनिकतम और सुंदर शहर बनाना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए यह जरूरी नहीं कि आप प्रति सेकेंड 10 हजार रुपए खर्च करके वहां आए। ये तो मस्ती से जीने वालों का शहर है। वहां आधे भरे पेट से रहने वाले भी खुशी से हर हर महादेव करते हुए मिल जाते हैं। रईस और गरीब दोनों एक साथ चाय की चुस्‍की और पान के बीच बतकुच्चन करते हैं। सर, आप प्रधानमंत्री बनकर नहीं बस एक आम नागरिक बनकर आइए और कुछ ऐसा करिए कि मुझ जैसे को भी आप पर विश्वास हो जाए। 

Wednesday, 8 July 2015

इन भारतीयों की अपनी कहानी है, जिसके अनुसार पाकिस्तानी हैं

जरा आप सोचिए, विदेश में रहने वाले अपने किसी रिश्तेदार से मिलने आप गए हों और आपका पासपोर्ट खो जाए। आप आर्थिक, सामाजिक और पॉलिटिकल रूप से इतने सक्षम न हों कि भारत से नया पासपोर्ट बनवा लें। फिर भारत लौटने के लिए आपको उस देश से गलत तरीके से पासपोर्ट बनवाना पड़ा। जब आप लौटकर अपने देश आएं तो आपकी नागरिकता को स्वीकार न किया जाए। फिर आप क्या करेंगे? आप भारतीय होकर भी कागजीतौर पर  भारतीय नहीं होंगे।

ऐसी ही कहानी है यूपी के रामपुर, कानपुर शहर, बरेली, शाहजहांपुर, अलीगढ़ और आगरा में रहने वाले दर्जनों परिवारों की। इनमें से सबकी अपनी कहानी है और उसी के अनुसार वे पाकिस्तानी हैं।

यूपी के रामपुर के रहने वाले सिफत उल्लाह खान पाकिस्तान में रहने वाले अपने नाना के घर गए थे। मौजमस्ती के दौर में उनका पासपोर्ट कहीं गुम गया। काफी प्रयास के बाद भी जब वह नहीं मिला तो उन्होंने भारत से दूसरा पासपोर्ट मंगवाने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहे। अब भारतीय थे तो आखिरी कोशिश भी की। उन्‍होंने भी जुगाड़ टेक्नोलॉजी की। उन्होंने पाकिस्तान का फर्जी पासपोर्ट बनवा लिया और चले आए अपने देश। उन्हें पता नहीं था कि उनका यही जुगाड़ उनके लिए मुसीबत खड़ी कर देगा। अब भारत में उन्हें पाकिस्तानी माना जाता है। वह वीजा पर यहां रहते हैं और सरकार से नागरिकता की लगातार मांग कर रहे हैं। 

फरजाना बी की शादी पाकिस्तान में हुई, लेकिन पति ने तलाक दे दिया तो वह वापस अपने घर आ गई। लेकिन, यहां की सरकार ने उन्हें भारतीय मानने से इनकार कर दिया। अब वे अस्थायी वीजा पर यहां रही हैं और स्थायी वीजा की मांग कर रही हैं।

अब यूपी सरकार के एक फैसले ने उन्हें फिर से भारतीय होने का मौका दिया है। गृह विभाग ने प्रदेश के छह जिलों के जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को चिट्ठी लिखकर पाकिस्तानी नागरिकता पर रह रहे लोगों की जानकारी लेने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही उनकी समस्याओं को सुनने और उचित निस्तारण के लिए स्पेशल कैंप लगाने को भी कहा गया है। इससे ऐसे परिवार जो भारतीय नागरिकता प्राप्त करने या फिर दीर्घकालीन वीजा मिलने के लिए लंबे समय से प्रयासरत हैं, उनके लिए एक नई आस जगी है।

