Tuesday, 28 July 2015

'कलाम को आखिरी सलाम', ऐसी हेडिंग जिसे चाहकर भी नहीं बदल सकता था

जब भी कोई स्टूडेंट मुफलिसी के बीच एक बड़ा सपना देखता है तो उसे मोटिवेट करते हैं डॉ. अब्दुल कलाम ('था' लगाने का मन नहीं हो रहा)। एक मछुआरे का बेटा आधे पेट खाकर और बेहद छोटी जगह से निकलकर सफलतम और सबसे ज्यादा प्यार पाने वाले भारतीयों में कैसे शुमार हो गया, इसे जानकर लाखों स्टूडेंट्स को अपनी जिंदगी बदलने का मौका मिला। लोग उन्हें मिसाइल मैन, भारत रत्न, देश के 11वें राष्ट्रपति, साइंटिस्ट (वैज्ञानिक) जैसे कई उपनामों से पुकारते हैं, लेकिन उन्हें 'शिक्षक' कलाम कहलाना ही पसंद था। पृथ्वी को जीने लायक कैसे बनाया जाए? इस बारे में बात करने शिलांग पहुंचे शिक्षक कलाम स्टूडेंट्स के बीच से ही अपनी अनंत यात्रा के लिए निकल गए।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम सच्चे कर्मयोगी के उदाहरण थे। अखबार बेचकर घर की आर्थिक मदद करने वाले कलाम ने 'अग्नि' को उड़ान देकर देश को शक्तिशाली बनाया। उनके मेहनत का ही प्रतिफल था कि भारत परमाणु शक्ति संपन्न देश बन सका। भारत को बैलेस्टिक मिसाइल और लांचिंग टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाने वाले कलाम के सादे कपड़े, बालों को संवारने का तरीका और बच्चों-सी चहकती हंसी तमाम मिसाइलों से ज्यादा जानलेवा थी।
पृथ्वी, त्रिशूल, अग्नि-1, धनुष, आकाश, नाग, ब्रह्मोस समेत कई मिसाइलें बनाने वाले कलाम को लोग मिसाइलमैन कहते थे। इससे इतर एक तथ्‍य यह भी है कि‍ कलाम को भी कुछ फैसले लेने में दर्द होता था। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति होते हुए सबसे मुश्किल काम सजा-ए-मौत पर फैसला लेना था। इसके बाद उन्होंने इसे समाप्त करने की वकालत की थी। मृत्युदंड पर लॉ कमीशन के कंसलटेशन पेपर पर जवाब देते हुए कलाम ने कहा था कि राष्ट्रपति के तौर पर उन्हें इस तरह के मामलों में फैसला लेने में दर्द महसूस हुआ, क्योंकि ऐसे ज्यादातर मामलों में सामाजिक और आर्थिक भेदभाव था।
कहा जाता है कि उन्हें पढ़ाई के प्रति इतना लगाव था कि वह रोज सुबह चार बजे उठ कर मैथ्स पढ़ते थे। पढ़ाई खत्‍म होने के बाद ही वे अपने पिता के साथ नमाज पढ़ते थे। पढ़ाई को किसी धर्म-संप्रदाय से बड़ा मानने वाले कलाम कहते थे, जब तक ब्रह्मांड में सोलर सिस्टम है हर एक सेकेंड शुभ है। एक साधारण बच्चे से लेकर कलाम बनने का सफर आसान नहीं था, लेकिन उनकी जिंदगी का तो फलसफा ही था कि बड़े सपने देखो।
गरीब परिवार में जन्म लेने के कारण उन्होंने घर-घर जाकर अखबार बेची, लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी। वे रातभर लालटेन की रोशनी में पढ़ते थे। कलाम ने 1958 में अंतरिक्ष विज्ञान में मद्रास यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट लेबोरेट्री में भी काम किया। इसके बाद राष्ट्रपति तक का सफर और इस बीच 20 किताबों को लिखना। उन्होंने जो भी जिम्मेदारी ली, उसे नई परिभाषा दी।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में कलाम उनके वैज्ञानिक सलाहकार थे। उन्होंने कलाम को मंत्री बनने का ऑफर दिया था, लेकिन कलाम ने मना कर दिया। पोखरण में किए गए न्यूक्लियर टेस्ट में कलाम ने अहम भूमिका निभाई थी। बाद में एनडीए की सरकार ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया और इसके बाद व्यापक समर्थन मिलने के बाद वह देश के 11वें राष्ट्रपति बने। सर्वसुलभ होने के कारण उन्हें आम लोगों का राष्ट्रपति कहा गया।
शिलांग में आईआईएम के छात्रों को लेक्चर देने के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और बेथनी अस्पताल में उनका निधन हो गया। मैं दो दिन से खबरों से दूर था और मंगलवार की सुबह ऑफिस पहुंचने पर जैसे ही मैंने bhaskar.com टाइप किया मुझे स्क्रीन पर विश्वास ही नहीं हुआ। ध्यान से देखा तो हेडिंग था 'Live: पालम एयरपोर्ट पहुंचा कलाम का पार्थिव शरीर।' दूसरी हेडिंग थी, 'कलाम को आखिरी सलाम देने एयरपोर्ट पहुंचे प्रधानमंत्री।'ह ऐसी हेडिंग है जिसे पढ़कर मेरे पास शब्द ही नहीं बचे और मजबूरी ऐसी थी कि इसे बदलने के लिए नया एंगल भी नहीं खोज सकता था।
कलाम को आखिरी सलाम।

इसे आप यहां भी पढ़ सकते हैं... http://www.bhaskar.com/news/UP-tribute-to-inspirational-man-apj-kalam-5066738-NOR.html

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