'आखिरकार...' 1993 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को फांसी दे दी गई। इस 'आखिरकार' पर इतना जोर इसलिए देना पड़ रहा है क्योंकि उसे फांसी के फंदे तक पहुंचने से पहले लोगों ने जोर लगाकर उसका नाम लिया। कई दिनों तक यह नाम ट्विटर और फेसबुक पर ट्रेंड हुआ। बहुत लोग उसे फांसी देने के पक्ष में थे तो कुछ ने इसका विरोध भी किया। देश के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा पहली बार रात में खुला और याकूब की फांसी पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई भोर में तकरीबन तीन बजे हुई। पक्ष और विपक्ष के लोग पूरी रात जागते रहे तो तटस्थ हमेशा की तरह अपने शिड्यूल में लगे रहे।
मुंबई में हुए 13 सिलसिलेवार बम विस्फोटों में 257 लोगों की जान गई थी, जबकि 700 से अधिक घायल हुए थे (यह सरकारी आंकड़ा है, इसकी विश्वसनीयता का अंदाजा आप खुद लगाइएगा)। क्या याकूब मेमन के जेल में काटे 21 साल उसके गुनाह के लिए काफी थे? 100 से ज्यादा स्कूली बच्चों की मौत की तुलना याकूब द्वारा अपने साथियों के खिलाफ दिए सबूत से करनी चाहिए? क्या याकूब के परिवार को देखते हुए उसके साथ मानवता दिखानी चाहिए? एक आतंकवादी को किसी धर्म से जोड़कर देखना चाहिए? या फिर यह कहते हुए उसकी फांसी पर रोक लगानी चाहिए कि असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा भी तो बम ब्लास्ट के आरोपी हैं उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए? ये तर्क देना कि याकूब को गिरफ्तार नहीं किया गया था, उसे पाकिस्तान के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए लाया गया था, उसे जीवनदान देने के लिए पर्याप्त था?
मुंबई में हुए 13 सिलसिलेवार बम विस्फोटों में 257 लोगों की जान गई थी, जबकि 700 से अधिक घायल हुए थे (यह सरकारी आंकड़ा है, इसकी विश्वसनीयता का अंदाजा आप खुद लगाइएगा)। क्या याकूब मेमन के जेल में काटे 21 साल उसके गुनाह के लिए काफी थे? 100 से ज्यादा स्कूली बच्चों की मौत की तुलना याकूब द्वारा अपने साथियों के खिलाफ दिए सबूत से करनी चाहिए? क्या याकूब के परिवार को देखते हुए उसके साथ मानवता दिखानी चाहिए? एक आतंकवादी को किसी धर्म से जोड़कर देखना चाहिए? या फिर यह कहते हुए उसकी फांसी पर रोक लगानी चाहिए कि असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा भी तो बम ब्लास्ट के आरोपी हैं उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए? ये तर्क देना कि याकूब को गिरफ्तार नहीं किया गया था, उसे पाकिस्तान के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए लाया गया था, उसे जीवनदान देने के लिए पर्याप्त था?
याकूब कोई अनपढ़ नहीं था, जो किसी झांसे में आकर वह इतनी आसानी से भारत चला आता। वह पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट था। वह अकाउंट से जुड़ी फर्म के साथ-साथ अपने आतंकवादी भाई टाइगर मेमन का गैरकानूनी फाइनेंस संभालता था। इतना ही नहीं वह जेल में रहते हुए भी इग्नू से पॉलिटिकल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था और अंग्रेजी से पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर चुका था। अब आप ही बताइए कि वह किसी की बातों में आ सकता था?
वकील आनंद ग्रोवर अब भी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से बड़ी भूल हुई है। यह सही फैसला नहीं है। याकूब की फांसी की सजा पर 14 दिन की रोक लगाने के लिए देर रात चीफ जस्टिस एच एल दत्तू के यहां आनंद ग्रोवर के अलावा प्रशांत भूषण, युग मोहित, नित्या रामाकृष्णा सहित 12 टॉप वकील की टीम भी पहुंची थी। तीन बजकर 20 मिनट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सरकार का पक्ष रखा। दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने याकूब की फांसी को बरकरार रखा। इसमें प्रफुल्ल चंद्र पंत और अमिताभ रॉय शामिल थे। करीब डेढ़ घंटे चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने याकूब की फांसी को बरकरार रखते हुए वकीलों की याचिका खारिज कर दी। यह वकील किसे न्याय दिलाना चाह रहे थे यह समझ से परे है। हालांकि, उनका तर्क था कि वह भारतीय संविधान से मिली हर सुविधा याकूब को दिलाना चाहते थे, लेकिन क्या किसी गरीब-निरीह के लिए भी संविधान का ख्याल रखा जाता है?