Tuesday, 7 July 2015

डिजिटल इंडिया और माता का ई-मेल वह भी फेसबुक पर

कल रात माता का मुझे ई-मेल आया है, माता ने मुझको फेसबुक पर बुलाया है...! चैटिंग-शैंटिंग करेंगे, माता से फोटो शेयर करेंगे, प्रोफाइल पिक्चर में माता ने शेर लगाया है...! गुड्डू रंगीला फिल्म का यह गाना हरियाणवी लोक गायक गजेंद्र फोगट ने गाया है। बड़ा ही कैची लगता होगा न ये गाना। कुछ अपना-अपना सा। हो भी क्यों न इसमें फेसबुक, चैटिंग, वेबसाइट और डॉट कॉम का जो जिक्र किया गया है। जिक्र क्या पूरे गाने में बस वही है ही।
फिल्में वास्तविकता की नींव पर ही बनती हैं। कुछ फिक्सन स्टोरी पर बनी फिल्म हो भी तो उसमें प्रेडिक्शन होता है। हां मुंगेरी लाल के सपनों की तरह नहीं, बल्कि फ्रांस और बॉलीवुड की फिल्मों की तरह।
अब वो जमाना गया जब लोग सुबह उठ कर अपने हाथ की हथेलियों को देखकर (कराग्रेवस्ते गाते थे) और उसके बाद अपने मां-पापा का पैर छूते थे। अब तो लोग सुबह उठकर फेसबुक नोटिफिकेशन देखते हैं और उसके बाद जरूरत के हिसाब से लाइक और कमेंट। गूगल और यूट्यूब पर ही ऑनलाइन सिद्धिविनायक मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर का दर्शन करते हैं।ऑनलाइन ही चढ़ावा चढ़ाते हैं तो ऑनलाइन आशीर्वाद के लिए भी प्रयासरत होंगे। अब इसमें भगवान ऑनलाइन चैटिंग करने लगे तो है न कमाल की चीज। इस गाने के मुताबिक तो अरशद वारसी से माता फेसबुक पर चैटिंग करती हैं। और चैटिंग करती होंगी तो आशीर्वाद भी देती होंगी। तभी तो 10 साल बाद उनकी प्रेमिका कम पत्नी ज्यादा उन्हें दोबारा मिल जाती हैं। वह भी तब जब वह उसकी मौत का बदला ले रहे होते हैं।
हाल ही में हुए सर्वे में देखा गया है कि मोबाइल यूज करने में यूपी इंडिया में नंबर वन है। यहां 86.63 फीसदी मोबाइल यूजर्स हैं। वहीं गृहमंत्री राजनाथ सिंह के संसदीय क्षेत्र लखनऊ में तो 50 फीसदी छात्र ट्विटर पर हैं, जबकि राष्‍ट्रीय औसत 44.1 फीसदी है। है न आश्चर्य करने की चीज... टीसीएस द्वारा 14 भारतीय शहरों के हाईस्कूल के 12,365 छात्र-छात्राओं में कराए गए GenY सर्वे 2014-15 में यह बात सामने आई है कि करीब 75 फीसदी लोग रोजाना एक घंटा ऑनलाइन रहते हैं। इसी सिलसिले में लखनऊ में कराए गए सर्वे में तकनीक के इस्तेमाल को लेकर लोग ज्‍यादा जागरूक दिखे। यहां पढ़ाई के लिए स्टूडेंट्स सबसे ज्यादा 48.6 फीसदी ई-बुक का उपयोग करते हैं, जबकि राष्‍ट्रीय औसत 37.8 फीसदी है। यहां 89 फीसदी छात्र सोशल नेटवर्किंग साइट्स का प्रयोग करते हैं, जबकि राष्‍ट्रीय औसत 84.5 फीसदी है।
यूपी का नाम जेहन में आते ही क्राइम, पॉलिटिक्स, अशिक्षा और बेरोजगारी ही सिर्फ दिखता होगा न। लेकिन, देखिए यूपी ही डिजिटल इंडिया में सबसे मजबूत है। नरेंद्र मोदी डिजिटल इंडिया के लिए प्रयास कर रहे हैं तो इसमें उन्हें प्रधानमंत्री बनाने में अमूल्य योगदान देने वाला यूपी पीछे क्यों रहे। आखिर 71+2 सांसद जो हैं। है न गजब का डाटा।

सोशल साइट्स के जमाने में लोग जितने वर्चुअल होते जा रहे हैं उतना ही वहां क्राइम बढ़ रहा है। आए दिन ऐसी वारदातें सामने आ जाती हैं जिसमें कहीं न कहीं फेसबुक-व्हाट्सऐप और ट्विटर से रंजिश पनपी हो। और ऐसे में पुलिस प्रशासन के इकबाल को खतरा।
अब वहां पर भी शक्ति की देवी आ जाएं तो मामला थोड़ा कम हो सकता है। आखिर में हर मुश्किल में माता के पास ही तो जाते हैं।
तो आप भी तैयार हो जाइए फेसबुक पर माता से दोस्ती करने के लिए। हां इस बात का जरूर ध्यान रखिएगा कि प्रोफाइल पिक्चर में शेर ही हो, उसके पीछे कोई गोरी/काली मैम न हो!

इसे आप यहां भी पढ़ सकते हैं... http://www.bhaskar.com/news/UP-satire-on-guddu-rangila-song-and-facebook-digital-india-concept-5045215-NOR.html

Friday, 3 July 2015

'मुस्कुराइए' आप UP में हैं, यहां की पुलिस जानवरों-इंसानों में फर्क नहीं करती

'मुस्कुराइए' आप UP में हैं, यहां की पुलिस जानवरों-इंसानों में फर्क नहीं करती




मुस्कुराइए आप यूपी में हैं। यहां की पुलिस सभी काम छोड़कर अब भैंस, मुर्गी, कुत्ता, बकरी और चुड़ैल खोज रही है। यही नहीं लोगों को भी देखिए, पुलिस सही तरह से कार्रवाई नहीं करती है तो वे सीधा गवर्नर को चिट्ठी लिखते हैं... ओ सॉरी अब तो चिट्ठी वाला जमाना गया, मेल करते हैं... गवर्नर भी तेज तर्रार हैं, हो भी क्यों न सक्रिय राजनीति में कई कारनामे जो कर चुके हैं... वह सीधा अल्टीमेटम देते हैं कि फला दिन के अंदर मामले का खुलासा करना है तो करना है...
दुनिया रोज 10 फर्लांग भाग रही है तो खाकी वर्दी वाले क्यों पीछे रहे... वह 100 फर्लांग आगे भागते हैं.... महकमा जानता है कि ये सब मनुष्य ऐसी हरकत कर रहे हैं कि आगे चलकर जानवर ही बनेंगे तो वह अभी से क्यों न तैयारी कर लें... अब विभाग में आने से पहले ट्रेनिंग लिए हैं तो अगले जन्म की अभी से क्यों नहीं... तो शुरू हो गए हैं तैयारी में... रिजल्ट भी पॉजीटिव ही आया, डेढ़ साल में एक भैंस चोरी का पर्दाफाश कर ही दिया...
यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है और यहां के सीएम भी सबसे युवा हैं... अपना पद संभालते ही वह सुशासन और सिस्टम बदलने का वादा किए थे... इसके लिए ढेरों ट्रांसफर-पोस्टिंग हुई, कई अधिकारियों पर कार्रवाई भी हुई और नई व्यवस्था को अमलीजामा पहनाने का वादा भी हुआ... लेकिन, यहां लॉ एंड ऑर्डर तो डार्विन के सिद्धांत को भी अनफॉलो कर देता है... बार-बार कार्रवाई पर भी जस का तस बना है और कहती है मुस्कुराइए आप यूपी में हैं...
ऐसा नहीं है कि यह अभी का हाल है और युवा सीएम ही नकारा साबित हो रहे हैं... वेद प्रकाश शर्मा ने 70 के दशक में वर्दी वाला गुंडा लिखा था... एक मेरठ के पुलिस वाले पर... इसकी 8 करोड़ से ज्यादा कॉपियां बिक चुकी हैं... ये वर्दी वाले भी क्या करें ये तो नमक के सिपाही हैं, हां लमही वाले कहानीकार के शब्दों वाले नहीं... सरकार इन्हें जितने समय और जितने काम करने के एवज में नमक का वायदा करती है उससे ज्यादा समय लेती है तो ये भी रसगुल्ला के पीछे क्यों न भागे... 

यूपी में तो अब नेताओं को भी भैंस वाला नेता और मुर्गी वाला नेता कहा जाने लागा है... क्यों इसमें सच्चाई नहीं है क्या... जरा भैंस वाला मंत्री का नाम आते ही आप दिमाग पर जोर करिए... एक बड़े मंत्री की कई फोटो आपको दिख जाएगी और न दिखे तो गूगल बाबा की शरण में जाइए... दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा... बहरहाल, खाकी वर्दी वालों के बीच सफेद वर्दी वालों को नहीं ही घसीटना चाहिए, यहां से भी बेचारी खाकी पर कार्रवाई न हो जाए...

वैसे जिस तरह से हर दिन एक नया 'डे' होता है उसी तरह पर खाकी महकमे वालों को भी एक 'डे' बनाना चाहिए...
'एनिमल चोरी शिकायत दर्ज डे'... जैसे जनता दरबार लगता है वैसे इस दिन इन शिकायतों का भी दरबार लगे... और हां ये 'डे' सलाना नहीं मासिक, पाक्षिक या साप्ताहिक होनी चाहिए... आखिर मामले भी तो ज्यादा हैं न...
31 जनवरी को एक बड़े नेता की भैंस चोरी होती है...23 जून को एक विधायक की भी भैंस चोरी हो जाती है... फिर 27 जून को एक सफेदपोश नेता की मुर्गियों पर कोई हाथ साफ कर देता है...29 जून को बड़ी मेहनत से पैसा कमाने वाले व्यापारी के कुत्ते चोरी की शिकायत आती है... फिर 29 जून को एक नेता बकरी चोरी की शिकायत करते हैं... इसी बीच इलाहाबाद में चुड़ैल दिखने की शिकायत पर थाने की एक पूरी टीम उसकी खोज में लग जाती है... फिर कानपुर में चूहे के द्वारा इमरजेंसी बटन दबाने के बाद पहुंची पुलिस उसे खोजने में जुटी है... मामले इतने आ रहे हैं और कार्रवाई के लिए गवर्नर अल्टीमेटम दे रहे हैं तो एक 'डे' तो बनता ही है...

इसीलिए तो कह रहे हैं 'मुस्कुराइए' आप यूपी में हैं यहां की पुलिस जानवरों और इंसानों में फर्क नहीं करती है...

इसे आप यहां भी पढ़ सकते हैं... http://www.bhaskar.com/news/UP-satire-on-uttar-pradesh-police-politician-and-governor-5042073-NOR.html