कुछ ऑफिसर्स के स्टेटमेंट को लेकर भी लोग याकूब मेमन के पक्ष और विपक्ष में बयान दे रहे थे। आईबी के ऑफिसर रहे बी. रमण के अनुसार, याकूब को सरेंडर के लिए राजी किया गया था। वहीं, सीबीआई ने याकूब की गिरफ्तारी पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से दिखाई थी। एक और थ्योरी कहती है कि इंटरपोल ने उसे भारतीय एजेंसियों को सौंपा था और फिर उसे सरकारी प्लेन से नई दिल्ली लाया गया। इसमें गलत क्या है? इतने बड़े वारदात को अंजाम देने के लिए कई थ्योरी बनाई जा सकती है। हो सकता है अलग-अलग तरह से सभी को अप्लाई किया गया हो। यह देश के लिए एक कामयाबी थी।
ज्युडिशियरी में फांसी को कैपिटल पनिशमेंट कहते हैं क्योंकि किसी का जीवन खत्म होता है इसलिए जज पेन की निब तोड़ देते हैं। यहां तो पेन की निब भी बचानी चाहिए थी। इस बात से भी तरस नहीं आता कि जब याकूब फांसी के फंदे की ओर जाने लगा तो उसे उसका भाई सुलेमान नजर आया। उसने आवाज देकर कहा कि भाभी राहिना और जेल में ही पैदा हुई बच्ची जुबैदा का ख्याल रखना। ब्लास्ट में मरने वाले 200 से ज्यादा लोगों के बारे में क्यों नहीं ख्याल आया था? 100 से ज्यादा बच्चों का उसे मोह नहीं लगा था?
यहां याकूब के वकील का पक्ष देखिए
-याकूब को 14 दिन का समय मिलना चाहिए।
-याकूब के पास दया याचिका पर अपील का अधिकार।
-राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने की कॉपी नहीं मिली।
-2014 में दया याचिका याकूब के भाई ने दाखिल की थी, इस बार उसने दाखिल की है।
-याकूब को 14 दिन का समय मिलना चाहिए।
-याकूब के पास दया याचिका पर अपील का अधिकार।
-राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने की कॉपी नहीं मिली।
-2014 में दया याचिका याकूब के भाई ने दाखिल की थी, इस बार उसने दाखिल की है।
सरकारी पक्ष के वकील की दलील देखिए
-बार-बार याचिका से सिस्टम कैसे काम करेगा?
-इस तरह मौत के वारंट की कभी तामील नहीं हो सकेगी।
-राष्ट्रपति के पास करने को और भी काम हैं।
-दया याचिका खारिज चुनौती न देने की बात कही।
-याकूब की सहमति से दाखिल की गई थी दया याचिका।
रात 12 बजे चीफ जस्टिस के यहां पहुंचे वकील, चीफ जस्टिस ने क्रिएट की बेंच।
-बार-बार याचिका से सिस्टम कैसे काम करेगा?
-इस तरह मौत के वारंट की कभी तामील नहीं हो सकेगी।
-राष्ट्रपति के पास करने को और भी काम हैं।
-दया याचिका खारिज चुनौती न देने की बात कही।
-याकूब की सहमति से दाखिल की गई थी दया याचिका।
रात 12 बजे चीफ जस्टिस के यहां पहुंचे वकील, चीफ जस्टिस ने क्रिएट की बेंच।
दोनों दलीलों को पढ़ने के बाद ब्लास्ट में मरने वालों के बारे में सोचिए। उन 200 से ज्यादा लोगों के परिवार के बारे में सोचिए। फिर डिसाइड करिए कि एक आतंकवादी को क्या इससे कम सजा मिलनी चाहिए?